कभी ईरान और इजराइल में थी गहरी दोस्ती और आज हैं जंग के मुहाने पर खड़े, 10 प्वाइंट में समझिए कट्टर दुश्मनी की कहानी

Israel Iran Relations: ​एक दौर था जब ईरान, इजराइल के साथ तब खड़ा था, तब ज्यादातर अरब देश उसके खिलाफ थे। 1948 में इजराइल की स्थापना के बाद उसे मान्यता देने वाला ईरान दूसरा मुस्लिम-बहुल देश था।

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इजराइल और ईरान के बीच जंग के आसार

Israel Iran Relations: ईरान और इजराइल के बीच जंग की आशंका है। ईरान और इजराइल के बीच रिश्ते तल्ख हो रखे हैं। दोनों बिना स्वीकार किए एक दूसरे के खिलाफ हमले कर चुके हैं, जिसमें जनरल, सेना के जवान से लेकर वैज्ञानिक तक मारे जा चुके हैं। ईरान, हमलों के लिए इजराइल पर आरोप लगाता है और इजराइल, ईरान पर। आज भले ही ये दोनों देश एक दूसरे के कट्टर दुश्मन बने हुए हैं, लेकिन एक समय था, जब दोनों के बीच गहरी दोस्ती थी, एक दूसरे के साथ खड़े रहते थे, लेकिन आज एक दूसरे को मिटाने पर तुले हैं। आइए समझते हैं कैसे ईरान और इजराइल की दोस्ती दुश्मनी में बदल गई।

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1. ईरान- इजराइल संबंध

ईरान और इजराइल के बीच संबंधों को चार प्रमुख चरणों में विभाजित किया जा सकता है। 1947 से 1953 तक द्विपक्षीय अवधि, 1953 से 1979 तक पहलवी राजवंश के युग के दौरान दोस्ती वाला समय, 1979 से 1990 तक ईरानी क्रांति के बाद दोस्ती से दुश्मनी, और 1991 में खाड़ी युद्ध की समाप्ति के बाद से खुली शत्रुता का दौर जारी है।

2. इजराइल को मान्यता देने वाला दूसरा मुस्लिम देश

एक दौर था जब ईरान, इजराइल के साथ तब खड़ा था, तब ज्यादातर अरब देश उसके खिलाफ थे। 1948 में इजराइल की स्थापना के बाद उसे मान्यता देने वाला ईरान दूसरा मुस्लिम-बहुल देश था। ईरान उस विशेष संयुक्त राष्ट्र समिति के 11 सदस्यों में से एक था जिसे 1947 में क्षेत्र पर ब्रिटिश नियंत्रण समाप्त होने के बाद फिलिस्तीन के लिए समाधान तैयार करने के लिए गठित किया गया था। यह फिलिस्तीन के लिए संयुक्त राष्ट्र की विभाजन योजना के खिलाफ मतदान करने वाले 13 देशों में से एक था, अल जज़ीरा की एक रिपोर्ट के अनुसार ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के इतिहासकार एरिक क्विंडेसलैंडने कहा- "ईरान, भारत और यूगोस्लाविया के साथ, एक वैकल्पिक योजना, एक संघीय समाधान लेकर आया, जो फिलिस्तीन को एक संसद के साथ एक राज्य के रूप में रखने के बारे में था, लेकिन अरब और यहूदी छावनियों में यह विभाजित था।"

3. जब बिगड़ी ईरान और इजराइल के बीच स्थिति

1979 की इस्लामी क्रांति के बाद, ईरान ने इजराइल के साथ सभी राजनयिक और वाणिज्यिक संबंध तोड़ दिए। अयातुल्ला रूहुल्लाह मुसावी खुमैनी के सत्ता में आने के बाद इजराइल को ईरान में "छोटा शैतान" और अमेरिका को "महान शैतान" के रूप में जाना जाने लगा।

4. जब टूटे ईरान और इराक के बीच संबंध

तेहरान ने इजराइल के साथ सभी संबंध तोड़ दिए। नागरिक अब यात्रा नहीं कर सकते थे और फ्लाइट रद्द कर दिए गए। तेहरान में इजरायली दूतावास को फिलिस्तीनी दूतावास में बदल दिया गया।

5. फिलिस्तीन के साथ खड़ा हुआ ईरान

खुमैनी ने मुसलमानों के पवित्र महीने रमजान के हर आखिरी शुक्रवार को क़ुद्स दिवस के रूप में घोषित किया और तब से पूरे ईरान में फिलिस्तीनियों के समर्थन में उस दिन बड़ी रैलियां आयोजित की जाती रही हैं। जेरूसलम को अरबी में अल-कुद्स के नाम से जाना जाता है।

6. ईरान-इजराइल प्रॉक्सी वॉर

1985 से, ईरान और इजराइल के बीच एक शैडो वॉर चल रहा है। इसमें ईरानी और इजराइली संगठनों के बीच प्रत्यक्ष सैन्य टकराव शामिल है। ईरान का परमाणु कार्यक्रम कुछ सबसे बड़े हमलों के केंद्र में रहा है। इजराइल इसे रोकने के लिए प्रतिबद्ध दिखा है। जिसे लेकर कई हमले हो चुके हैं।

7. बीच में सुधार के प्रयास

1997 में निर्वाचित सुधारवादी ईरानी राष्ट्रपति मोहम्मद ख़ातमी के तहत, कुछ लोगों का मानना था कि ईरान-इजराइल संबंधों में सुधार आया था, या कोशिश हुई थी। खातमी ने इजराइल को "अवैध राज्य" और "परजीवी" कहा, लेकिन 1999 में यह भी कहा कि यहूदी "ईरान में सुरक्षित" होंगे और सभी धार्मिक अल्पसंख्यकों की रक्षा की जाएगी। एक रिपोर्ट से संकेत मिलता है कि ईरान ने 2003 में संयुक्त राज्य अमेरिका को एक प्रस्ताव में अपने अस्तित्व को मान्यता देकर इजराइल के साथ मेल-मिलाप शुरू करने की कोशिश की थी। रिपोर्ट में दावा किया गया है कि इजरायल के साथ ईरान के शांति प्रस्ताव को अमेरिका ने स्वीकार नहीं किया।

8. अयातुल्ला अली खामेनेई के तीखे बयान

दिसंबर 2000 में, अयातुल्ला अली खामेनेई ने इजराइल को एक "कैंसर ट्यूमर" कहा था जिसे क्षेत्र से हटाना जरूरी है। 2005 में, उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि "फिलिस्तीन फिलिस्तीनियों का है, और फिलिस्तीन का भाग्य भी फिलिस्तीनी लोगों द्वारा निर्धारित किया जाना चाहिए"। ईरानी राजनीति के कट्टरपंथी महमूद अहमदीनेजाद के चुनाव के बाद, इजराइल के साथ संबंध तेजी से तनावपूर्ण हो गए। माना जाता है कि 2006 के लेबनान युद्ध के दौरान, ईरानी रिवोल्यूशनरी गार्ड्स ने इजराइल पर उनके हमलों में हिजबुल्लाह लड़ाकों की सीधे सहायता की थी।9. आज के समय में हालात

इतना ही नहीं ईरान पर जहां गाजा में हमास को मजबूत करने का आरोप लगते रहा है, वहीं यमन में हूती विद्रोहियों को भी खड़ा होने में ईरान का हाथ माना जाता है। आज की तारीख में इजराइल जहां हमास से जंग में उलझा है, वहीं लेबनान साइड से हिजबुल्लाह ने भी हमला बोल रखा है। हूती विद्रोही लाल सागर में अमेरिका और उसके साथी देशों के टैंकरों पर हमला बोल रहे हैं।

10. ईरान-इजराइल सैन्य ताकत

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार ईरान के पास करीब 5.75 लाख लोगों की एक्टिव सेना है। ईरान के पास करीब 3.50 लाख की रिजर्व फोर्स है। ईरान के सैन्य बेड़े में करीब 4071 टैंक्स हैं। ईरान के पास 541 एयरक्राफ्ट्स हैं, जिसमें 196 लड़ाकू विमान हैं। इजरायल के पास मात्र 1.73 लाख लोगों की एक्टिव सेना है। इजरायल के पास करीब 4.65 लाख की रिजर्व फोर्स है। इजराइल के पास 2200 से ज्यादा टैंक्स हैं। इजराइल के पास 601 एयरक्राफ्ट्स हैं, जिसमें से 241 लड़ाकू विमान हैं।

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शिशुपाल कुमार author

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