जेल में बापू ने कहा- तुमने मुझसे झूठ बोला, तो काका कालेलकर ने खा ली ये कसम; पढ़ें रोचक किस्से

Kaka Kalelkar Story: क्या आप काका कालेलकर को जानते हैं? अंग्रेजों के खिलाफ लोहा लेने वाले इस क्रांतिकारी के बारे में कई किस्से मशहूर हैं। उनका जन्म आज के ही दिन- 21 अगस्त, 1885 को हुआ था। गांधीवादी काका कालेलकर वैसे तो मिजाज से नरम, लेकिन क्रांति के लिए 'गरम मन' वालों के समर्थक थे।

काका कालेलकर।

बचपन में अंग्रेजों के खिलाफ ऐसी आवाज बुलंद की कि डॉक्टर ने कड़वी दवाई को मीठा करने के लिए उसमें चीनी मिलाई तो दवा खानी ही छोड़ दी। यरवदा जेल में बापू ने कह दिया कि तुमने मुझसे झूठ बोला, धोखा दिया और पपीता खिलाया तो इन्होंने कसम खा ली कि ताउम्र पपीता नहीं खाउंगा। मीठे से दूरी के बाद भी जिनकी कलम साहित्य रचना के समय मिठास से भरी रही। उनकी साहित्यिक भाषा और शैली ओजस्वी थी क्योंकि उन्हें पराधीनता रास नहीं आती थी। अपने निबंधों को जिन्होंने हमेशा व्याख्यात्मक शैली में लिखा और कुछ रचनाएं तो ऐसी जिसमें उन्होंने विचारक के तौर पर उपदेशात्मक शैली के दर्शन कराए।

जब काका ने हिंदी सीखकर उसमें लिखना शुरू किया

आजादी जिनके दिलो-दिमाग पर हावी थी। अंग्रेजी हुकूमत की बेड़ियों में जकड़े भारत में गुलामी की वजह से उनकी सांसें अटकती रही। ऐसे थे काका कालेलकर जिनको आजाद भारत के इतिहास में भी कई सारे ऐसे प्रयोगों के लिए जाना जाता है जिसके लिए ये देश सदा उनका ऋणी रहेगा।

महात्मा गांधी और काका कालेलकर।

महाराष्ट्र के सतारा में जन्मे काका कालेलकर भले मराठी थे और कई साहित्यों की रचना मराठी भाषा की लेकिन वह ऐसे साहित्यकारों में भी गिने गए जिन्होंने अहिन्दी भाषी क्षेत्र का होने के बाद भी हिंदी सीखकर उसमें लिखना प्रारंभ किया और उनके साहित्य को लोगों ने सीने से लगा लिया। वह उस दक्षिण भारत में हिंदी के प्रचार का कार्य करते रहे जहां अभी भी हिंदी को लेकर एक हीन भावना लोगों के मन में है। मराठी होने के बाद भी हिंदी और गुजराती में उन्होंने कई मौलिक रचनाएं लिखीं।

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