पाकिस्तान से भी ज्यादा बदतर हालत में पहुंच गए भारत-कनाडा के रिश्ते! ट्रूडो को भारी पड़ेगा 'खालिस्तान प्रेम'
Canada-India Relation:
कनाडा के पीएम जस्टिन ट्रूडो।
Canada-India Relation: देश की कीमत पर सत्ता में बने रहने की ललक और लालसा बहुत घातक होती है। देश की सत्ता में व्यक्ति नहीं पद मायने रखता है। सत्ता में बने रहने की भूख में शीर्ष पद पर बैठा व्यक्ति कभी-कभी ऐसी भयंकर गलतियां कर जाता है जिसका खामियाजा लंबे समय तक उसे नहीं बल्कि उसके देश को उठाना पड़ता है, हम बात कर रहे हैं कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो की और उनके खालिस्तान प्रेम की। खालिस्तानियों का जादू ट्रूडो पर इतना हावी हो चुका है कि वह दशकों के भारत-कनाडा संबंध को बिल्कुल खत्म करने पर अमादा हो गए हैं। भारत और कनाडा के आपसी संबंध भले ही बहुत गर्मजोशी भरे न रहे हों लेकिन ऐसे भी नहीं रहे कि शीर्ष राजनयिकों को देश छोड़ने के लिए कहना पड़े।
भारत मांगता रहा सबूत, ट्रूडो आरोप लगाते रहे
दरअसल, भारत और कनाडा के रिश्ते में नई तल्खी ट्रूडो के उस बयान के बाद आई है जिसमें उन्होंने कहा है कि खालिस्तानी अलगाववादी हरदीप सिंह निज्जर की हत्या में भारतीय सरकार के एजेंटों के शामिल होने के बारे में केवल खुफिया जानकारी थी, लेकिन कोई ठोस सबूत नहीं था। यानी कि उन्होंने बिना सबूत भारत सरकार पर गंभीर आरोप लगा दिए। यही बात भारत शुरू से कहता आ रहा है कि निज्जर की हत्या मामले में उसकी न तो कोई भूमिका है और न ही संलिप्तता। भारत बार-बार कनाडा से सबूत मांगता रहा लेकिन ट्रूडो सबूत देने की बजाय बयानबाजी करते रहे। ट्रूडो के इस ताजा बयान के बाद भारत को पलटवार करने का मौका मिल गया। उसने पलटवार भी जबर्दस्त किया। भारतीय विदेश मंत्रालय ने बेहद ही कड़े शब्दों में कनाडा को जवाब दिया है।
अब पानी सिर से ऊपर निकला
विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने कहा कि आज जो हमने सुना है, वह केवल उस बात की पुष्टि करता है जो हम लगातार कहते आ रहे हैं कि कनाडा ने भारत और भारतीय राजनयिकों के खिलाफ लगाए गए गंभीर आरोपों के समर्थन में हमें कोई भी सबूत पेश नहीं किया है। इस अभद्र व्यवहार से भारत-कनाडा संबंधों को जो नुकसान हुआ है, उसकी जिम्मेदारी अकेले प्रधानमंत्री ट्रूडो की ही है। भारत का बयान बहुत तीखा है, आम तौर पर किसी देश और उसके प्रधानमंत्री के लिए विदेश मंत्रालय इस तरह का कड़ा बयान जारी नहीं करता लेकिन इस तल्खी और तेवर के लिए कोई और नहीं केवल और केवल ट्रूडो जिम्मेदार हैं। विदेश मंत्रालय का यह बयान बताता है कि अब पानी सिर के ऊपर से निकल चुका है।
भारत ने कनाडा के 6 राजनयिकों को निकाला
ट्रूडो के बेतुके आरोपों के बाद भारत ने सख्ती दिखाते हुए अपने उच्चायुक्त संजय कुमार वर्मा समेत छह भारतीय राजनयिकों को वहां से वापस बुला लिया। हालांकि, कनाडा में भारत के कुछ राजनियक अब भी बने रहेंगे। रिश्ते बिगड़ने से पहले तक कनाडा की राजधानी ओटावा में भारत के 12 राजनियक थे। वहीं, भारत ने कनाडा के 6 राजनियिकों को निकाल दिया था और शनिवार दोपहर तक उन्हें भारत छोड़ने के लिए कहा है। जानकारों का मानना है कि ट्रूडो किसी भी कीमत पर सत्ता में बने रहना चाहते हैं। इसके लिए वह दोनों देशों के आपसी संबंधों की बलि देने पर उतारू हैं। वह खालिस्तानियों की गोद में तो बैठे ही हैं, खालिस्तान समर्थक जगमीत सिंह और उसकी न्यू डेमोक्रेटिक पार्टी का समर्थन पाने के लिए किसी भी हद तक जाने के लिए तैयार हैं।
खालिस्तानियों के हाथों खेल रहे ट्रूडो
ट्रूडो के बयान के बाद इस पूरे मामले में उनकी खूब किरकिरी और जगहंसाई हो रही है। यहां तक कि निज्जर की हत्या मामले में रॉयल माउंटेड कैनेडियन पुलिस ने अभी तक कोई चार्जशीट दायर नहीं की है लेकिन खालिस्तानी वोट पाने के लिए ट्रूडो की बेताबी देखिए, उन्होंने पिछले साल सितंबर में ही कनाडा की संसद में भारत को कठघरे में खड़ा कर दिया। जानकारों का मानना है कि रेटिंग में अपनी घटती लोकप्रियता और चुनाव में अपनी हार होता देख ट्रूडो बौखला गए हैं। चुनाव जीतने के लिए हर तिकड़म आजमा रहे हैं। अपनी सरकार बचाए रखने के लिए उन्हें एनडीपी नेता जगमीत सिंह के समर्थन की जरूरत है। अपनी अल्पमत की सरकार के लिए वह जगमीत के रहमो-करम पर हैं। हालांकि, जमगीत ने साफ कहा है कि अगर उनका सपोर्ट चाहिए तो उन्हें खालिस्तान समर्थकों को खुश और खालिस्तान के मुद्दे को जिंदा रखना होगा।
कई मोर्चों पर दिखेगा खराब रिश्ते का असर
बात यह है कि जब आप किसी देश, वह भी दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश जो संविधान और नियम कायदे से चलता हो, दुनिया में जिसका एक रसूख और इज्जत हो, हर बात पर दुनिया जिसकी तरफ देखती हो, तो उसके खिलाफ गंभीर आरोप बहुत सोच-समझकर, पुख्ता और अकाट्य सबूतों के आधार पर लगाए जाते हैं। ऐसे नहीं जिस तरह से ट्रूडो ने लगाए हैं। बड़े देशों के बीच मुद्दों पर गतिरोध और टकराव होते हैं लेकिन इसे कूटनीति और आपसी बातचीत के जरिए सुलझा लिया जाता है। मामला गंभीर भी हो और उससे रिश्तों के पटरी से उतरने का खतरा भी हो तो समझदार देश बैक चैनल या डिनर डिप्लोमेसी से उसका हल निकालते हैं, ऐसे मामलों की आंच वे द्विपक्षीय संबंधों पर नहीं आने देते लेकिन ट्रूडो ने आपसी संबंधों की परवाह न करते हुए दोनों देशों के रिश्तों को नाजुक मोड़ पर लाकर खड़ा कर दिया है। ये रिश्ते भारत-पाकिस्तान से भी ज्यादा बदतर हो गए हैं। जाहिर है कि संबंधों में आई इस भारी गिरावट का असर अब कई मोर्चों पर दिखना शुरू होगा।
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