क्या है ज्ञानवापी के वजूखाने का सच? जानें काशी विश्वनाथ मंदिर का इतिहास और इस विवाद से जुड़े 5 अहम तथ्य

History of Gyanvapi and Kashi Vishwanath Mandir: ज्ञानवापी के वजूखाने का सच क्या है, वहां शिवलिंग है या फव्वारा? इस सवाल का जवाब तो तभी मिल पाएगा, जब इसकी जांच होगी। हालांकि अभी इसका पेंच फंसा हुआ है कि वजूखाने का सर्वे होगा या नहीं। आपको इस रिपोर्ट में इतिहास से जुड़े कुछ अहम तथ्यों से रूबरू कराते हैं।

काशी विश्वनाथ मंदिर से जुड़े अहम तथ्य।

Fact and History of Gyanvapi and Kashi Vishwanath Mandir in Hindi: बनारस में ऐतिहासिक काशी विश्वनाथ मंदिर और ज्ञानवापी मस्जिद का आसपास होना केवल एक संयोग है या मुगलों का भारत में मंदिरों का अस्तित्व नष्ट करने वाला प्रयोग? क्या ज्ञानवापी मस्जिद और काशी विश्वनाथ मंदिर के परिसर का एक दूसरे से सटा होना सांप्रदायिक सौहार्द है, अदालत में चल रही लड़ाई को देखकर तो ऐसा नहीं लगता। ज्ञानवापी के भीतर वजूखाने का आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (ASI) से सर्वेक्षण कराने से मना करने के वाराणसी के जिला न्यायाधीश के आदेश को चुनौती देने वाली पुनरीक्षण याचिका पर सुनवाई के लिए 9 जुलाई की तारीख तय की गई। यहां ये समझना दिलचस्प हो जाता है कि आखिर ज्ञानवापी में मौजूद वजूखाने का सच क्या है।

ज्ञानवापी में शिवलिंग है या फव्वारा?

जब ज्ञानवापी परिसर का सर्वे एएसआई द्वारा किया जा रहा था, तो उस वक्त एक तस्वीर ने सभी का ध्यान अपनी ओर आकर्षित कर लिया था। इस तस्वीर में जो नजर आया उसे हिंदू पक्ष ने शिवलिंग बताया, मुस्लिम पक्ष की ओर से इस बात की दलील दी गई कि ये शिवलिंग नहीं बल्कि फव्वारा है। जैसे ही इस विवाद ने तूल पकड़ना शुरू किया, वजूखाने को सील कर दिया गया। अदालत का आदेश आया कि वजूखाने को छोड़कर ज्ञानवापी परिसर के अन्य स्थानों का सर्वेक्षण किया जाए। लेकिन ये सवाल अब तक बना हुआ है कि क्या सचमुच ज्ञानवापी परिसर में शिवलिंग मौजूद है?

काशी विश्वनाथ मंदिर परिसर की पुरानी तस्वीर।

क्या कहता है काशी विश्वनाथ का इतिहास?

भारत की आजादी से पहले की बात है, जब वर्ष 1936 में भी ये मामला कोर्ट में गया था। अभी काशी विश्वनाथ विवाद में जो मुकदमा चल रहा है, उसकी शुरुआत साल 1991 में हुई थी, यानी ये मुकदमा करीब 30 साल पुराना है। हालांकि ये कानूनी विवाद कई दशक पुराना है। तब हिंदू पक्ष नहीं, बल्कि मुस्लिम पक्ष ने वाराणसी जिला अदालत में याचिका दायर की थी। ये याचिका दीन मोहम्मद नाम के एक व्यक्ति ने डाली थी और कोर्ट से मांग की थी कि पूरा ज्ञानवापी परिसर मस्जिद की जमीन घोषित की जाए। 1937 में इस पर फैसला आया, जिसमें दीन मोहम्मद के दावे को खारिज कर दिया गया। लेकिन विवादित स्थल पर नमाज पढ़ने की अनुमति दे दी गई। इस मुकदमे में हिंदू पक्ष को पार्टी नहीं बनाया गया था। लेकिन इस मुकदमे में कई ऐसे सबूत रखे गए थे जो बहुत महत्वपूर्ण हैं।

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