CM केजरीवाल की शक्तियां 'छीनेगा' दिल्ली सेवा विधेयक? जानिए कितना होगा असर

Delhi Services Bill : केंद्र सरकार और दिल्ली सरकार के विवाद को समझने के लिए पहले हमें सबसे पहले अध्यादेश को जानना होगा। दिल्ली में राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार (GNCTD) अधिनियम 1991 लागू है, जो विधानसभा और सरकार के कामकाज को एक संरचना देता है।

Delhi Services Bill

संसद में इस विधेयक को पारित होना है।

Delhi Services Bill : दिल्ली अध्यादेश पर केंद्र और दिल्ली सरकार में टकराव के बीच बिल को लोकसभा में पेश कर दिया गया है। भारी हंगामे के बीच लोकसभा में केंद्रीय मंत्री नित्यानंद राय ने दिल्ली अध्यादेश विधेयक पेश किया। बिल को लेकर विपक्ष के विरोध पर सदन में गृहमंत्री अमित शाह ने कहा की 'भारत के संविधान ने सदन को दिल्ली राज्य के संबंध में कोई भी कानून पारित करने की शक्ति दी है। साथ ही सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने साफ कर दिया कि दिल्ली राज्य को लेकर संसद कोई भी कानून ला सकती है। ऐसे में सारा विरोध सिर्फ राजनीतिक है। इसलिए यह बिल लाने की अनुमति दी जाएं।'
सदन में बिल को लेकर कांग्रेस ने आम आदमी पार्टी का समर्थन करते हुए विरोध जताया। अधीर रंजन चौधरी ने कहा कि 'केंद्र ने बिल को पेश कर संविधान का उल्लघंन करने के साथ ही सर्वोच्च न्यायालय के फैसले को बदलने की कोशिश की है।'
सदन में बिल पेश होने के बाद दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने प्रेस कॉफ्रेंस कर केंद्र सरकार पर आरोप लगाया। केजरीवाल ने कहा, 'केंद्र सरकार का लाया गया अध्यादेश बिल पूरी तरह से गैरकानूनी और गैर संवैधानिक है। ये बिल जनता के खिलाफ है। बिल के खिलाफ केजरीवाल सरकार सुप्रीम कोर्ट का रुख करेगी।'

दिल्ली अध्यादेश क्या है?

केंद्र सरकार और दिल्ली सरकार के विवाद को समझने के लिए पहले हमें सबसे पहले अध्यादेश को जानना होगा। दिल्ली में राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार (GNCTD) अधिनियम 1991 लागू है, जो विधानसभा और सरकार के कामकाज को एक संरचना देता है। साल 2021 में केंद्र सरकार ने बिल की धारा 21, 24, 33 और 44 में संशोधन किया था। धारा 21 में प्रावधान किया गया कि विधानसभा में कोई भी कानून बनेगा तो उसमें मुख्य सरकार की बजाय 'उपराज्यपाल' माना जाएगा। साथ ही, ये भी प्रावधान किया गया कि दिल्ली सरकार की कैबिनेट प्रशासनिक मामलों से जुड़े फैसले नहीं ले सकती।
दरअसल, संविधान के अनुच्छेद 123 के अनुसार राष्ट्रपति को अध्यादेश जारी करने की शक्तियों का जिक्र है। अगर कोई ऐसा विषय है जिसपर तत्काल प्रभाव से कानून बनाने की जरूरत है, लेकिन संसद का सत्र नहीं चल रहा है। तो ऐसे में अध्यादेश के तहत कानून बनाया जाता है। इसमें महत्वपूर्ण बात ये है कि इस अध्यादेश का महत्व सदन में पारित किए कानून जितना ही होता है। इसे पारित करते वक्त इस बात का ध्यान रखा जाता है कि कानून के कारण किसी भी तरह से नागरिकों के मूल अधिकार का हनन ना हो रहा हो।
अध्यादेश के साथ एक शर्त भी जुड़ी होती है। चूंकि कानून बनाने का अधिकार संसद के पास है। ऐसे में अध्यादेश को संसद की मंजूरी की जरूरत होती है। जिसके लिए अध्यादेश जारी होने के छह महीने के भीतर इसे संसद से पारित कराना जरूरी होता है। अध्यादेश के जरिए बनाए गए कानून को कभी भी वापस लिया जा सकता है।

केंद्र के अध्यादेश से दिल्ली सरकार को नुकसान

सदन में बिल पेश करने से पहले केंद्र सरकार ने अध्यादेश में कुछ बदलाव किए। इसमे सबसे महत्वपूर्ण नेशनल कैपिटल टेरिटरी ऑफ दिल्ली एक्ट में बदलाव किया गया है। अगर सरल शब्दों में कहें तो इस अध्यादेश में अधिकारियों की ट्रांसफर और पोस्टिंग मामले में आखिरी फैसला लेने का अधिकार उपराज्यपाल को दिया गया है।
इसके तहत अखिल भारतीय सेवाओं और दिल्ली, अंडमान-निकोबार, लक्षद्वीप, दमन एंड दीव, दादरा एंड नागर हवेली सिविल सर्विसेस (DANICS) से संबंधित अधिकारियों की नियुक्ति और तबादले के लिए 'राष्ट्रीय राजधानी लोक सेवा प्राधिकरण' गठित किया जाएगा। जिसमें मुख्यमंत्री, मुख्य सचिव और गृह प्रधान सचिव होंगे। मुख्यमंत्री को प्राधिकरण का अध्यक्ष बनाया जाएगा। ये प्राधिकरण सभी ग्रुप के अधिकारियों के तबादले और नियुक्ति पर फैसला ले सकता है, लेकिन इसपर आखिरी फैसला LG का होगा।
यानी साफ है की अगर एलजी को प्राधिकरण का फैसला सही नहीं लगता तो वो उसे बदल कर वापस लौटा सकता है। और अगर सहमति नहीं बनती तो आखिरी फैसला LG का ही होगा।

केंद्र सरकार बनाम उपराज्यपाल

दिल्ली में केजरीवाल सरकार और उपराज्यापल के बीच जंग कोई नई नहीं है। दरअसल, इसकी शुरुआत तब ही हो गई थी जब दिल्ली के उपराज्यपाल की कु्र्सी पर नजीब जंग थे। 2015 में तत्कालीन उपराज्यपाल नजीब जंग ने अधिकारियों को मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के एक आदेश को मानने से मना किया। जिसमें पुलिस, पब्लिक आर्डर और जमीन से जुड़े सभी मामलों की फाइलें उनके माध्यम से एलजी को भेजने के लिए निर्देश दिया गया था। और जब नए उपराज्यपाल विनय कुमार सक्सेना ने LG का पद संभाला, तो करीब एक हफ्ते बाद से ही इसकी बानगी देखने को मिलने लगी।

बिल पास होने पर दिल्ली सरकार को नुकसान

विधेयक में दिल्ली सरकार के लिए केंद्र सरकार को भेजे जाने वाली सालाना रिपोर्ट करने के लिए अध्यादेश के तहत अनिवार्य आवश्यकता को हटाया गया है। साथ ही जो प्रस्ताव या मामला केंद्र को भेजा जाता है। उसमें मंत्रियों के आदेशों, निर्देशों को LG और दिल्ली के मुख्यमंत्री के समक्ष रखने की अनिवार्यता को भी हटा दिया गया है।
विधेयक के अनुसार ब्यूरोक्रेसी का पूरा अधिकार उपराज्यापल के पास होगा। ऐसे में किसी चीज पर सहमति बना पाना मुश्किल होगा। और केजरीवाल को किसी भी तरीकें के एक्शन के लिए उपराज्यपाल के सहमति की जरूरत होगी।

क्या सुप्रीम कोर्ट खारिज कर सकता है कानून?

अब इस पूरे अध्यादेश में महत्वपूर्ण बात यह है की अगर संसद में बिल पास होता है, तो क्या सुप्रीम कोर्ट कानून को रद्द कर सकता है। तो हां, यदि कोई कानून संविधान के प्रावधानों के विपरीत पाया जाता है, तो उस कानून को न्यायपालिका द्वारा असंवैधानिक या अवैध घोषित किया जा सकता है। अगर किसी कानून में मौलिक अधिकारों को उल्लघंन हो रहा हो, तो उसको आधार बनाकर कानून पर रोक लगाई जा सकती है।
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सोनाली ठाकुर author

मैं सोनाली ठाकुर टाइम्स नाउ नवभारत में बतौर सीनियर रिपोर्टर कार्यरत हूं। मेरी महिलाओं से जुड़े मुद्दों के साथ-साथ एंटरटेनमेंट और ऐतिहासिक मुद्दों पर भ...और देखें

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