Hamas-Israel Conflict: पर्दे के पीछे बड़े दांव चलता ईरान, सामरिक रणनीति बदलता IDF
Hamas-Israel Conflict: मौजूदा हालातों में अंतर्राष्ट्रीय एजेंडे की फेहरिस्त में स्वतंत्र फिलिस्तीनी मुल्क का मुद्दा धूल फांकता दिख रहा है। यूएन में इस मसले को लेकर थोड़ी बहुत सुगबुगाहट है लेकिन वो नाकाफी है। इंटरनेशनल कोर्ट में ये नैरेटिव ठंडा पड़ गया, इससे फिलिस्तीन मुक्ति संगठन के समर्थन में खड़े देशों की उम्मीदें भी टूट गयी।
Hamas-Israel Conflict: 6 इस्राइली बंधकों की हत्या के बाद से पश्चिम एशिया में तनाव उबाल पर है। बीते दो हफ्तों में हुई सिलसिलेवार घटनाओं से क्षेत्रीय टकराव चरम पर पहुंच चुका है। मध्य-पूर्व के मौजूदा हालातों ने गुजरे खूनी दशक की यादें जहन में ताजा कर दी हैं, जहां बड़े दहशतगर्द हमलों की डरावनी स्मृतियां अभी ताजा है। भूमध्य सागर और जॉर्डन नदी के बीच फैले इलाके में एक बार फिर से फिलिस्तीनी आतंकवाद नया कलेवर अख्तियार कर रहा है।
बेरोजगारी को हथियार बनाता हमास
वेस्ट बैंक में जिस तरह से हिंसा और असंतोष भड़क रहा है, उससे काफी हद तक साफ हो चुका है कि इस्राइल चौतरफा इस तरह के हालातों से घिर चुका है। जाहिर है ईरानी षड़यंत्र इसके पीछे छिपी संचालक शक्ति है। तेहरान की साजिशों के चलते तेल अवीव बारूद के पलीते पर बैठा दिखता है। इसके पीछे की पहली वजह है, तेहरान की नीति जो कि वेस्ट बैंक के नौजवानों को हमास और दूसरे कट्टर इस्लामी जिहादी इदारों की ओर धकेल रही है। गाजा पट्टी में आंतकी कवायदों में तेजी लाने के लिए तेहरान मोटी फंडिंग कर रहा है। इस्राइली पश्चिमी तटों से लगे इलाकों में बेरोजगारी पसरी हुई है, तेल अवीव ने इन इलाकों से आने वाले मजदूरों पर रोक लगा रखी है। कई घरों में कमाने वाला भी कोई नहीं है, दो वक्त को रोटी मयस्सर नहीं हो पा रही है। इन्हीं बातों का फायदा उठाते हुए तेहरान फिलिस्तीनी प्राधिकरण को पैसा देकर आंतकी आग सुलगाए बैठा है।
आंतकी फंडिंग और तस्करी IDF के लिए बनी सरदर्दी
इस्राइली खुफिया एजेंसी सायरल मेटकल के मुताबिक आंतकी फंडिंग के लिए ऑनलाइन, ऑफलाइन और डॉर्क वेब की मदद ली जा रही है। वित्तीय आंतकवाद के लिए कट्टर इस्लामी संगठनों ने जॉर्डन को अपना लॉन्च पैड बनाया है, जहां से रोजाना लाखों डॉलर का ट्रांसफर किया जा रहा है। इस्लामिक रिवोल्यूशनरी गार्ड की निशानदेही पर होने वाली घुसपैठ और जंगी हथियारों की तस्करी भी IDF के लिए भारी परेशानी का सब़ब बनी हुई है। इजरायल और जॉर्डन सीमा के बीच बाड़बंदी को धत्ता बताते हुए इन जमीनी कार्रवाईयों को अंजाम दिया जा रहा है। साथ ही सीमा पर लगी बाड़ के साथ छेड़छाड़ करके ऐसी तैयारियां की जा रही है, जिससे कि आईडीएफ के साथ आमने-सामने की जंग लड़ी जा सके।
फीका पड़ा PLO का एजेंड़ा
मौजूदा हालातों में अंतर्राष्ट्रीय एजेंडे की फेहरिस्त में स्वतंत्र फिलिस्तीनी मुल्क का मुद्दा धूल फांकता दिख रहा है। यूएन में इस मसले को लेकर थोड़ी बहुत सुगबुगाहट है लेकिन वो नाकाफी है। इंटरनेशनल कोर्ट में ये नैरेटिव ठंडा पड़ गया, इससे फिलिस्तीन मुक्ति संगठन के समर्थन में खड़े देशों की उम्मीदें भी टूट गयी। महाद्वीपीय समर्थन के नाम पर स्वतंत्र फिलिस्तीनी राज्य के पक्ष में यूरोप और अफ्रीका से उठती आवाज़ों पर भी विराम लग चुका है। हमास जिस रफ्तार के साथ इस नैरेटिव को आगे ले जा रहा था, अब उस पर पूरी तरह से ब्रेक लग चुका है। बीते साल 7 अक्टूबर को हुए नरसंहार के बाद अब पूरी तरह स्पष्ट हो चुका है कि तेल अवीव द्वि-राष्ट्र सिद्धांत से पूरी दूरी बना लेगा।
बेनूर हुई हमास नेताओं की चमक
फिलिस्तीन के सियासी मुहाफिज़ों को पूरा अहसास है कि जिन डिप्लोमैटिक चैनलों का इस्तेमाल करके वो फिलिस्तीनी मुद्दे को ग्लोबल पर्सपेक्टिव के केंद्र में लाना चाहते थे, वो कोशिशों पूरी तरह से नेस्तनाबूत हो गयी। अब PLO, हमास और दूसरी कट्टर फिलिस्तीनी तंजीमों के पास पुरानी परिपाटी यानि आंतकवाद पर लौटने के अलावा कोई और चारा नहीं बचा है। जंगी चिंगारियां भड़काने वाले नेता अब कमजोर पड़ने लगे है। गुजरे हफ्ते हमास के बड़े नेताओं में शुमार खालिद मशाल ने फरमान जारी कर फिदायीन हमले करने की बात कही। इस फरमान के बाद एक बड़ी उदारवादी फिलिस्तीनी जमात ने उनके फरमान की मजम्मत करते हुए कहा कि आत्मघाती हमलों के लिए वो अपने बेटों में जंगी मैदान में उतारे।
खुद को मजबूत बनाए रखना फिलिस्तीन के लिए बड़ी चुनौती
हमास का नेतृत्व बड़े पैमाने पर अपंग हो चुका है, कुछ गिने-चुने लोग फिलिस्तीन को प्रासंगिक बनाए रखने के लिए ईरान, लेबनान, हिजबुल्लाह, हूती और वहाबियों की मदद ले रहे हैं। आधुनिक सोच रखने वाली उदारवादी फिलिस्तीनी आवाम़ खालिद मशाल, महमूद अब्बास और फतह नेताओं को पूरी तरह नाकार चुकी है। क्षेत्र की बड़ी आबादी मानने लगी है कि ये लोग तेल अवीव के खिलाफ नाकाम, नाकारा, कमजोर, आलसी और बेअसर हो चुके है। जमीन से उठ रही आवाजें कह रही है कि फिलिस्तीनी प्राधिकरण को यहूदियों ने अपनी कुव्वत के दम पर बेदम कर दिया। साथ ही इस जमात के लोगों का ये मानना है कि इजरायल और फिलिस्तीनी प्राधिकरण के बीच वार्ता, सहयोग और समन्वय की सभी कवायदें रोक देनी चाहिए। इनका ये भी मानना है कि हमास और इस्लामिक जिहाद एक ही सिक्के के दो पहलू है।
इसराइल रक्षा बलों ने बदली सामरिक रणनीति
हमास के आतंकियों को मुंहतोड़ जवाब देने के लिए आईडीएफ ने अपने सामरिक पैटर्न को खासा बदला है। इस्राइली सैन्य बल अब नए तौर तरीकों का इस्तेमाल करने लगे है, इनमें आंतकी लॉन्च पैड्स को तबाह करना, हमले वाली रिहायशी जगह से आम लोगों की निकासी, मिसाइल-ड्रोन हमलों को वक्त रहते नाकाम करना और अन्य सामरिक रणनीतियां खासतौर से शामिल है। गौरतलब है कि जिस तरह से इस्राइली सैन्य बल वेस्ट बैंक और शरणार्थी शिविरों में अपने ऑप्रेशंस को अंजाम दे रहे हैं, उससे दिनोंदिन जख्मी फिलिस्तीनी नागारिकों की तादाद बढ़ती जा रही है।
तेहरान को चुकानी होगी भारी कीमत
वेस्ट बैंक, गाजा, गोलान हाइट्स और कुछ हद तक रामल्ला में हथियारबंद तनातनी के पीछे फिलिस्तीन का प्रॉक्सी तेहरान पेचीदगी से भरी बिसात तैयार कर चुका है। आंतकवाद की इस लहर का जवाब देने के लिए तेल अवीव को कुछ हद तक समानांतर तौर पर कई सामरिक मोर्चें खोलने पड़ सकते है। हमास का खूनी उन्माद 6 मासूम इस्राइलियों की जान लील गया, उसके पागलपन की कीमत मुमकिन तौर पर पूरे मध्य पूर्व को चुकानी होगी, लाजिमी है कि इसके नतीजे बेहद गंभीर होगें। पश्चिम एशिया के नाजुक हालातों के मद्देनजर तनाव को खत्म किया जाना चाहिए। इस समस्या के जड़तोड़ समाधान के लिए जरूरी है कि ईरान तेल अवीव के खिलाफ अपनी करतूतों की कीमत चुकाए, इसमें खासतौर से वेस्ट बैंक शांति और स्थिरता भी जरूरी है।
इस आलेख के लेखक राम अजोर (वरिष्ठ स्वतंत्र पत्रकार एवं समसामयिक मामलों के विश्लेषक) हैं।
डिस्क्लेमर: यह लेखक के अपने विचार हैं। टाइम्स नाउ नवभारत इसके लिए उत्तरदायी नहीं है।
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