दरकने लगा 'INDI' गठजोड़ का ताना-बाना, अपनी ही कहे पर नहीं टिक पा रहे सियासी सूरमा
INDI Alliance : इस 'INDI'गठबंधन में शामिल दलों के सुर भी मेल नहीं खा रहे हैं। हाल यह है कि विपक्ष के नेता अपनी कही हुई बात पर टिक नहीं पा रहे हैं। सबकी अपनी-अपनी डफली और अपना-अपना राग है। इंडी गठबंधन की कोर्डिनेशन कमेटी ने तय किया था कि भोपाल में विपक्ष की संयुक्त एवं बड़ी रैली होगी लेकिन यह रैली रद्द कर दी गई।
विपक्षी एकता की जमीन दरकने लगी है।
INDI Alliance : 2014 के लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी (BJP) को शिकस्त देने के मकसद से बने 'INDI' गठबंधन में सबकुछ ठीक-ठीक नहीं चल रहा है। भाजपा की अगुवाई वाले NDA गठबंधन को सत्ता से दूर रखने के लिए बने विपक्षी गठबंधन में दरार चौड़ी होती जा रही है। विडंबना है कि भाजपा को चुनौती देने के लिए जिस विपक्षी एकता को पहली शर्त के रूप में देखा जा रहा है, वह हिचकोले खाने लगा है। विपक्षी एकता के लिए पहली बैठक गत जून में पटना में हुई थी इसके बाद बेंगलुरु और मुंबई में बैठकें हो चुकी हैं लेकिन समन्वय समिति की घोषणा करने के अलावा 'INDI' गठबंधन चुनावों के लिए कोई पहल नहीं कर पाया है। सबसे बड़ा मसला सीट शेयरिंग का है जिसके लिए कोई फॉर्मूला अभी निकलकर सामने सामने नहीं आया है।
भोपाल की संयुक्त रैली हुई रद्द
इस 'INDI'गठबंधन में शामिल दलों के सुर भी मेल नहीं खा रहे हैं। हाल यह है कि विपक्ष के नेता अपनी कही हुई बात पर टिक नहीं पा रहे हैं। सबकी अपनी-अपनी डफली और अपना-अपना राग है। इंडी गठबंधन की कोर्डिनेशन कमेटी ने तय किया था कि भोपाल में विपक्ष की संयुक्त एवं बड़ी रैली होगी लेकिन यह रैली रद्द कर दी गई। कमेटी ने तय किया था कि जाति आधारित जनगणना के लिए वे सरकार पर दबाव बनाएंगे लेकिन इस पर भी उनमें एका नहीं हो पाया है। जातिगत जनगणना को लेकर विपक्ष में अंतर्विरोध उभरकर सामने आया है। इंडी गठबंधन के बीच ही लोग कह रहे हैं कि कमेटियों में जो फैसले लिए जा रहे हैं, उन पर अलग अलग दलों के अध्यक्ष वीटो लगा रहे हैं, जो फैसले हो रहे हैं उन पर अमल नहीं किया जा रहा, जब ऐसा हो रहा है फिर कमेटी का मतलब ही क्या है।
इनेलो के कार्यक्रम में नहीं जुटे दिग्गज
हरियाणा में चौधरी देवीलाल की 110वीं जयंतीय पर कैथल में आयोजित सम्मान दिवस रैली में विपक्ष के बड़े नेता जुट नहीं पाए। कांग्रेस ने इस आयोजन से दूरी बना ली। रैली में नीतीश कुमार, तेजस्वी यादव, शरद पवार, अरविंद केजरीवाल, अखिलेश यादव, उद्धव ठाकरे भी नहीं आए। ये नेता यदि यहां पहुंचते तो इनेलो को गठबंधन में शामिल कर उन्हें अपना कुनबा बढ़ाने में मदद मिलती। इनेलो के इस कार्यक्रम में विपक्ष के ये नेता अपनी एकजुटता का बड़ा संदेश दे सकते थे लेकिन इस अवसर को भी उन्होंने गंवा दिया। रैली में नहीं पहुंचने पर सुखबीर सिंह बादल, डेरेक ओ ब्रायन जैसे नेताओं ने कांग्रेस को एक तरह से अपना 'इगो' छोड़ने की नसीहत दी।
विस चुनाव में AAP ने उम्मीदवार उतारे
विपक्ष की सबसे बड़ी परेशानी एवं चुनौती सीट बंटवारे को लेकर है। बंगाल, बिहार, यूपी, पंजाब, दिल्ली और महाराष्ट्र ऐसे राज्य हैं जहां सीट का बंटवारा आसान नहीं है। टीएमसी, आम आदमी पार्टी, सपा, शिवसेना (उद्धव ठाकरे) सीटों को लेकर बहुत ज्यादा समझौता करेंगे, इस पर संदेह है। उनके पुराने बयान यही दर्शाते हैं कि वे कांग्रेस को ज्यादा सीटें देने के मूड में नहीं हैं। जाहिर है कि कोई भी अपनी राजनीतिक जमीन छोड़ना नहीं चाहेगा। आम आदमी पार्टी मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के लिए अपने उम्मीदवारों की घोषणा कर चुकी है। राजस्थान में वह बड़े स्तर पर चुनाव लड़ने की तैयारी में है। पंजाब में कांग्रेस के नेता मान सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल चुके हैं। दिल्ली में AAP और कांग्रेस के बीच सीट बंटवारे पर कोई समझौता होगा इस पर भी संदेह है।
नीतीश को लेकर अटकलें
विपक्षी एकजुटता की मुहिम शुरू करने वाले बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को लेकर भी अटकलें चल रही हैं। मीडिया रिपोर्टों में कहा गया है कि आने वाले समय में नीतीश एक बार फिर एनडीए के साथ आ सकते हैं। पशुपति पारस ने इसका संकेत दिया है। हालांकि, नीतीश ने एनडीए में शामिल होने की अटकलों को खारिज किया है। हालांकि जानकार नीतीश की फितरत को देखते हुए उनके पाला बदलने को असंभव नहीं मानते। बहरहाल, विपक्षी एकता का जो ताना-बाना बुना गया वह मजबूत होने के बजाय दरकने और कमजोर होने लगा है।
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