जिस अमेरिका के सहारे रूस को हराने का सपना देख रहा था यूक्रेन, उसी ने झटक दिया अब हाथ, यूरोप भी फंसा
साफ है कि ट्रंप के रवैये के कारण तीन साल के रूस-यूक्रेन युद्ध ने न सिर्फ यूक्रेन को बल्कि पूरे यूरोप के सामने एक बड़ा संकट खड़ा कर दिया है। नाटो गठबंधन पर सवाल खड़ा कर दिया है।



यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की
यूक्रेन, रूस के साथ जिस लड़ाई को अमेरिका के भरोसे लड़ रहा था, अब वो अमेरिका पीछे हट चुका है। अमेरिका साफ कर चुका है कि यूक्रेन रूस के साथ समझौता करे। अब यूक्रेन के आगे सांप-छछूंदर वाली कहानी है, वो अमेरिकी मदद के बिना लड़ नहीं सकता है और रूस से समझौता कर नहीं सकता है। व्हाइट हाउस में डोनाल्ड ट्रंप और वोलोदिमीर जेलेंस्की की तीखी बहस ने दो अहम सवालों को जन्म दिया है। पहला - बिना अमेरिकी मदद यूक्रेन रूस का सामना कैसे करेगा, दूसरा - उस नाटो का भविष्य क्या होगा जिसमें शामिल होने के लिए जेलेंस्की ने रूस के साथ वो जंग मोल ले ली जो आज यूक्रेन के लिए अस्तित्व का सवाल बन गई।
ये भी पढ़ें- जिस दुश्मन को इजरायल ने नंबर-2 मान ईरान को बनाई थी घेरने की चाल, उसी ने यहूदी राष्ट्र को दी सबसे बड़ी मात
न यूक्रेन को पूछ रहा अमेरिका न यूरोप को
हालांकि शुक्रवार को व्हाइट हाउस में जो कुछ हुआ उसे देखकर अधिक हैरानी नहीं हुई क्योंकि ट्रंप लगातार यूक्रेन और जेलेंस्की को निशाने पर ले रहे हैं और जंग के लिए कीव को जिम्मेदार बता रहे थे। वह जेलेंस्की को तानाशाह तक कह चुक हैं। ट्रंप ने रूस के साथ यूक्रेन संकट पर शांति वार्ता शुरू कर दी। रियाद में हुई इस बातचीत में यूक्रेन सहित किसी यूरोपीय देश को शामिल नहीं किया गया।
यूएस-यूक्रेन गठबंधन गिर चुका है
पूर्व राष्ट्रपति जो बाइडेन के शासनकाल में जो यूएस-यूक्रेन गठबंधन मजबूती से खड़ा था वो अब भरभरा कर गिर गया है। सभी जानकार इस बात पर सहमत है कि बिना अमेरिकी मदद के यूक्रेन के लिए रूस से युद्ध जीतना करीब-करीब असंभव है।
जेलेंस्की के सामने बड़ा सवाल
जेलेंस्की ने शायद अपने राष्ट्रपति काल की सबसे बड़ी चुनौती को शुक्रवार को झोला। अब उनके सामने क्या विकल्प हैं? जानकार मानते हैं आगे की राह बहुत मुश्किल है - उन्हें या तो जादुई तरीके से अमेरिका-यूक्रेन रिश्तों में आई दरार को भरना होगा, या किसी तरह अमेरिका के बिना अपने देश को बचना होगा। एक रास्ता - पद छोड़ देना भी हो सकता है, किसी और को देश का नेतृत्व करने का मौका देना। बाकी ऑप्शन के मुकाबले यह आसान विक्लप है। लेकिन इसमें खतरे भी बहुत हैं। सत्ता से हटना मॉस्को को फायदा पहुंचा सकता है, क्योंकि ऐसा करने से अग्रिम मोर्चे पर संकट पैदा हो सकता है, राजनीतिक स्पष्टता खत्म हो सकती है, कीव में सरकार की वैधता भी प्रभावित हो सकती है, युद्ध के दौरान एक पारदर्शी चुनाव कराना भी बहुत बड़ी चुनौती है जिससे पार पाना मुश्किल है। जिस तरह यूक्रेन का भविष्य अंधेरे में दिख रहा है उसी तरह उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन (नाटो) का क्या होगा यह भी सवालों के घेरे में आ गया है।
अमेरिका तोड़ देगा यूरोप से वादा?
यूक्रेन के बाहर यूरोपीय सुरक्षा के लिए अमेरिका की प्रतिबद्धता के बारे में कई संदेह और सवाल खड़े हो गए हैं। सबसे बड़ा प्रश्न यह है कि क्या राष्ट्रपति ट्रंप अपने पूर्ववर्ती हैरी ट्रूमैन की तरफ से 1949 में किए गए उस वादे को निभाएंगे कि नाटो सहयोगी पर हमले को अमेरिका पर हमला माना जाएगा।
युद्ध के केंद्र में नाटो
संयुक्त राज्य अमेरिका नाटो का अग्रणी और संस्थापक सदस्य रहा है। नाटो के गठन ने संयुक्त राज्य अमेरिका की पारंपरिक विदेश नीति को उलट दिया, जो अलग-थलग रहने पर आधारित थी। इसी नीति की वजह से अमेरिका जितना संभव हो सका प्रथम विश्व युद्ध और द्वितीय विश्व युद्ध से बाहर रहा। दोनों ही अवसरों पर, उसकी नौसैनिक परिसंपत्तियों पर हमले ने अंततः उसे युद्ध की स्थिति में धकेल दिया। हालांकि डोनाल्ड ट्रंप बिल्कुल अलग राह पर चल रहे हैं। उन्होंने पिछले दिनों सष्पट कहा था कि यूक्रेन को नाटो मेंबरशिप भूल जानी चाहिए। उन्होंने कहा था, "नाटो, आप इसके बारे में भूल सकते हैं। मुझे लगता है कि शायद यही कारण है कि यह सब शुरू हुआ।"
देश और दुनिया की ताजा ख़बरें (Hindi News) पढ़ें हिंदी में और देखें छोटी बड़ी सभी न्यूज़ Times Now Navbharat Live TV पर। एक्सप्लेनर्स (Explainer News) अपडेट और चुनाव (Elections) की ताजा समाचार के लिए जुड़े रहे Times Now Navbharat से।
पिछले 10 सालों से पत्रकारिता के क्षेत्र में काम करते हुए खोजी पत्रकारिता और डिजिटल मीडिया के क्षेत्र...और देखें
क्या है फ्लाइट नोज कोन? जिसके चरमराने से हलक में आ जाती है जान
कैसे दुनिया के सामने ट्रंप हो गए एक्सपोज, साउथ अफ्रीकी राष्ट्रपति ने मुंह पर ही सुना दी खरी-खरी; यहां जानें किसमें कितनी है सच्चाई
क्या 'डील' के लिए पाकिस्तान को पसंद करने लगे हैं ट्रंप? अपने पहले कार्यकाल में सुनाई थी खूब खरी-खोटी
बिहार चुनाव के लिए 'खास प्लॉनिंग के साथ आगे बढ़ रहे PK, 10 प्वाइंट में समझें 'जनसुराज की रणनीति'
क्या है 'गोल्डन डोम'? US को क्यों पड़ी इसकी जरूरत; जद में है पूरी दुनिया, स्पेस से कुछ यूं तबाह होंगे दुश्मन के मंसूबे
निफ्टी, सेंसेक्स में मामूली बढ़त; इंफोसिस-ITC- पावरग्रिड शेयर में तेजी
गाजियाबाद में रिश्ते शर्मशार! चचेरे भाई ने नाबालिग को बनाया हवस का शिकार, चुप रहने के लिए दी धमकी
अनिल अंबानी की रिलायंस डिफेंस महाराष्ट्र में बनाएगी ग्रीनफील्ड फैक्ट्री, 2029 तक 50000 करोड़ रु के डिफेंस एक्सपोर्ट का टारगेट
हैदराबाद में छाया दुबई का ये डिश, ट्रेंडिंग करक चाय-टोस्ट देख यूजर्स बोले - ये तो बचपन में फेवरेट था हमारा
फेसबुक पर मिले, शादी तक पहुंची बात... फिर क्या हुआ ऐसा कि पुलिस की मदद लेने पहुंच गया युवक
© 2025 Bennett, Coleman & Company Limited