जंगी मुहाने पर खड़ा इस्राइल, सामरिक पेचीदगियों से भरे हालात

Israel war: इस्राइल को महफूज रखने के लिए वॉशिंगटन ने अपनी नौसेना को भू-मध्यसागर की ओर मोबालाइज कर दिया। साथ ही मलक्का की खाड़ी और बहरीन में भी अमेरिका ने तेल अवीव के लिए अभेद्य कवच तैयार किया है। इस किलेबंदी के तहत पूर्वी भूमध्यसागर में इस्राइल की मदद के लिए कई एंफिबियस असॉल्ट शिप्स को हाई अलर्ट पर रखा गया है।

Israel War

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Israel war: बीते रविवार (25 अगस्त 2024) जहां भारत में स्मार्त जन्माष्टमी का उत्सव था, वहीं नई दिल्ली से 7,425 किलोमीटर दूर इस्राइल में दहशत और बदहवासी का माहौल था। लेबनान की सरजमीं से हिज़्बुल्लाह ने कार्रवाई करते हुए इजराइल पर रॉकेट हमला कर अग्निवर्षा कर दी। तड़के सुबह हुई इस कार्रवाई को तेल अवीव ने मौके पर ही नाकाम कर दिया। इस्राइलियों ने अभी सुबह की अंगड़ाई भी ढंग से ना ली थी कि आईडीएफ की ओर से इमर्जेंसी एडवायजरी जारी कर दी गयी। जंगी हालात चरम पर पहुँचना तय था, इसलिए इस्राइली रक्षा मंत्रालय की ओर से 2 दिन के आपातकाल का ऐलान कर दिया गया। साथ ही एकाएक इस्राइल की उत्तरी सीमा पर नागरिकों की रोजमर्रा की गतिविधियों को भी रोक दिया गया। बड़ी आंशका के तहत हवाई सीमा को सील करते हुए बेन गुरियन हवाई अड्डे पर उड्डयन की कवायदें भी रोक दी गयी, बाद में हवाई अड्डे पर उड़ानों की बहाली कर दी गयी।

कई देश खोल सकते है मोर्चा

पश्चिम एशिया में हालात साफतौर पर बेहद नाजुक है, इजराइल और हिज़्बुल्लाह दोनों ही जंगी मुहाने पर आ खड़े हुए है। मौजूदा हालात इस्राइल और लेबनान की सीमा में रह रहे लोगों के लिए बुरे सपने जैसे है। मिसाइल और ड्रोन के संभावित हमलों के मद्देनज़र लेबनान की सीमा से लगे दक्षिणी इलाके और उत्तरी इस्राइल में लोग बेघर होकर सुरक्षित आसरे की तलाश में भटक रहे है। लोगों में डर है कि प्रोजेक्टाइल की जद में वो और उनका परिवार आ सकता है। इस्राइली आंतकित है कि हिज़्बुल्लाह गोलान हाइट्स वाली कार्रवाई को दोहरा सकता है, कत्यूषा रॉकेट हमले का डर लगातार उनके सिर पर मंडरा रहा है। दोनों ही पक्ष बदले की आग में झुलस रहे है, कोई भी महफूज महसूस नहीं कर रहा है। प्रतिशोध की जरा सी चिंगारी इज़राइल-हिज़्बुल्लाह को जंग की आग में धकेल सकती है। अगर ऐसा होता है तो पश्चिम एशिया में कई बड़े अप्रत्याशित सैन्य मोर्चें भी खुल सकते है। अगर इस जंगी किलेबंदी में तेहरान शामिल हुआ तो कई और देश भी इसमें शामिल होगें।

इस्राइल में दिखी वैचारिक विभाजन की लकीर

इजराइल के अंदरूनी हालात फिलहाल बीते साल 7 अक्टूबर को हुए हमले से पहले वाली शांति स्थिति में नहीं लौटेगें। उस हमले के बाद से ही गाजा में युद्ध के चरम हालात कायम है। जैसा कि आमतौर पर होता है, युद्ध की स्थिति में जनसामान्य वर्ग अलग अलग मतों के पैरवी करते है, जिसके चलते समाज और व्यवस्था के बीच विभाजन जैसे हालात बनते है। लंबे समय से कायम इन हालातों ने इस्राइली नागारिकों के बीच विभाजन के नई रेखा खींच दी है। एक वर्ग नेतान्याहू की मुखालफत कर रहा है तो दूसरा उनकी कार्रवाईयों को जायज़ ठहरा रहा है। युद्ध विराम समझौते और गाजा में इजराइली बंधकों की वापसी को लेकर वार्ता का दौर बेनतीज़ा ही रहा। दोनों खेमों के अड़ियल रवैये के चलते बातचीत और मध्यस्थता जैसी स्थिति बेमानी ही लगती है। हमास का दावा है कि इस्राइल हथियारबंद कार्रवाई रोकने के नाम पर उस पर लगातार कई नई शर्तें थोपता आया है, जबकि वो खुद अपनी तरफ कोई शर्त ना रखने की पेशकश करता रहा है। दोनों पक्ष एक दूसरे पर इल्जाम लगा रहे है, दोनों तरफ के हिमायती भी अपने-अपने तर्कों के साथ मैदान में खड़े है। इन सबके बीच फिलिस्तीनी और इजराइली बंधक रोजाना काल के गाल में समा रहे है।

इस्राइली बहुसंख्यक और अल्पसंख्यक आबादी की अलग-अलग सोच

इस्राइली आवाम अपने बंधकों को लेकर काफी संजीदा है, तारीख गवाह है कि अपने लोगों की हिफाजत के लिए इस्राइल किस हद तक गया है। बहुसंख्यक इजरायली आबादी अपने लोगों की सुरक्षित वापसी चाहती है, भले ही इसके लिए सीज़ फायर किया जाए या फिलिस्तीनी अतिवादियों की रिहाई की जाए। इस्राइल में एक बड़े तबके की आस्था बेंजामिन नेतन्याहू के प्रति डगमगाती दिख रही है, उनका मानना है कि इस्राइली प्रधानमंत्री ने युद्ध बंधकों और पीड़ित परिवार के प्रति रूखा रवैया अख्तियार किया हुआ है। बावजूद इसके एक ताकतवर अल्पसंख्यक जमात और भी है, जो कि ये मानती है कि दुश्मनों को धूल चटाने लिए बंधकों की ज़िंदगी का बलिदान कर दिया जाना चाहिए। इन सबके इतर इस्राइली सरकार गाजा को मटियामेट कर फतेह का परचम लहराना चाहती है।

नेतन्याहू सरकार से हुआ मोहभंग

इस्राइली बंधकों की वापसी का सर्मथन करने वाले लोगों का मानना है कि सरकार उन्हें नज़रअंदाज़ कर रही है, जिसकी पीछे वजह ये है कि वो ज्यादातर वामपंथी सोच वाले धर्मनिरपेक्ष लोग है। ऐसी आबादी की वैचारिक आस्था देखते हुए अब ये देखना भी दिलचस्प होगा कि इस्राइली सरकार की नज़रों में आबादी का कौन सा धड़ा ज्यादा अहमियत रखता है? दक्षिण इस्राइल में जिन लोगों ने हमास के हमले को झेला अब वो महसूस करने लगे है कि नेतन्याहू सरकार ने उन्हें उनके हाल पर बेबस छोड़ दिया है। इसी धड़े ने उस कार्यक्रम का भी बहिष्कार कर दिया है, जो कि इस्राइली सरकार 7 अक्टूबर को हुए हमले की याद में करने जा रही है।

स्थानीय परिषद के नेताओं में अलगाववाद के सुर

सरकारी दखल के बाद उत्तरी इस्राइल से कुछ लोगों सुरक्षित निकाला गया, लेकिन अभी भी वहां एक बड़ी आबादी को राहत और बचाव की दरकार है। उत्तरी इलाके के पीड़ित लोग नेतन्याहू सरकार से सुरक्षा बहाली कार्रवाई की उम्मीद पाले बैठे है, ताकि वो सभी सुरक्षित की ओर पहुंच सके। इन्हीं लोगों में से एक गुट जंग की पैरवी कर रहा है, और दूसरा कूटनीतिक संभावनाओं को तलाशने की वकालत। उत्तरी इलाके के ये बांशिदें उस हमले के भी चश्मदीद है, जिसमें एक हूती ड्रोन तेल अवीव में गिरा गया था, इसके जवाब में तेल अवीव ने यमन और लेबनान में कई ठिकानों पर हमले किए थे। हमलों से आज़िज आकर इजरायल के उत्तरी सीमावर्ती इलाकों की स्थानीय परिषद के नेताओं ने ऐलान किया कि वो इस्राइली सरकारी अधिकारियों से अपने सभी संपर्क खत्म कर लेगें। आक्रामक रवैया अख्तियार करते हुए स्थानीय परिषद के नेताओं ने ये भी दावा किया कि वो किसी तरह के हालातों का सामना अपने दम पर करेगें।

आलोचनाओं से घिरा इस्राइल का शीर्ष नेतृत्व

बीते रविवार (25 अगस्त 2024) को एक ओर दिलचस्प चीज देखने को मिली, जहां ओत्ज़मा येहुदित पार्टी की ओर से अखबारों में विज्ञापन जारी किया गया, जिसमें इजरायल की आंतरिक सुरक्षा एजेंसी के प्रमुख को बर्खास्त करने की मांग की गयी। इस बीच राजनयिक स्रोतों से छनते हुए ये खबर भी सामने आयी कि IDF सिर्फ इस्राइली युद्ध बंधकों की रिहाई नहीं चाहता बल्कि वो हमास की सैन्य और शासन क्षमता को भी जमींदोज करना चाहता है। फिलहाल इस्राइल की चाहत एक तरफ, दूसरी तरफ नेतन्याहू की रणनीतियां साबित करती है कि उनके पास हमास को नेस्तनाबूत करने के अलावा कई और मकसद भी है। फिलहाल 10 महीने से ज्यादा का वक्त बीत गया है, लेकिन वो कुछ भी ठोस रणनीतिक लक्ष्य हासिल करने में पूरी तरह नाकाम रहे है।

अमेरिकी नौसेना ने झोंकी ताकत

इस्राइल को महफूज रखने के लिए वॉशिंगटन ने अपनी नौसेना को भू-मध्यसागर की ओर मोबालाइज कर दिया। साथ ही मलक्का की खाड़ी और बहरीन में भी अमेरिका ने तेल अवीव के लिए अभेद्य कवच तैयार किया है। इस किलेबंदी के तहत पूर्वी भूमध्यसागर में इस्राइल की मदद के लिए कई एंफिबियस असॉल्ट शिप्स को हाई अलर्ट पर रखा गया है। ओमान की खाड़ी में जंगी जहाजों के अलावा एयरक्राफ्ट कैरियर स्ट्राइक ग्रुप की तैनाती कर दी गयी है। साथ ही न्यूक्लियर मिसाइलों से लैस सबमरीन यूएसएस जॉर्जिया, कैरियर स्ट्राइक ग्रुप यूएसएस अब्राहम लिंकन के साथ हमला करने के लिये पूरी तरह से तैयार है। मध्य पूर्व में तेल अवीव को रक्षा कवच देने के लिए अमेरिकी नेवी ने अपनी 35 फीसदी ताकत झोंक दी है।

तनावपूर्ण मनोस्थिति से गुजरते इस्राइली
इस्राइली के दिमाग में दहशत घर कर गई है, अगले हमले से कैसे बचना है? आपातकाल में फोन की बैट्री कैसे बचाई जाये? नजदीकी महफूज जगह कहां है? और मिसाइल हमले के हालातों से कैसे निपटा जाए? इन बातों की चिंता करने के बाद थोड़ी बहुत दिमागी फुरसत के वक्त वो ये सोचते है कि देश विशेष उनसे इतनी नफरत क्यों करते हैं? खास बात ये भी है कि गाजा में फिलिस्तीनी नागरिकों को लेकर हमदर्दी दिखाने के लिए भी इस्राइलियों के दिमाग में कम ही जगह बची है।
दोनों ओर की दुश्मनी से क्षेत्रीय तनाव ही बढ़ेगा, जरूरत है हालातों को सामान्य करने की। मौजूदा लड़ाई को खत्म करने के लिए इजरायल और फिलिस्तीनियों को खुले मन से सामने आना होगा। इसके बाद ही मध्य पूर्व में आने वाला वक्त पूरी तरह से अमन और चैन से लबरेज होगा।
इस आलेख के लेखक राम अजोर (वरिष्ठ स्वतंत्र पत्रकार एवं समसामयिक मामलों के विश्लेषक) हैं।
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प्रांजुल श्रीवास्तव author

मैं इस वक्त टाइम्स नाउ नवभारत से जुड़ा हुआ हूं। पत्रकारिता के 8 वर्षों के तजुर्बे में मुझे और मेरी भाषाई समझ को गढ़ने और तराशने में कई वरिष्ठ पत्रक...और देखें

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