संजय गांधी नहीं, तो किसके कहने पर इंदिरा गांधी ने लगाई थी इमरजेंसी? जान लें वो किस्सा

Indira Gandhi: स्वतंत्र भारत के इतिहास में पहली बार 1977 में कांग्रेस सत्ता से बेदखल हुई थी, उसकी वजह हर कोई जानता है- आपातकाल (इमरजेंसी)। लेकिन क्या आप ये जानते हैं कि इंदिरा गांधी ने किसकी सलाह पर ये फैसला लिया था? शायद इंदिरा 1977 में भी आम चुनाव कराने के लिए तैयार नहीं होतीं, यदि उन्हें सही फीडबैक मिला होता।

इंदिरा गांधी ने किसके कहने पर इमरजेंसी लगाने का फैसला किया था?

Inside Story of Emergency: क्या आप जानते हैं कि देश की पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने किसके कहने पर भारत में इमरजेंसी लगाने का फैसला किया था? कई लोगों को ये गलतफहमी है कि इंदिरा के छोटे बेटे संजय गांधी ने तत्कालीन प्रधानमंत्री और अपनी मां को आपातकाल लगाने का मशवरा दिया था, लेकिन सच्चाई कुछ और ही है। इसका खुलासा इंदिरा के प्राइवेट सेक्रेटरी रहे आरके धवन ने एक इंटरव्यू में किया था। इस लेख में उस कहानी से रूबरू करवाते हैं, जो इमरजेंसी की सबसे बड़ी वजह साबित हुई।

इंदिरा गांधी ने कैसे मजबूत की थी अपनी जमीन?

बतौर प्रधानमंत्री साल 1967 से 1971 तक का वक्त इंदिरा गांधी के उदय का दौर माना जाता है। ये वही दौर था, जब इंदिरा ने बड़ी ही चतुराई से अपने राजनीतिक प्रतिद्वंदियों को कांग्रेस से दूर और अलग कर दिया। 1969 में कांग्रेस दो हिस्सों में विभाजित भी हो गई। एक- कांग्रेस (ओ) जिसे सिंडीकेट के रूप में जाना जाता था, जिसमें पुराने गार्ड और अन्य शामिल था। दूसरी- कांग्रेस (आर) ये इंदिरा गांधी की ओर थी। उस वक्त कांग्रेस सांसदों के बड़े समूह ने और अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के दिग्गजों ने इंदिरा का साथ दिया। साल 1971 में जब लोकसभा चुनाव आए, तो इंदिरा ने 'गरीबी हटाओ' का नारा दिया और ये नारा लोगों के दिलों में इस कदर उतर गया कि इंदिरा को प्रचंड बहुमत मिला। देश की 518 लोकसभा सीटों में से इंदिरा के पक्ष में 352 सीटें आईं। इतिहासकार रामचंद्र गुहा ने इस जीत के बारे में लिखा था कि 'कांग्रेस (आर) असली कांग्रेस के रूप में खड़ी है, इसे अपनी योग्यता प्रदर्शित करने की आवश्यकता नहीं है।' हालांकि इसी 1971 के चुनावी नतीजों में रायबरेली सीट से इंदिरा ने राजनारायण को चुनाव हराया था, जो इमरजेंसी की पहली वजह साबित हुई।

राजनारायण को हराने के बाद इंदिरा की बढ़ी मुश्किलें

1971 के लोकसभा चुनाव में राजनारायण को पूरा भरोसा था कि वो इंदिरा को इस सीट से हरा देंगे, मगर उन्हें करारी शिकस्त झेलनी पड़ी। उस वक्त तो उनके प्रतिद्वंदियों ने हार के मुद्दे को इतने जोर-शोर से नहीं उठाया, लेकिन चुनावी नतीजों के चार साल बाद रायबरेली सीट से हारने वाले राजनारायण ने अपनी हार और इंदिरा की जीत को इलाहाबाद हाईकोर्ट में चुनौती दे दी। उन्होंने ये दलील दी थी कि चुनाव में चुनाव में इंदिरा ने सरकारी मशीनरी का दुरुपयोग किया, गलत तरीकों का इस्तेमाल करके मतदाताओं को प्रभावित किया और तय सीमा से ज्यादा पैसे खर्च किए। मामला कोर्ट में पहुंचा और फिर इमरजेंसी की नौबत आई। आपको सिलसिलेवार तरीके से पूरी कहानी समझाते हैं।

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