जिस रोहिंग्या को मार कर भगाया था, अब उसी की शरण में क्यों पहुंची म्यामांर सेना; समझिए कैसे बदल गए 6 सालों में हालात

Rohingya Muslim: रोहिंग्या एक ऐसी जातीय समूह है जो सदियों पहले बांग्लादेश से बर्मा पहुंची थी। तब बर्मा भी भारत का हिस्सा था। रोहिंग्या बौद्ध बहुल म्यांमार में सदियों से रह रहे हैं। वर्तमान में, दक्षिण पूर्व एशियाई देश में लगभग 1.1 मिलियन रोहिंग्या हैं।

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रोहिंग्या मुसलमानों की शरण में क्यों पहुंची म्यांमार सेना

मुख्य बातें
  • म्यांमार की सेना को देश के अन्य हिस्सों में भी विद्रोही ताकतों से काफी नुकसान हुआ है।
  • हाल ही में सेना के हाथों से म्यावाड्डी शहर निकल गया है, ये व्यापार के लिए काफी महत्वपूर्ण मार्ग है।
  • म्यांमार सेना रोहिंग्या मुसलमानों को जबरदस्ती भर्ती कर रही है, ताकि विद्रोहियों से जीत हासिल हो सके।

Rohingya Muslim: कुछ सालों पहले जिन रोहिंग्या मुसलमानों को म्यांमार की सेना ने बांग्लादेशी कहकर देश से मार-मार कर भगा दिया था, घर जला दिए थे, कैंपों में ठूंस दिया था, अब उसी की शरण में म्यांमार सेना अपनी जान बचाने के लिए पहुंची है। आखिर छह सालों में ऐसा क्या हो गया कि जिन रोहिंग्या मुसलमानों से म्यांमार की सेना नफरत करती थी, उसी से मदद मांग रही है।

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रोहिंग्या को आर्मी में भर्ती कर रही म्यांमार की सेनाम्यांमार में अब एक अलग ही कहानी सामने आई है। जिसे सेना मार रही थी, उसी को अब अपनी बटालियन में भर्ती कर रही है। बीबीसी की एक रिपोर्ट के अनुसार रखाइन राज्य में रहने वाले रोहिंग्याओं में से कम से कम 100 को हाल के हफ्तों में संकटग्रस्त जुंटा (म्यांमार के सैन्य शासक) के लिए लड़ने के लिए भर्ती किया गया है। सेना ने डर के कारण इन सभी के नाम भी बदल दिए गए हैं, इनकी पहचान बदल दी है। ह्यूमन राइट्स वॉच के अनुसार म्यांमार सेना ने फरवरी 2024 से रखाइन राज्य से 1,000 से अधिक रोहिंग्या मुस्लिमानों का अपहरण किया है और उन्हें जबरन सेना में भर्ती किया गया है। जुंटा एक भर्ती कानून का उपयोग कर रहा है जो केवल म्यांमार के नागरिकों पर लागू होता है, हालांकि 1982 के नागरिकता कानून के तहत रोहिंग्या को लंबे समय से नागरिकता से वंचित रखा गया है।

म्यांमार में सेना की हालत खराब

ह्यूमन राइट्स वॉच को एक रोहिंग्या ने बताया कि उन्हें रात के समय छापे मारकर उठाया गया, नागरिकता के झूठे वादे किए गए, गिरफ्तारी, अपहरण और पिटाई की धमकी भी दी गई। सेना इन्हें मामूली ट्रेनिंग दे रही है और उन विद्रोहियों से सामने लड़ने भेज दे रही है, जिसके सामने उसकी हालत खराब है। नवंबर 2023 में रखाइन राज्य में शुरू हुई जुंटा और अराकान आर्मी सशस्त्र समूह के बीच बढ़ती लड़ाई में इन लोगों को भेजा गया है, जिसमें कई लोगों की मौत भी हो गई है।

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कई इलाकों पर विद्रोहियों का कब्जा

म्यांमार की सेना को देश के अन्य हिस्सों में भी विद्रोही ताकतों से काफी नुकसान हुआ है। हाल ही में सेना के हाथों से म्यावाड्डी शहर निकल गया है।देश का अधिकांश स्थलीय व्यापार इसी महत्वपूर्ण मार्ग से होकर गुजरता है। इससे सेना को काफी घाटा हुआ है। अब इसी लड़ाई में लड़ने के लिए म्यांमार सेना रोहिंग्या मुसलमानों को जबरदस्ती भर्ती कर रही है। जुंटा ने भी बड़ी संख्या में सैनिक खोये हैं। वे मारे गए हैं, घायल हुए हैं, आत्मसमर्पण कर चुके हैं या विद्रोही गुट के साथ चले गए हैं।

कौन हैं रोहिंग्या

रोहिंग्या एक ऐसी जातीय समूह है जो सदियों पहले बांग्लादेश से बर्मा पहुंचा था। तब बर्मा भी भारत का हिस्सा था। रोहिंग्या बौद्ध बहुल म्यांमार में सदियों से रह रहे हैं। वर्तमान में, दक्षिण पूर्व एशियाई देश में लगभग 1.1 मिलियन रोहिंग्या हैं। रोहिंग्या लोग रोहिंग्या भाषा बोलते हैं, जो एक ऐसी बोली है, जो पूरे म्यांमार में बोली जाने वाली अन्य भाषाओं से अलग है। उन्हें देश के 135 आधिकारिक जातीय समूहों में से एक नहीं माना जाता है और रोहिंग्या को म्यांमार में नागरिकता से वंचित कर दिया गया है, जिसके कारण वो अपने ही देश में शरणार्थी बनकर रह गए।

नहीं मिलती है रोहिंग्या को नागरिकता

अंग्रेजों से आजादी के तुरंत बाद म्यांमार ने केंद्रीय नागरिकता अधिनियम पारित किया था, जिसमें परिभाषित किया गया कि कौन सी जातियां नागरिकता प्राप्त कर सकती हैं। येल लॉ स्कूल में इंटरनेशनल ह्यूमन राइट्स क्लिनिक की 2015 की रिपोर्ट के अनुसार, इसमें रोहिंग्या को शामिल नहीं किया गया। हालांकि, अधिनियम ने उन लोगों को पहचान पत्र के लिए आवेदन करने की अनुमति दी जिनके परिवार कम से कम दो पीढ़ियों से म्यांमार में रह रहे थे। 1962 में म्यांमार में सैन्य तख्तापलट के बाद, रोहिंग्या के लिए चीजें खराब होने लगीं। सेना ने सभी नागरिकों को राष्ट्रीय पंजीकरण कार्ड प्राप्त करना आवश्यक कर दिया। रोहिंग्याओं को केवल विदेशी पहचान पत्र दिए गए, जिससे उनके पास सुविधाएं सीमित हो गई।

बिना अनुमति कहीं नहीं जा सकते

म्यांमार में लगभग सभी रोहिंग्या पश्चिमी तटीय राज्य रखाइन में रहते हैं और उन्हें सरकारी अनुमति के बिना वहां से जाने की अनुमति नहीं है। यह देश के सबसे गरीब राज्यों में से एक है, जहां यहूदी बस्ती जैसे शिविर हैं और बुनियादी सेवाओं और अवसरों की कमी है। जारी हिंसा और उत्पीड़न के कारण, कई दशकों के दौरान हजारों रोहिंग्या पैदल या नाव के सहारे पड़ोसी देशों में भागकर पहुंच गए हैं और शरण लिए हुए हैं।

लाखों रोहिंग्या दूसरे देशों में शरण लेने को मजबूर

ह्यूमन राइट्स वॉच के मुताबिक 730,000 से अधिक रोहिंग्या, म्यांमार में सेना के जुल्मों से तंग आकर बांग्लादेश में शरण लिए हैं। जबकि लगभग 600,000 लोग म्यांमार में ही कैंपों में रहने को मजबूर हैं। अगस्त 2017 से म्यांमार सैनिकों ने रोहिंग्या के घरों को जलाने से पहले योजनाबद्ध तरीके से उनकी हत्या की और रोहिंग्या समुदाय के महिलाओं और लड़कियों साथ बलात्कार किया। कुल मिलाकर, सुरक्षा बलों ने हजारों लोगों को मार डाला और लगभग 400 गांवों को जला दिया।

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शिशुपाल कुमार author

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