Israel Iran Conflict: 4-H फैक्टर की जद में इस्राइल, पश्चिम एशिया में बढ़ेगा जंगी तनाव

Israel Iran Conflict News: 4-H फैक्टर यानि कि हमास, हिजबुल्ला, हूती और हनियेह की मौत से पैदा हुआ रोष तेल अवीव की परेशानी बढ़ा सकता है। लामबंदी का दौर भी शुरू हो चुका है। एक और अमेरिका इस्राइल के साथ खुले समर्थन में है, वहीं ईरान के पास कतर, तुर्किये, लेबनान (साथ ही कई नॉन स्टेट एक्टर्स) का खुला समर्थन है।

Israel-Iran War

Israel-Iran War

मुख्य बातें
  • 4-H फैक्टर यानि कि हमास, हिजबुल्ला, हूती और हनियेह की मौत से पैदा हुआ रोष तेल अवीव की परेशानी बढ़ा सकता है।
  • अमेरिका इस्राइल के साथ खुले समर्थन में है।
  • ईरान के पास कतर, तुर्किये, लेबनान (साथ ही कई नॉन स्टेट एक्टर्स) का खुला समर्थन है।
Israel Iran Conflict: तारीख 27 जुलाई, जगह इस्राइल का पूर्वोत्तरीय इलाका गोलान हाइट्स। 10 से 20 की उम्र के यहूदी बच्चे खुशगवार मौसम के बीच फुटबॉल खेल रहे थे। एकाएक आसमान में गरज सुनाई दी और ईरानी कत्युशा रॉकेट ने माहौल में मौत के रंग घोल दिए। चीख पुकार के बीच 12 बच्चों ने मौके पर ही दमतोड़ दिया और 20 से ज्यादा लोग गंभीर तौर पर जख्मी हो गए। शुरूआती छानबीन में सामने आया कि ये हमला लेबनान की सरजमीं से हिजबुल्ला ने किया। ठीक चार दिन बाद बेरूत में हिजबुल्ला के आला कमांडर फउद शुकर को लेबनान में इस्राइली खुफ़िया एजेंसियां ढ़ेर कर देती है, चंद घंटे बाद तेहरान में हमास की राजनीतिक विंग के बड़े चेहरे इस्माइल हनियेह इस्राइली मिसाइल (ऑफ द रिकॉर्ड) के निशाने पर आ जाते है। इस प्रकरण के तुरंत बाद ही ईरानी मस्जिदों पर लाल परचम लहरा दिए गए, जिसके बाद अब पश्चिम एशिया (यूरोप के लिए मध्य पूर्व एशिया) पर जंगी बादल मंडराने लगे।
मौजूदा तस्वीर में 4-H फैक्टर यानि कि हमास, हिजबुल्ला, हूती और हनियेह की मौत से पैदा हुआ रोष तेल अवीव की परेशानी बढ़ा सकता है। हनियेह की मौत से ईरानी हुक्मरानों का गुस्सा उनकी अपनी खुफ़िया एजेंसियां पर भी अंदरखाने फूटा, जिनकी नाकामी के चलते ईरानी राजकीय मेहमान की हत्या हुई। इसके साथ ही लामबंदी का दौर भी शुरू हो चुका है। एक और अमेरिका इस्राइल के साथ खुले समर्थन में है, वहीं ईरान के पास कतर, तुर्किये, लेबनान (साथ ही कई नॉन स्टेट एक्टर्स) का खुला समर्थन है। दबे छिपे बीजिंग और मास्को भी तेहरान से हमदर्दी रखे हुए है। इस बीच हिजबुल्लाह भी अब्बास अल-मुसावी की हत्या का बदला इस्राइल से लेना चाहेगा।

हमास का उदारवादी चेहरा थे इस्माइल हनियेह
बात करें इस्माइल हनियेह की तो वो हमास नेतृत्व की उदारवादी आवाज़ थे। उनकी मौत के बाद अब हमास इज़राइल के खिलाफ़ और भी कड़े कदम और कम समझौतावादी रुख अपनाने के लिए मजबूर हो जाएगा। हनियेह की सरपरस्ती में हमास की पॉलिटिकल विंग काफी व्यावहारिक तौर पर अपनी राजनीतिक कवायदों को चला रही थी, हनियेह लंबे समय से सीजफायर को लेकर संजीदा थे, अपनी मौत से ठीक पहले वो तेल अवीव के साथ युद्धविराम की पहल को अमलीजामा पहनाने के लिए लगातार प्रयासरत थे, जिसके चलते वो कई उदारवादी इस्राइली नेताओं के सम्पर्क में थे।

कई हत्याओं में शामिल रहे हैं मोसाद के एजेंट

इस्राइल ने इससे पहले भी कई दफा इसी तरह की कार्रवाईयों को अंजाम दिया है। जिसकी शुरूआत साल 2004 में हमास की नींव रखने वाले शेख अहमद यासीन की हत्या के साथ हुई, तड़के सुबह गाजा की एक मस्जिद से निकलते हुए मोसाद के एजेन्टों ने उन्हें ढ़ेर कर दिया। शेख अहमद यासीन की अगुवाई में ही हमास की सऊदी से करीबियां काफी बढ़ी थी, कई जानकारों का मानना है कि कुछ हद तक उनकी पहुंच क्लासीफाइड भारी हथियारों तक भी थी। इसके बाद अब्दुल अजीज अल-रंतीसी को इस्राइली मिसाइल ने अपनी जद में ले लिया। इस फेहरिस्त में अगला बड़ा नाम ईरानी इस्लामिक रिवोल्यूशनरी गार्ड कॉर्प्स के सीनियर कमांडर बिग्रेडियर जनरल रजा जहेदी का है। इस्राइल की ओर से की गयी हमास, हूती, हिज़्बुल्लाह और ईरानी के कई हाई-प्रोफ़ाइल नेताओं की हत्या लिस्ट खासा लंबी है।

हमास के वैचारिक धरातल पर ईरानी प्रभाव

इतिहास के पन्नों को फिर से एक बार पलटते हुए देखा जाए तो शेख अहमद यासीन की मौत के बाद इस्राइल के खिलाफ हमास को नयी मजबूती मिली। हमास की बागड़ोर खालिद मेशाल के पास थी, जिनके तीखे तेवरों से तेल अवीव अच्छी तरफ वाकिफ था। शेख अहमद यासीन के ठीक उलट खालिद मेशाल ने अपनी नजदीकियां तेहरान से बढ़ानी शुरू की। नतीजा हमास के हथियारखाने को एक से एक शानदार ईरानी हथियार और जंगी तकनीकें मिली। साल 2017 के दौरान जब इस्माइल हनियेह ने हमास को संभाला तब तक वो मिलिट्री ग्रेड पॉलिटिकल में तब्दील हो चुका था, जिसकी सोच और तौर-तरीकों में तेहरान का असर साफ झलकता था।

सामने आया खास किस्म का पैटर्न

सभी घटना को एक सूत्र में पिरोते हुए खास किस्म का पैटर्न सामने आता है, इस्राइल ने अपने जिस भी दुश्मन (रणनीतिक और राजनीतिक) को ठिकाने लगाया है, मारे गए शख्स के जगह पहले से ज्यादा आक्रामक और मजबूत व्यक्ति ने ली है। बीते 40 सालों से अपने वजूद की लड़ाई बताते हुए इस्राइल ने जिन हत्याओं और आर्मी ऑप्रेशंस को अंजाम दिया, वो कहीं ना कहीं उस पर बाद में भारी पड़ते दिखे। ये सिलसिलेवार तस्वीर है, जो कि सामने उभरती नज़र आ रही है। मिसाल के तौर पर साल 1992 में हिजबुल्लाह अब्बास अल-मुसावी की हत्या को लेकर आईडीएफ ने अपनी गलती मानी थी, इसे लेकर इज़राइली सैन्य अधिकारियों में आपसी मतभेद था। मुसावी की छवि चरमपंथी नहीं थी, लेकिन उनके बाद हिज़्बुल्लाह की ओर से तैनात किए गए सभी सिपहसालार कट्टरपंथी रहे है। मुसावी के बाद नसरूल्लाह ने हिज़्बुल्लाह को मिलिशिया से बड़ी ताकत में बदल दिया। यानि कि इस्राइल अपने जिन दुश्मनों को ठिकाने लगाता है, उसके बदले पहले से ज्यादा घातक लोग उसकी जगह लेकर बातचीत में कम और बदला लेने में ज्यादा विश्वास रखते आये है।

संप्रभुता को लेकर संजीदा तेहरान

पश्चिम एशिया में फैली जंगी फिजा में अब इस्माइल हनियेह की मौत ने भारी आफत को न्यौता दे दिया। तेल अवीव ने तेहरान को मोर्चा खोलने की वाज़िब वज़ह दे दी। हाल ही में अप्रैल महीने के दौरान दश्मिक में ईरानी राजनयिक परिसर में इस्राइली हमले में IRGC (इस्लामिक रिवोल्यूशनरी गार्ड कॉर्प्स) के दो जनरलों की हत्या के बाद तेहरान आग बबूला हो गया था। जवाबी कार्रवाई में ईरानी ड्रोन, क्रूज और बैलेस्टिक मिसाइलों के निशाने पर इस्राइल था। आला तकनीकी क्षमताओं से लैस होने के बावजूद इस्राइली आयरन डोम की ताकत को भेदते हुए ईरान की कुछेक बैलेस्टिक मिसाइलों ने तेल अवीव के चेहरे पर शिकन ला दी। इस्राइल की सरजमीं पर इस सदी में हुआ ये बड़ा हमला था। माना ये भी जा रहा है कि ईरान की संप्रभुता का यूं ही मखौल उड़ाया जाता रहा तो वो अपने परमाणु शस्त्रागार की मदद लेने से भी नहीं हिचकिचायेगा।

ईरान में बढ़ेगी कट्टरपंथियों की लामबंदी

नए ईरानी राष्ट्रपति मसूद पेजेशकियान की छवि को दुनिया के सामने ऐसे पेश किया जा रहा है कि वो बातचीत और बहुपक्षीय राजनयिक संबंध बनाने के पैरोकार है। अगर ऐसा है तो ईरान का झुकाव पश्चिमी ताकतों की ओर हो सकता था, लेकिन इस्माइल हनियेह की हत्या ने सारे समीकरणों को तहस-नहस कर दिया। इससे ईरान में कट्टरपंथियों की लामबंदी को खासा मजबूती मिलेगी, जिससे मसूद पेजेशकियान का उदारवादी नजरिया स्वत: स्फूर्त ध्वस्त हो जाएगा। इस्माइल हनियेह को ढ़ेर करना इस्राइल की बिंबात्मक विजय है, लेकिन इससे उसके दुश्मनों के तेवर में तीखापन बढ़ेगा और वो जंगी तैयारी करने के लिए बेबस हो जायेगें।

दोनों पक्षों की हैं, अपनी दुश्वारियां

ईरानी खेमे में खड़ा तुर्किये भी भीतरी मोर्चें पर कई दिक्कतों से दो-चार हो रहा है। लड़खड़ाते आर्थिक हालातों के बीच अंकारा के राजनीतिक गलियारे राष्ट्रपति रेसेप तैयप एर्दोगन की विश्वसनीयता में भारी गिरावट आयी है। कई मुद्दों को लेकर तुर्किये के नौजवान उनसे खफा है। नफा-मुनाफा तौलता हुआ सऊदी अरब किसी विवाद में पड़ने से बचना चाहेगा, वो इस पचड़े में पड़ने के बजाए अपना ध्यान पेट्रोलियम सप्लाई लाइन को बराकरार रखने और पैसा कमाने में लगाए रखना चाहता है। खुद ईरान भी कई अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों में मार झेल रहा है। दूसरी ओर इस्राइल भी वैचारिक धरातल पर दो-फाड़ होता दिख रहा है, जहां नेतन्याहू पर इल्जाम लगाए जा रहे है कि वो सियासी नफे के चक्कर में हमास के बंधक बने लोगों की जिन्दगियों के खेल रहे है। अपनी गिरती साख और जनाधार को जंगी माहौल की मदद से खड़ा करना चाहते है। इनके सबके बीच अमेरिका की भूमिका दिलचस्प हो गयी है, वो सीजफायर करवाकर जंग रूकवाना चाहता है, लेकिन मौजूदा हालातों ने सभी अनुमानों के बेपटरी कर दिया है। व्हाइट हाउस की फिजा में आने वाले आवामी इंतिखाब के रंग घुले हुए है, इसलिए फिलहाल वो खुद को इस मसले से दूर रखना चाहेगा।
पश्चिम एशिया में जंग छिड़ने के आसार बढ़ते दिख रहे है। इन सबके बीच हमास अपनी कवायदों को बढ़ा सकता है। इससे बचने के लिए नेतन्याहू को हमास के संगठनिक और वैचारिक ढांचे को ध्वस्त करना होगा। बदला लेने के लिए आमादा हमास, हिजबुल्ला और हूती किसी भी हद तक जा सकते है। अगर ऐसा होता है तो इंसानियत की हार होगी और हैवानियत की जीत। पश्चिम एशिया के 6 से ज्यादा मुल्कों का मौजूदा रवैया भारी परेशानी का सबब़ है, जो कि आग में घी का काम कर रहा है। इन सबके बीच इस्राइल को भी संयम बरतना होगा।
इस लेख के लेखक राम अजोर जो स्वतंत्र पत्रकार एवं समसमायिक मामलों के विश्लेषक हैं।
Disclaimer: ये लेखक के निजी विचार हैं, टाइम्स नाउ नवभारत डिजिटल इसके लिए उत्तरदायी नहीं है।
देश और दुनिया की ताजा ख़बरें (Hindi News) अब हिंदी में पढ़ें | एक्सप्लेनर्स (explainer News) और बजट 2024 (Union Budget 2024) की ताजा समाचार के लिए जुड़े रहे Times Now Navbharat से |

लेटेस्ट न्यूज

प्रांजुल श्रीवास्तव author

मैं इस वक्त टाइम्स नाउ नवभारत से जुड़ा हुआ हूं। पत्रकारिता के 8 वर्षों के तजुर्बे में मुझे और मेरी भाषाई समझ को गढ़ने और तराशने में कई वरिष्ठ पत्रक...और देखें

End of Article

© 2024 Bennett, Coleman & Company Limited