किन परिस्थितियों में उम्मीदवार निर्विरोध निर्वाचित होता है? जानिए मुकेश दलाल के बिना लड़े चुनाव जीतने की कहानी
How Candidates Win Unopposed: सूरत सीट से बीजेपी उम्मीदवार मुकेश दलाल के सामने कई कैंडिडेट मैदान मेंं थे। कांग्रेस के खुद दो कैंडिडेट थे, एक मुख्य और एक सब्स्टीट्यूट कैंडिडेड। इसके अलावा बसपा समेत 8 उम्मीदवार और सूरत से मैदान में थे।
सूरत सीट से निर्विरोध जीते मुकेश दलाल
How Candidates Win Unopposed: सूरत सीट पर बीजेपी कैंडिडेट के निर्विरोध जीत के बाद हर ओर इसकी चर्चा हो रही है। बीजेपी ने मतदान और मतगणना से पहले ही अपना खाता खोल लिया है। सूरत सीट से बीजेपी कैंडिडेट मुकेश दलाल के सामने कोई उम्मीदवार खड़ा ही नहीं रह सका, जिसके बाद उन्हें निर्विरोध विजेता घोषित कर दिया गया।
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कैसे निर्विरोध जीतता है उम्मीदवार
निर्विरोध निर्वाचन का सीधा मतलब है कि संबंधित सीट पर कोई विपक्षी उम्मीदवार टिका ही नहीं। किसी भी चुनाव में जब सिर्फ एक ही उम्मीदवार मैदान में रह जाता है, तो उसका निर्वाचन निर्विरोध हो जाता है। इसमें कई तरीके हैं।
- एक उम्मीदवार के अलावा कोई और उम्मीदवार उस सीट से खड़ा ही न हो।
- नामांकन के समय तो और उम्मीदवार पर्चा दाखिल करे, लेकिन बाद में वापस ले ले।
- एक उम्मीदवार को छोड़कर बाकी सभी उम्मीदवारों का पर्चा खारिज हो जाए।
मुकेश दलाल कैसे निर्विरोध जीते
सूरत सीट से बीजेपी उम्मीदवार मुकेश दलाल के सामने कई कैंडिडेट मैदान मेंं थे। कांग्रेस के खुद दो कैंडिडेट थे, एक मुख्य और एक सब्स्टीट्यूट कैंडिडेड। इसके अलावा बसपा समेत 8 उम्मीदवार और सूरत सीट से मैदान में थे। कांग्रेस उम्मीदवार नीलेश कुंभानी का पर्चा प्रस्तावकों के हस्ताक्षर के सत्यापन में विसंगतियों के कारण चुनाव आयोग ने खारिज कर दिया। इसके बाद सब्स्टीट्यूट उम्मीदवार सुरेश पडसाला का नामांकन भी इसी वजह से खारिज हो गया। बाकी बचे 8 उम्मीदवारों ने अपना नामांकन वापस ले लिया। नामांकन वापस लेने की आखिरी तिथि के दिन बसपा उम्मीदवार ने भी पर्चा वापस ले लिया, जिससे मुकेश दलाल सूरत सीट से इकलौते उम्मीदवार बच गए। जिसके बाद मुकेश दलाल को सूरत सीट से विजेता घोषित कर दिया गया।
भाजपा के पहले निर्विरोध विजेता बने मुकेश दलाल
भारत में पहले लोकसभा चुनाव से लेकर अबतक दर्जनों नेता निर्विरोध चुने जा चुके हैं। लेकिन मुकेश दलाल इकलौते ऐसे नेता हैं, जो बीजेपी से लोकसभा चुनाव में निर्विरोध चुने गए हैं। विधायक के पद पर तो बीजेपी के कई नेता निर्विरोध चुने जा चुके हैं। लेकिन सासंद के पद पर मुकेश दलाल ही पहले ऐसे सांसद हैं, जो बीजेपी से आते हैं।
सूरत सीट का इतिहास
सूरत लोकसभा सीट 1951 से अस्तित्व में हैं, यानि कि पहले लोकसभा चुनाव से। शुरुआती कई चुनावों तक कांग्रेस यहां से जीतती रही थी। मोरारजी देसाई जब कांग्रेस छोड़कर जनता पार्टी में गए, तब पहली बार 1977 में कांग्रेस यहां हारी थी। इसके बाद 1980 और 1984 में यह सीट कांग्रेस के खाते में गई। 1889 के बाद से इस सीट पर कमल ही खिलते रहा है। यहां से पहले काशीराम राणा बीजेपी से जीतते रहे, इसके बाद दर्शना जरदोश तीन बार जीतीं। इस बार मुकेश दलाल निर्विरोध जीते।
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