जब काशी विश्वनाथ मंदिर को तोड़ने के लिए औरंगजेब ने जारी किया शाही फरमान, जानें वो किस्सा
Untold Story Aurangzeb destroyed Vishwanath Temple: वाराणसी के काशी विश्वनाथ मंदिर और ज्ञानवापी मस्जिद का विवाद आखिरकार कब सुलझेगा? ये विवाद कोर्ट में है, हिंदू पक्ष और मुस्लिम पक्ष के अपने-अपने दावे हैं। औरंगजेब ने मंदिर तुड़वाने के लिए एक शाही फरमान जारी किया था, जिसके दस्तावेज सामने आए हैं।
औरंगजेब ने मंदिर तोड़ने के लिए जारी किया था शाही फरमान।
Aurangzeb destroyed Vishwanath Temple Story: अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण हो चुका है, क्या अब काशी की बारी है? काशी विश्वनाथ को अयोध्या के बाद हिंदुओं की आस्था के सबसे बड़े केंद्र के तौर पर देखा जाता है। इसकी वजह ये है कि जिस तरह अयोध्या को भगवान राम की नगरी कहते हैं, उसी प्रकार काशी.. यानी वाराणसी को भगवान शिव की नगरी कहा जाता है। भले ही अयोध्या विवाद का हल निकल गया, लेकिन काशी का मसला अभी बचा हुआ है, यहां भी मंदिर और मस्जिद का विवाद है। आपको इस लेख में बताते हैं कि ये सारा विवाद क्या है और आखिर औरंगजेब ने जब मंदिर तुड़वाया तो उस वक्त उसने क्या फरमान जारी किया था।
क्या है काशी विश्वनाथ और ज्ञानवापी का विवाद?
हिंदू पक्ष की ओर से ये दावा किया जाता है कि जहां भगवान शिव को समर्पित असली ज्योतिर्लिंग मौजूद है, वहां पर औरंगजेब ने एक मस्जिद का निर्माण करा दिया था। इसी मस्जिद को ज्ञान वापी के नाम से जाना जाता है। काशी विश्वनाथ विवाद में अभी जो मुकदमा चल रहा है उसकी शुरुआत 1991 में हुई थी। स्वतंत्र भारत में ये मुकदमा करीब 33 साल पुराना है, लेकिन कानूनी विवाद की बात की जाए तो ये मसला 1936 में पहली बार अदालत की चौखट पर आया था। उस वक्त हिंदू पक्ष नहीं, बल्कि मुस्लिम पक्ष ने वाराणसी जिला अदालत में याचिका दायर की थी। ये याचिका दीन मोहम्मद नाम के एक व्यक्ति ने डाली थी और कोर्ट से मांग की थी कि पूरा ज्ञानवापी परिसर मस्जिद की जमीन घोषित की जाए।
1937 में इस पर फैसला आया, जिसमें दीन मोहम्मद के दावे को खारिज कर दिया गया। लेकिन विवादित स्थल पर नमाज पढ़ने की अनुमति दे दी गई। इस मुकदमे में हिंदू पक्ष को पार्टी नहीं बनाया गया था। अब एक बार फिर काशी विश्वनाथ मंदिर और ज्ञानवापी का मुद्दा गरमा गया है। ज्ञानवापी में वजूखाने का सर्वेक्षण कराने की याचिका पर हाईकोर्ट में सुनवाई होनी है, ऐसे में हर कोई इस विवाद से समाधान के लिए टकटकी लगाए इंतजार कर रहा है।
औरंगजेब के दरबारी लेखक ने भी कबूला था सच
ज्ञानवापी से संबंधित एक बहुत महत्वपूर्ण कागज मौजूद है, जिसमें ऐसी बातें लिखी हैं कि काशी विश्वनाथ मंदिर को तोड़ने का इतिहास कितना पुराना है। ज्ञानवापी मंदिर है या मस्जिद इसका फैसला अदालत को करना है, लेकिन ऐतिहासिक साक्ष्य इस बात की पुष्टि करते हैं कि औरंगजेब ने ही मंदिर तुड़वाया और उस स्थान पर मस्जिद का निर्माण कराया था।
‘मा-असीर-ए-आलमगीरी’ नाम की पुस्तक में जिक्र
वाराणसी के काशी विश्वनाथ मंदिर के तोड़े जाने के कई प्रमाण मौजूद हैं। इतिहासकारों की कलम से लिखी गई कई किताबों में औरंगजेब और आक्रांताओं की करतूतों का जिक्र है कि कैसे उन्होंने देशभर के हिंदू मंदिरों को तोड़ा और वाराणसी स्थित विश्वनाथ मंदिर को भी लूटा। इसी तरह विश्वनाथ मंदिर को तोड़ने का एक बड़ा साक्ष्य ‘मा-असीर-ए-आलमगीरी’ नाम की पुस्तक भी है। जिसे 1710 में औरंगजेब के दरबारी लेखक 'सकी मुस्तईद खान' ने लिखी थी। इसी किताब में उस शाही फरमान का जिक्र किया गया है, जिसे बनारस के विश्वनाथ मंदिर को तोड़ने के लिए औरंगजेब ने जारी किया था।
शाही फरमान ने औरंगजेब ने क्या कुछ कहा था?
औरंगजेब का एक शाही फरमान, उस इतिहास को बयां करता है, जो 355 वर्ष पुराना है। हिंदू पक्ष ने इस कागज को वाराणसी की उस अदालत में भी जमा कराया था, जो काशी विश्वनाथ मंदिर और ज्ञान वापी मस्जिद विवाद की सुनवाई कर रहा था।
ये एक एतिहासिक दस्तावेज है जिसे 18 अप्रैल 1669 को औरंगजेब के एक दरबारी की तरफ से जारी किया गया था मूल रूप से इसे फारसी में लिखा गया था, लेकिन इसका हिंदी में अनुवाद करके इसे अदालत में जमा कराया गया है। इसमें लिखा है कि औरंगजेब को ये खबर मिली है कि मुलतान के कुछ सूबों और बनारस में बेवकूफ ब्राह्मण अपनी रद्दी किताबें पाठशालाओं में पढ़ाते हैं। और इन पाठशालाओं में हिंदू और मुसलमान विद्यार्थी और जिज्ञासु उनके बदमाशी भरे ज्ञान, विज्ञान को पढ़ने की दृष्टि से आते हैं।
इसमें आगे लिखा गया कि 'धर्म संचालक बादशाह ने ये सुनने के बाद सूबेदारों के नाम ये फरमान जारी किया है कि वो अपनी इच्छा से काफिरों के मंदिर और पाठशालाएं गिरा दें। उन्हें इस बात की भी सख्त ताकीद की गई है कि वो सभी तरह के मूर्ति पूजा संबंधित शास्त्रों का पठन पाठन और मूर्ति पूजन भी बंद करा दें।'
इसके बाद औरंगजेब को ये जानकारी दी जाती है कि उनके आदेश के बाद 2 सितंबर 1669 को काशी विश्वनाथ मंदिर को गिरा दिया गया है। यानी एक एतिहासिक दस्तावेज खुद इस बात की पुष्टि करता है कि औरंगजेब के आदेश पर ही काशी विश्वनाथ मंदिर को नुकसान पहुंचाया गया था। जाहिर है कि जब इलाहाबाद हाईकोर्ट में हिंदू पक्ष इस दस्तावेज को पेश करेगी तो उस वक्त अदालत इसको कितना महत्वपूर्ण मानेगी, ये अदालत पर निर्भर करेगा। कानूनी तौर पर जब कोई दस्तावेज अदालत में जमा किया जाता है तो उसके पीछे प्रमाणिक और गंभीर सोच होती है। सबसे बड़ा सवाल ये उठता है कि मुगलों का धार्मिक अतिक्रमण एक संयोग था या प्रयोग? सवाल ये भी है कि भारत को मजहबी विवादों से कब आजादी मिलेगी और मंदिरों के साथ हर जगह मस्जिद क्यों हैं?
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आयुष सिन्हा author
मैं टाइम्स नाउ नवभारत (Timesnowhindi.com) से जुड़ा हुआ हूं। कलम और कागज से लगाव तो बचपन से ही था, जो धीरे-धीरे आदत और जरूरत बन गई। मुख्य धारा की पत्रक...और देखें
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