Israel vs Iran: नरसंहार की यादों के साथ जंग में इजरायल, कायम है ईरानी प्रतिरोध

Israel-Hamas War: इजरायल के इतिहास में सबसे घातक, हमास के सात अक्टूबर को किए हमले के एक साल पूरे हो गए। इस हमले ने गाजा में युद्ध को जन्म दिया और इजराइलियों को कभी न भूलने वाला घाव दे दिया। गाजा में शुरू हुए युद्ध में 41,000 से अधिक फलस्तीनी मारे गए हैं, क्षेत्र की 23 लाख की आबादी में से ज्यादातर लोग विस्थापित हो गए हैं।

Israel vs Iran

ईरान vs इजरायल

Iran-Israel War: एक साल पहले ठीक आज ही के दिन हमास के लड़ाकों ने इजरायली सरजमीं को लहूलुहान किया था। नाजियों की ओर से किए गए यहूदियों के नरसंहार के बाद इस कौम के लिए ये सबसे बड़ी त्रासदी रही। उस दिन किए गए कत्लोगारत में 1,200 इजरायलियों को मौके पर ही मौत के घाट उतार दिया गया, 250 मासूमों को हथियार के दम पर बंधक बना लिया। आज भी हमास के पास 100 से ज्यादा बंधक है। ठीक अगले ही दिन 8 अक्टूबर 2023 को लेबनान की सीमा में बैठे हिजबुल्लाह ने उत्तरी इजरायल को टारगेट कर मोर्चा खोला दिया, इस कार्रवाई के चलते करीब 85 हजार इजरायलियों को अपना घरबार छोड़कर सुरक्षित ठिकानों की तलाश में भटकना पड़ा। कुछ इसी तरह की तस्वीर इस साल अप्रैल और इस महीने की शुरूआत में सामने आयी, जब ईरानी मिसाइलों और ड्रोनों से बचने के लिए इजरायली आवाम को महफूज जगहों पर ले जाया गया। करीबन एक साल बीतने के बाद ये सवाल उभर रहे है कि उस हमले से हमास के नेता क्या उम्मीदें पाले बैठे थे? साथ ही ये भी मजलिस शोराये इस्लामी (ईरानी संसद) में बैठे नुमांइदों ने इससे क्या हासिल किया?

खुफिया नाकामी बनी हमले की वज़ह

कुछ हद तक वो हमला इजरायली इंटेलीजेंस का नाकामी का नतीजा था, मोसाद, शिनबेट, अमन और साइरेट मेटकल ये सभी खुफियां एजेंसियां कहीं ना कहीं इस बात का अंदाज़ा लगाने में असफल रही कि इस तरह का हमला किया जा सकता है। एजेंसियां अब खुलकर ये मानती है कि याह्या सिनवार की अगुवाई में किए गए जेहाद्दियों और कट्टरपंथियों के हमले को कम करके आंका गया, इजरायली खुफिया एजेंसियों को हमले की जानकारी तो थी लेकिन हमास को हल्के में लिया गया। इसी वजह से बीते साल 7 अक्टूबर को इजरायल की फौरी तौर पर वो प्रतिक्रिया सामने नहीं आयी जिसके लिए इजरायल कमोबेश जाना जाता है।

हमास ने बारीकी से बुना था हमलों का ताना-बाना

दूसरी ओर तत्कालीन हालातों में इजरायल घरेलू अस्थिरता से गुजर रहा था, हमास को लगा कि तेल अवीव अपने नाजुक दौर से गुजर रहा है, ऐसे में उसके पलटवार में आक्रोश और आक्रामता में नरमी रहेगी। ऐसे में हमास ने सभी समीकरणों को मद्देनज़र रखते हुए हमले की रूपरेखा तैयार की, क्योंकि उसे पता था कि अपने सबसे मजबूत हालातों में भी हमास अपने लोगों को वैचारिक और धार्मिकता के धरातल में एकजुट नहीं कर पाएगा।

सामने आयी तेहरान की मंशा

इजरायल से सामने आयी क्लासीफाइड रिपोर्टों के मुताबिक उस हमले के पीछे एक बड़ी दीर्घकालीन योजना का खाका तैयार किया गया था। हमास की योजना थी कि उस हमले के बाद ईरान के वैचारिक कट्टरपंथी सहयोगियों यानि कि हमले के बाद छिड़ी जंग में इराक के शिया मिलिशिया, लेबनान से हिजबुल्लाह और यमन से हूतियों को मैदान-ए-जंग में उतार दिया जाए। ये सभी मिलकर इजरायल के वजूद को खत्म करना चाहते थे, कट्टरपंथी धुरी के इन तत्वों को केंद्रीय निर्देश तेहरान से सीधे मिल रहे थे। ईरानी प्रॉक्सियों को तेल अवीव के खिलाफ मोर्चा खोलकर अपनी जिहादी कट्टरता और तेहरान के प्रति वफादारी दिखाने का काफी मौका मिला। दूसरी ओर ईरान की चाहत ये भी थी कि सुन्नी बहुल देशों और इस्लामी गणराज्यों के बीच उसका दबदबा बने, जिससे कि दुनिया भर में वो खुद को इस्लाम का सच्चा अनुयायी साबित कर सके। साथ ही वो अरब लीग समेत सभी मुस्लिम देशों को ये भी पैगाम देना चाहता है कि अमेरिका, इजरायल समेत पश्चिमी ताकतों को सिर्फ वहीं आंखें दिखा सकता है।

खामेनेई के पास ईरानी दबदबा बनाने का मौका

अयातुल्ला अली खामेनेई की अगुवाई में कट्टर वैचारिकता से पोषित ईरान अपनी सोच को दुनिया भर के शिया मुसलमानों में फैलाना चाहता है। ईरानी निजाम वर्चस्व और दबदबे के साथ अपने विरोधियों को बेरहमी से कुचलने का पक्षधर है, ये बात बीते एक सालों में पूरी तरह साफ हो चुकी है। तेहरान के इन मंसूबों और मकसद को कम करके आंकना दुनिया के लिए भारी पड़ सकता है। इसकी तस्दीक इस बात से हो चुकी है कि तेल अवीव को तेहरान ने चौतरफा घेर रखा है। इस्लामिक रिवोल्यूशनरी गार्ड्स कोर ने अपने सहयोगियों के साथ हर तरह के सैन्य विकल्प खोल रखे है। इस काम के लिए शिया मिलिशिया, ईरानी कमांडो, मिसाइलें और ड्रोन हाई अलर्ट मोड पर है। ये वहीं ईरानी क्षमताएं है, जिनका इस्तेमाल तेहरान ने यमन में सुन्नी बहुल सऊदी अरब और यूएई के लिए किया था। इसके साथ ही ईरान पश्चिम एशिया में खुलकर अपनी आक्रामकता को जाहिर करता आया है, इस फेहरिस्त में गुपचुप और खुले तरीके से वो लगातार परमाणु शक्ति बनाने में राह में दौड़ रहा है।

कामयाब नुस्खे को आजमाता तेहरान

बीते शुक्रवार (4 अक्टूबर 2024) जुम्मा की नमाज के बाद अयातुल्ला खामेनेई की तकरीर से साफ चुका है कि इजरायल के वजूद को नेस्तनाबूत करना उनकी जिंदगी का मकसद बन चुका है। दिलचस्प है कि खामेनेई में रणनीतिक धैर्य काफी है यानि कि वो इजरायल के खिलाफ खुली जंग छेड़ने के लिए सही मौके की तलाश में है। जिस लीक पर तेहरान चल रहा है, उससे स्पष्ट है कि वो बिना गलती किए पूरी तैयारी में लगा हुआ है। इंतजार और मजबूत सैन्य तैयारी उसकी खास पहचान रही है। इसी रणनीति का इस्तेमाल उन्होनें लेबनान में किया, जहां उसने नाजुक हालातों और आर्थिक संकटों के बीच वहां हिज़्बुल्लाह को प्रतिष्ठित कर उसकी जड़ों को मजबूती दी। ठीक इसी फॉर्म्यूले को उसने यमन में भी लागू किया। जहां राजनीतिक निर्वात, तबाही, मानवीय संकट और गृहयुद्ध के बीच शिया मिलिशिया गुट हूतियों की जड़ों में खाद-पानी डाला। अब ईरान अपनी इस रणनीति को अफ्रीका की दहलीज पर भी ले आया है।

ईरान की घेरेबंदी से अस्थिर हुआ मध्य-पूर्व

7 अक्टूबर के बाद उभरी असलियत से साफ हो चुका है कि तेहरान के नीति नियंताओं से इजरायल के अस्तित्व को सीधा खतरा है। आने वाले कल के खतरों का आकलन करते हुए इजरायली सक्रियता और दृढ़ता स्वत: स्फूर्त प्रतिक्रिया है। साथ ही लाल सागर में अन्तर्राष्ट्रीय कारोबार को ठप्प करने और यूक्रेन के खिलाफ रूस का साथ देकर ईरान ने पश्चिमी जंगी ताकतों से भी अदावत मोल ले ली है। ईरानी खेमा और उसकी घेरेबंदी ने जिस तरह की अस्थिरता पैदा की है, उससे मध्यपूर्व बुरी तरह हिल गया है। इस पूरे प्रकरण का सामना करने के लिए संयुक्त राज्य अमेरिका की अगुवाई में इजरायल संयुक्त जंगी कार्रवाईयों को अंजाम देने के लिए मजबूर हो चुका है। इस तरह की पहल 7 अक्टूबर से पहले ही हो जानी चाहिए थी, जहां ईरानी ताकतों ने अपने मंसूबों को लगभग पूरा कर लिया था। मौजूदा हालातों में इजरायल अपने क्षेत्रीय सहयोग को मजबूती देते हुए ईरान को टक्कर देने के लिए तैयारी पूरी कर चुका है।

इजरायल के पास आक्रामकता बढ़ाकर बदला लेने का अच्छा मौका

तेल अवीव के लिए ईरानी आक्रामकता का मजबूती से सामना करना बड़ी चुनौती है, इसके लिए IDF को पहले तेहरान की प्रॉक्सी क्षमताओं को तोड़ना होगा। फिलहाल जिस तरीके से इस हफ्ते इज़राइल ने हूतियों और हिज़्बुल्लाह को निशाना बनाया है, इस तरह के ऑप्रेशंस को उसे जारी रखना होगा। तेल अवीव को ईरान से आने वाले हर तरह के हवाई हमलों के लिए तैयार रहना होगा। आईडीएफ के लिए ये मुफीद वक्त है अगर तेहरान उसके सब्र की लक्ष्मण रेखा लांघ जाए तो वो हर तरह के खतरे को दूर रखने के लिए उनके परमाणु ठिकानों को निशाना बना सकता है।

हर मुमकिन मदद करेगा व्हाइट हाउस

मौजूदा हालातों में इजरायल के लिए अमेरिका अब्राहम समझौते की बुनियाद पर नए समीकरण बुन सकता है, इसके तहत समझौते की दुहाई देकर वो मध्य पूर्व में तेल अवीव के खिलाफ हवाई खतरों को रोकने के लिए समन्वय प्रणाली को सक्रिय कर सकता है। हालातों को भांपते हुए इस कोर्डिनेशन का इस्तेमाल पलटवार के लिए भी किया जा सकता है। वाशिंगटन कई देशों को ईरान पर कड़े प्रतिबंध लगाने के लिए मजबूर कर करेगा। इसके साथ ही कई ईरानी कंपनियों पर बैन, उनके खातों को सीज करना, ईरानी संपत्तियों की जब़्ती और कट्टरपंथी जमातों को उसकी ओर से हो रही फंडिंग पर भी अमेरिकी नकेल कसी जा सकती है। माना ये भी जा रहा है कि पेंटागन की निशानदेही पर कई देश ईरान, उससे जुड़े कट्टरपंथी संगठनों और IRGC (इस्लामिक रिवोल्यूशनरी गार्ड कोर्प्स) को ब्लैक लिस्ट कर उन्हें आंतकी सूची में डाल सकते हैं। यानि कि वैश्विक स्तर पर ईरान को कमजोर किया जा सकता है। इसके साथ ही व्हाइट हाउस ईरान में उठती विपक्ष की आवाज़ को भी सहयोग दे सकता है, ताकि अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर तेहरान को अलग-थलग करने में आसानी हो सके। ईरानी हुक्मरान अपने देश में चल रहे बुर्का विरोधी प्रदर्शनों को पहले ही इजरायल-अमेरिकी प्रायोजित बता चुके है।
अमेरिका यूक्रेन और ताइवान के तर्ज पर इजरायल को लोकतांत्रिक मानसिकता का वाहक मानता है, जो अभी विध्वंस की धुरी में फंसा हुआ है। भले ही आज से ठीक एक साल पहले इजरायल ने बेरहम हमले को झेला लेकिन इससे उनमें एकजुटता और जागरूकता का अद्भुत संचार हुआ है। जिस तरह से IDF ने हमास की रीढ़ तोड़ी है वो अब उन घातक क्षमताओं को हासिल नहीं कर पाएगा, जो उसके पास हुआ करती थी, और ना ही वो इस तरीके से विभीषका भरी योजनाओं को अंजाम दे पाएगा।
इस लेख के लेखक राम अजोर जो स्वतंत्र पत्रकार एवं समसमायिक मामलों के विश्लेषक हैं।
Disclaimer: ये लेखक के निजी विचार हैं, टाइम्स नाउ नवभारत डिजिटल इसके लिए उत्तरदायी नहीं है।
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आयुष सिन्हा author

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