लोकसभा चुनाव से पहले कांग्रेस संगठन में हुए बदलाव के क्या हैं मायने? 10 प्वाइंट में इनसाइड स्टोरी
Congress Reshuffle: विधानसभा चुनाव में हार के बाद कांग्रेस लोकसभा चुनाव की तैयारी में जुट गई है। 2024 को ध्यान में रखते हुए पार्टी में संगठन स्तर पर कई फेरबदल हुए हैं। आइए जानते हैं इस फेरबदल की इनसाइड स्टोरी...
कांग्रेस में संगठनात्मक बदलाव के मायने
Congress Reshuffle: पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव के नतीजों के बाद बहुप्रतीक्षित फेरबदल कांग्रेस में शुरू हुआ हो गया है। राष्ट्रीय महासचिवों की जारी नई सूची में कुछ नए नाम जुड़े हैं तो कुछ को उनके प्रदर्शन के आधार पर बाहर रखा गया है। इन बदलावों में गांधी परिवार का दखल भी नजर आता है और चुनाव जिता सकने वाले पुराने चेहरों पर भरोसा दिखाई देता है। आइए आपको विस्तार से बताते हैं कांग्रेस में हुए बदलाव की इनसाइड स्टोरी
1. राष्ट्रीय फलक पर चमकेंगी प्रियंका गांधी
देश के सबसे बड़े और अहम राज्य उत्तर प्रदेश में प्रभारी रहते पार्टी की विधानसभा चुनाव में हुई करारी हार के बाद प्रियंका गांधी ने पद छोड़ दिया था। नई लिस्ट के मुताबिक प्रियंका बिना किसी पोर्टफोलियो के ही महासचिव बनी रहेंगी। पार्टी ने उन्हें किसी और राज्य का प्रभारी बनाकर एक जगह बांधने की बजाय राष्ट्रीय स्तर की स्तर पर बतारने का प्लान तैयार किया है।
2. राजस्थान के प्रभारी रहे अविनाश पांडे को यूपी का प्रभार
लाइमलाइट से दूर रहकर संगठन को मजबूती देने के लिए अविनाश पांडे को पार्टी ने सबसे बड़ी जिम्मेदारी सौंप दी है। वो सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में इंडिया गठबंधन को साधने, जिला स्तर तक पार्टी को मजबूत करने का काम करेंगे। मौजूदा राजनीतिक स्थिति में सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव और आरएलडी प्रमुख जयंत चौधरी के बीच निर्विवाद तरीके से सीटों का बंटवारा करना एक बड़ी चुनौती होगी।
3. बिहार मोहन प्रकाश के जिम्मे वहीं चेन्निथला को महाराष्ट्र की कमान
बिहार और महाराष्ट्र दो ऐसे राज्य हैं जहां कांग्रेस दो क्षेत्रीय दलों के साथ साझेदारी में है। ऐसे में आगामी लोकसभा चुनाव के लिहाज से जरूरत थी कांग्रेस को ऐसे प्रभारियों की जो सिर्फ संगठन की मजबूती पर ध्यान दें। यही वजह है कि इन दो अहम राज्यों के लिए संगठन की कार्यकुशलता और लो प्रोफाइल नेताओं को वरीयता दी गई है। समाजवादी विचारधारा से आने वाले सौम्य और सुलझे हुए मोहन प्रकाश को बिहार सौंपा गया है, जिससे वो लालू और नीतीश के बीच तालमेल बैठा सकें। साथ ही महाराष्ट्र जैसे राज्य में रमेश चेन्निथला को उतारा गया है, जो संगठन में निचले स्तर से उठ कर केरल कांग्रेस के अध्यक्ष बने हैं। चेन्निथला आसानी से शरद पवार, उद्धव ठाकरे से तालमेल बिठा सकते हैं। हालांकि केरल से ही आने वाले संगठन महासचिव केसी वेणुगोपाल के चलते चेन्निथला को राज्य की राजनीति से दूर कर दिया गया है।
4.पायलट को राजस्थान से बाहर भेजा गयाहाल ही में हार का दंश झेलने वाले राज्य राजस्थान से आने वाले सचिन पायलट को अलग मौका मिला है। अशोक गहलोत और सचिन पायलट के पुराने विवाद को ध्यान रखते हुए पायलट का कद बढाकर उन्हें छत्तीसगढ़ का प्रभारी बनाया गया है। लेकिन गहलोत पर लगाम लगाए रखने के लिए राहुल गांधी के करीबी हरीश चौधरी को पंजाब के प्रभारी से हटाकर राज्य की राजनीति में भेजा गया है।
5. भंवर जितेंद्र सिंह को मिली बड़ी जिम्मेदारियां, सुरजेवाला से कर्नाटक में मैजिक की उम्मीद
गांधी परिवार के करीबी कहे जाने वाले जितेंद्र सिंह को असम के साथ मध्य प्रदेश का प्रभार भी दिया गया है। वहीं कर्नाटक जीत में अहम किरदार निभाने वाले रणदीप सुरजेवाला से एमपी का प्रभार लेकर उनको कर्नाटक में फोकस करने को कहा गया है, जिससे वो विधानसभा की जीत को लोसकभा चुनाव में दोहरा सकें।
6.गुजरात में फॉलो नहीं हुआ रायपुर अधिवेश का संकल्प
रायपुर में हुए कांग्रेस के अधिवेशन में एक व्यक्ति एक पद का संकल्प पास हुआ था। हालांकि गुजरात के मामले में इसे न मानते हुए मुकुल वासनिक का प्रभारी पद बरकरार रखा गया है। जबकि वासनिक हाल ही नेशनल एलायंस कमेटी के भी चेयरमैन बने हैं। लेकिन इन सबमें सबसे ज्यादा चौंकाने वाला नाम राजस्थान के प्रभारी सुखजिंदर रन्धावा का है, जिन्हे विधानसभा चुनाव में हार के बाद भी हटाया नहीं गया है। गहलोत के खास माने जाने वाले रंधावा पर आलाकमान और राज्य के नेताओं के बीच सेतु का काम करना होगा।
7. संगठन महासचिव, कम्युनिकेशन प्रमुख अपने पद पर बरकरार
उत्तर-दक्षिण भारत की बहस हो या नेताओं के एक बड़े तबके का दबाव, सबको दरकिनार करते हुए राहुल के सबसे खास के.सी वेणुगोपाल संगठन महासचिव पद पर बने रहेंगे। वहीं, कई नेताओं के निशाने पर आए जयराम रमेश भी बेहतर विकल्प के अभाव में कम्युनिकेशन हेड के पद पर काबिज रहेंगे। वैसे कहा जा रहा है पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत इस बार संगठन महासचिव बनना चाह रहे थे लेकिन गांधी परिवार की नाराजगी के चलते ये संभव नहीं हुआ।
8. दीपादास मुंशी, अजोय कुमार का बढ़ा कद
पश्चिम बंगाल से पूर्व सांसद और दिग्गज नेता प्रियरंजन दास मुंशी के कद में इजाफा करके कांग्रेस ने राज्य की सियासत में अधीर रंजन चौधरी के दबदबे को बैलेंस करने की कोशिश की है। इससे अधीर रंजन और ममता बनर्जी के बीच चल रहे शीत युद्ध पर लगाम लगेगी। इसके अलावा दीपादास मुंशी को केरल, लक्षद्वीप के साथ तेलंगाना का भी प्रभार दिया गया है। इनके साथ ही तेलंगाना विधानसभा चुनाव में भूमिका निभाने वाले पूर्व आईपीएस अजॉय कुमार बड़ी जिम्मेदारी देते हुए ओडिशा, तमिलनाडु और पुद्दुचेरी का प्रभारी बनाया गया है।
9. कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे के करीबियों का रखा गया ध्यान
कर्नाटक से राज्यसभा सांसद नासिर हुसैन को आधिकरिक तौर पर कांग्रेस अध्यक्ष के ऑफिस की जिम्मेदारी सौंपी गई है। नासिर हुसैन का कद खरगे के कद बढ़ने के साथ ही लगातार बढ़ रहा है। वहीं कम्युनिकेशन विभाग से किनारे किये गए प्रणव झा अपना कद बढ़ाते हुए खरगे का मीडिया विभाग संभालेंगे। साथ ही खरगे के एक और करीबी गुरदीप सप्पल को आल इंडिया कांग्रेस कमेटी के प्रशासन की अहम ज़िम्मेदारी दी गयी है, इसके अलावा सप्पल इंडिया गठबंधन की कई अहम कमेटियों का हिस्सा भी हैं।
10. केंद्र की सियासत में आज़ाद के विकल्प को उभारने की कोशिश, वफादारों को इनाम
जम्मू कश्मीर के पूर्व अध्यक्ष और राजीव गांधी के ज़माने से वफादार माने जाने वाले ग़ुलाम अहमद मीर को झारखंड के साथ ही पश्चिम बंगाल का प्रभारी बनाया गया। वहीं गांधी परिवार के वफादार देवेंद्र यादव को उत्तराखंड और कुमारी शैलजा को छत्तीसगढ़ में हार कर बाद भी संगठन में बनाये रखा गया है, हालांकि दोनों के राज्यों के प्रभार की अदला-बदली कर दी गयी है। साथ ही गुजरात से आने वाले पार्टी के पुराने सिपाही भरत सिंह सोलंकी को जम्मू कश्मीर का प्रभार देकर आलाकमान ने दिलचस्प दांव चला है।
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