मतभेदों को भुला आज तुर्की के आंसू पोछ रहा भारत, क्या एर्दोगन छोड़ेंगे कश्मीर की रट

Turkey : भारतीय सेना के लोग तुर्की में घायल हुए लोगों का इलाज कर रहे हैं। इस बात में कोई शक नहीं है कि तुर्की को इस समय मदद की जरूरत है। लेकिन उसकी मदद के लिए भारत जिस तरह से आगे आया है। वैसी मदद की उम्मीद मित्र देश से की जाती है।

तुर्की की हरसंभव मदद कर रहा भारत।

Turkey Earthquake : तुर्की और सीरिया में आए भूकंप से अब तक 15 हजार से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है। हजारों की संख्या में लोग घायल हैं और लाखों लोग बेघर हो गए हैं। इन दोनों देशों में अपने को खोने की चीख-पुकार मची हुई है। संकट के इस भीषण घड़ी में दोनों देशों की मदद करने के लिए दुनिया के देश सामने आए हैं। इस प्राकृतिक आपदा से तुर्की को नुकसान ज्यादा हुआ है। ताजा रिपोर्टों में यहां कम से कम 12 हजार से ज्यादा लोगों के मरने की खबर है। यहां हम तुर्की को भारतीय मदद के बारे में बात करेंगे। आपदा के बाद की स्थिति से निपटने के लिए भारत सरकार ने जिस तरह से तत्परता दिखाई है, उसकी तारीफ चारो तरफ हो रही है। भारत मदद के लिए इस तरह से आगे आएगा शायद इसकी उम्मीद नहीं थी।

मदद के लिए 'ऑपरेशन दोस्त' मिशन

तुर्की और सीरिया को भेजी जा रही राहत सामग्री एवं अभियान को भारत को सरकार 'ऑपरेशन दोस्त' नाम दिया है। इससे भारत सरकार की गंभीरता एवं मानवीय पहलू को देखा जा सकता है। मंगलवार को चार सी-17 ग्लोबमास्टर सैन्य परिवहन विमानों के जरिये राहत सामग्री, एक ‘चलित अस्पताल’ और तलाश एवं बचाव कार्य करने वाले विशेषज्ञ दल रवाना हुए। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा कि वायुसेना का सी-17 ग्लोबमास्टर-3 एनडीआरएफ के दलों और उपकरणों के साथ तुर्की के लिए रवाना हुआ। इस मुश्किल घड़ी में भारत, तुर्की के लोगों के साथ एकजुटता के साथ खड़ा है।’तलाश एवं बचाव कर्मियों के एक समूह, विशेष रूप से प्रशिक्षित श्वान दस्ता, ड्रिल मशीन, राहत सामग्री, दवाइयों के साथ प्रथम सी-17 परिवहन विमान आज सुबह तुर्किये के अदन में उतरा।

कटु अनुभवों को भारत ने पीछे छोड़ा

तुर्की को भेजे जा रही राहत सामग्री के बारे में विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कहा, ‘एनडीआरएफ (राष्ट्रीय आपदा मोचन बल) के 50 से अधिक तलाश एवं बचाव कर्मियों, विशेष रूप से प्रशिक्षित श्वान दस्ते, ड्रिल मशीन, राहत सामग्री, दवाइयां और अन्य आवश्यक उपकरणों के साथ प्रथम भारतीय सी-17 उड़ान अदन पहुंच गया है।’भारतीय सेना के लोग तुर्की में घायल हुए लोगों का इलाज कर रहे हैं। इस बात में कोई शक नहीं है कि तुर्की को इस समय मदद की जरूरत है। लेकिन उसकी मदद के लिए भारत जिस तरह से आगे आया है। वैसी मदद की उम्मीद मित्र देश से की जाती है। जाहिर है कि भारत और तुर्की के संबंध रिश्ते की इस कसौटी पर उतने खरे नहीं उतरते। फिर भी पुराने गले-शिकवे भुलाकर भारत इस संकटग्रस्त देश की मदद कर रहा है।

खट्टे-मीठे और उतार-चढ़ाव वाले रहे हैं संबंध

भारत और तुर्की के संबंधों की अगर बात करें तो आजादी के बाद यानी 1947 से दोनों देशों के संबंध खट्टे-मीठे और उतार-चढ़ाव वाले रहे लेकिन राष्ट्रपति रेसेप तैय्यप एर्दोगन के कार्यकाल में दोनों देशों के रिश्ते बेहतर होने के बजाय बिगड़े और रिश्तों में तल्खी बढ़ी। इसके लिए बहुत कुछ राष्ट्रपति एर्दोगन के भारत विरोधी बयान रहे। राष्ट्रपति बनने के बाद वह संयुक्त राष्ट्र में कश्मीर का मुद्दा उठाते रहे है। संयुक्त राष्ट्र के मंच पर एक बार तो उन्होंने यहां तक कहा दिया कि पाकिस्तान के लिए कश्मीर की जितनी अहमियत है, उतनी ही अहमियत तुर्की के लिए भी है। साल 2022 में भी उन्होंने यूएन में कश्मीर का मुद्दा फिर उठाया लेकिन इस बार एर्दोगन के सुर थोड़े नरम रहे। उन्होंने कहा कि भारत और पाकिस्तान 75 साल बाद भी कश्मीर मुद्दे का समाधान नहीं कर पाए हैं।

तुर्की में धार्मिक कट्टरता ज्यादा बढ़ी

तुर्की की भेजी जाने वाली मदद के बारे में जयशंकर ने बुधवार को कहा कि यह मदद भारत की 'वसुधैव कुटुम्बकम' की भावना के तहत की जा रही है। भू-राजनीतिक स्थितियों में उतार-चढ़ाव होता रहता है। बीते समय के कटु अनुभवों को दरकिनार कर और पीड़ित लोगों की मदद कर भारत ने अपनी दरियादिली दिखाई है। देर-सबेर तुर्की को इस बात को महसूस करना चाहिए और भारत विरोधी अपने रुख को छोड़ मित्रता के रास्ते पर आगे बढ़ना चाहिए। तुर्की और भारत के बीच प्राचीन काल से सांस्कृतिक एवं व्यापारिक संबंध हैं। रक्षा विशेषज्ञ मानते हैं कि एर्दोगन के बाद तुर्की में धार्मिक कट्टरता ज्यादा बढ़ी है। कश्मीर के बारे में उनका स्टैंड भी बहुत कुछ इसी के कारण है। बहरहाल, भारत आज तुर्की के आंसू पोछ रहा है। इसकी कद्र उसे जरूर करनी चाहिए।
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