57 साल में पहली बार नेहरू-गांधी परिवार का कोई सदस्य पहुंचा राज्यसभा, जानें कैसे हुई थी सियासत में सोनिया गांधी की एंट्री

Sonia Gandhi: राज्यसभा से मनमोहन सिंह 'आउट' हो चुके हैं और सोनिया गांधी की पहली बार राज्यसभा में एंट्री हुई है। क्या आप जानते हैं कि जो सोनिया कभी राजीव गांधी के राजनीति में आने के फैसले के भी खिलाफ थीं, वो आखिर सियासत से कैसे जुड़ी थीं? 57 साल में ऐसा पहली बार हुआ है, जब गांधी-नेहरू परिवार का कोई सदस्य राज्यसभा पहुंचा हो।

Siyasi Kisse Sonia Gandhi

जब सोनिया गांधी ने सियासत में रखा कदम।

Nehru-Gandhi Family History: सोनिया गांधी ने कांग्रेस के इतिहास में एक नया अध्याय लिख दिया है। 57 सालों में ऐसा पहली बार हुआ है, जब गांधी-नेहरू परिवार का कोई सदस्य राज्यसभा पहुंचा हो। सोनिया से पहले इस परिवार से उनकी सास यानी इंदिरा गांधी तीन साल तक राज्यसभा सांसद रही हैं। यानी 1967 से अब तक कोई भी इस परिवार का सदस्य राज्यसभा का सदस्य नहीं रहा है। क्या आप जानते हैं कि वो सोनिया जो अपने पति राजीव गांधी के राजनीति में आने के खिलाफ थीं, उन्होंने खुद सियासत में कैसे कदम रखा। इतना ही नहीं उन्होंने सबसे लंबे समय तक पार्टी के अध्यक्ष पद पर रहने का रिकॉर्ड भी अपने नाम किया।

कांग्रेस के सामने बार-बार खड़ा हुआ नेतृत्व का संकट

वो दौर था जब इंदिरा गांधी के छोटे बेटे संजय गांधी को उनका उत्तराधिकारी और कांग्रेस का भविष्य माना जाता था, कहा जाता था कि सियासत में वो इंदिरा के लिए किसी रीढ़ की हड्डी से कम नहीं थे। जब लाल बहादुर शास्त्री के बाद इंदिरा ने प्रधानमंत्री की कुर्सी संभाली तो कांग्रेस में कलह का दौर शुरू हो गया। आयरन लेडी के नाम से मशहूर रही इंदिरा के खिलाफ मोरारजी देसाई, जय प्रकाश नारायण जैसे नेताओं ने मोर्चा खोल दिया। उस वक्त इंदिरा अपने फैसलों पर अडिग रहने के लिए जानी जाती थीं। यही वजह है कि एक बार मोरारजी देसाई ने उनके लिए ये तक कह दिया था कि 'छोकरी मानती नहीं...' कांग्रेस के कई बड़े नेताओं ने अपनी अलग राह चुन ली। इंदिरा और संजय दोनों ही कांग्रेस के सबसे बड़े आधार बन चुके थे। भारत में आपातकाल के समय इंदिरा के छोटे बेटे की भूमिका बहुत विवादास्पद रही। इसी बीच 23 जून, 1980 को एक हेलिकॉप्टर दुर्घटना में संजय गांधी की मौत हो गई।

कहा जाता है कि संजय गांधी की मौत के बाद इंदिरा गांधी पूरी तरह से टूट गई थीं। उन्होंने किसी तरह चार साल सत्ता की बागडोर अपने हाथों में रखी, लेकिन इंदिरा गांधी के आदेश पर 1 से 8 जून 1984 के बीच भारतीय सेना द्वारा ऑपरेशन ब्लू स्टार को अंजाम दिया गया। सिख उग्रवादी जरनैल सिंह भिंडरावाले और अन्य सिख अलगाववादियों को पंजाब के अमृतसर में सिख धर्म के सबसे पवित्र स्थल हरमंदिर साहिब के स्वर्ण मंदिर से हटाने के लिए ये सैन्य अभियान चलाया गया था। इसी के बाद इंदिरा के सिख बॉडीगार्ड्स (अंगरक्षकों) सतवंत सिंह और बेअंत सिंह ने उनकी हत्या कर दी थी। ये बात 31 अक्टूबर, 1984 की है, जब सुबह साढ़े 9 बजे नई दिल्ली के सफदरजंग रोड स्थित उनके आवास पर इस वारदात को अंजाम दिया गया था। अब इंदिरा गांधी के बड़े बेटे यानी राजीव गांधी के राजतिलक का वक्त था। राजीव ने जब राजनीति में कदम रखा तो उनकी पत्नी सोनिया गांधी उनके इस फैसले से नाराज हो गई थीं, क्योंकि वो नहीं चाहती थीं कि राजीव राजनीति में आएं।

सोनिया नहीं चाहती थीं, राजनीति में आएं राजीव गांधी

पत्रकार रशीद किदवई ने अपनी किताब और सोनिया गांधी की जीवनी, 'सोनिया: ए बायोग्राफी' में इस बात का जिक्र किया है कि राजीव के राजनीति में आने के फैसले के खिलाफ खुद उनकी पत्नी सोनिया गांधी थीं। उन्होंने किताब में लिखा है कि 'शायद सोनिया ने राजनीति में मेनका की एंट्री रोकी लेकिन वो राजीव गांधी के संजय गांधी की जगह लेने के भी उतने ही खिलाफ थीं। एक बार तो उन्होंने राजीव गांधी को धमकी दे डाली थी कि अगर वो राजनीति में प्रवेश करेंगे तो वो उनकी जिंदगी से निकल जाएंगी।'

राजीव के राजनीति में आने पर सोनिया का रिएक्शन

सोनिया गांधी के हवाले से किदवई ने अपने किताब में ये तक लिखा कि 'मैंने मां के प्रति राजीव के कर्तव्य को समझा। उसी वक्त मुझे यह भी एहसास हुआ कि मैं उस वक्त के सिस्टम से नाराज़ थी, जैसा कि मैं देख रही थी, राजीव गांधी को बली का बकरा बनाया जा रहा था। मैं बिल्कुल निश्चिंत थी कि राजनीति उन्हें बर्बाद कर देगी।'

सोनिया का मानना है कि उस वक्त राजीव ने समझा कि इंदिरा की जगह लेने के लिए कोई दूसरा योग्य व्यक्ति नहीं है। जबकि इंदिरा गांधी ने खुद कई मौकों पर राजीव के बारे में इस बात पर बल दिया था कि वो एक अराजनीतिक व्यक्ति हैं। हालांकि राजीव गांधी ने जब पीएम की कुर्सी संभाली तो वो एक बेहतर प्रधानमंत्री बनकर उभरे। पूर्व कैबिनेट और रक्षा सचिव नरेश चंद्रा ने खुद इस बात का जिक्र किया था कि वो एक अच्छे प्रशासक हैं। सैम पित्रोदा की मदद से राजीव को भारत में संचार क्रांति लाने का श्रेय भी दिया जाता है। कई अधिकारियों ने ये बात कही कि वो नौकरशाहों से बेहतर तरीके से फाइल वर्क करवाते थे।

राजीव की मौत के बाद भी राजनीति से दूर रहीं सोनिया

21 मई, 1991... यही वो तारीख थी, लिबरेशन टाइगर्स ऑफ़ तमिल ईलम नामक आतंकवादी संगठन के आतंकवादियों ने चुनाव प्रचार के दौरान राजीव गांधी की एक बम धमाके में हत्या कर दी थी। अपने पति राजीव की हत्या के कई साल बाद तक भी सोनिया ने सियासत से दूरी बनाकर रखी। कांग्रेस नेतृत्व ने कई दफा सोनिया को राजनीति में आने की सलाह दी, लेकिन वो बार-बार इनकार करती रहीं। उन्होंने नेतृत्व के आमंत्रण को करीब 6 सालों तक ठुकराया। पार्टी के काफी अनुरोध के बाद आखिरकार वर्ष 1997 में उन्होंने राजनीति में शामिल होने का फैसला किया। राजनीति में कदम रखने के अगले ही वर्ष उन्हें कांग्रेस पार्टी की अध्यक्ष के रूप में नामांकित किया गया, उन्हें जीतेंद्र प्रसाद की जगह कांग्रेस अध्यक्ष चुना गया। हालांकि उन दिनों सोनिया के राजनीति में आते ही कांग्रेस में एक बार फिर दो फाड़ हो गया। शरद पवार और ममता बनर्जी जैसे नेताओं ने अपनी अलग राह बनाई।

पहली बार राज्यसभा सांसद बनीं सोनिया गांधी

कांग्रेस संसदीय दल की चेयरपर्सन सोनिया गांधी ने पहली बार राज्यसभा सांसद के लिए शपथ ली, वो राजस्थान से राज्यसभा सदस्य चुनी गई हैं। सोनिया गांधी लगातार लोकसभा चुनाव लड़कर संसद पहुंचती रही हैं, लेकिन ये पहला मौका है जब वह राज्यसभा सांसद के तौर पर संसद में नजर आएंगी। सोनिया राज्यसभा के लिए राजस्थान से निर्विरोध चुनी गई हैं। वह 1999 से लगातार लोकसभा चुनाव जीतती आ रही थीं।

अमेठी और रायबरेली सीट से रहा है सोनिया का नाता

सोनिया गांधी 1999 में उत्तर प्रदेश की अमेठी लोकसभा सीट से जीतकर लोकसभा पहुंचीं थीं। इसके बाद सोनिया ने अपनी सास और पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के चुनावी क्षेत्र रह चुके रायबरेली सीट को अपने संसदीय क्षेत्र के रूप में चुना। सोनिया रायबरेली सीट से वर्ष 2004, 2009, 2014 और 2019 में चुनाव लड़कर लोकसभा पहुंची थी। अब लगभग 57 साल बाद ये पहला मौका है, जब नेहरू-गांधी परिवार का कोई सदस्य राज्यसभा पहुंचा हो। सोनिया गांधी से पहले पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी व उमा नेहरू राज्यसभा पहुंची थीं।

मनमोहन सिंह Out, सोनिया गांधी In

एक ओर जहां सोनिया गांधी की राज्यसभा में एंट्री हो रही है, वहीं दूसरी ओर कांग्रेस नेता और पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह 3 अप्रैल को राज्यसभा से रिटायर हो गए। दो बार देश के प्रधानमंत्री रहे 91 वर्षीय मनमोहन सिंह के लिए बतौर सांसद यह आखिरी पारी थी। मनमोहन सिंह लगभग 33 वर्ष तक राज्यसभा के सांसद रहे। उन्होंने भारतीय अर्थव्यवस्था में नई वित्तीय व प्रशासनिक सुधारों की शुरुआत की। वर्ष 1991 में वह पहली बार राज्यसभा के सदस्य बने थे। उसी साल वह 1991 से 1996 तक तत्कालीन नरसिम्हा राव सरकार में वित्त मंत्री और 2004 से 2014 तक भारत के प्रधानमंत्री रहे।

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आयुष सिन्हा author

मैं टाइम्स नाउ नवभारत (Timesnowhindi.com) से जुड़ा हुआ हूं। कलम और कागज से लगाव तो बचपन से ही था, जो धीरे-धीरे आदत और जरूरत बन गई। मुख्य धारा की पत्रक...और देखें

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