Kamala Harris करिश्मा करने की राह पर कमला हैरिस; अमेरिका का सियासी फैक्टर समझिए

US Election: क्या कमला हैरिस अमेरिका की अगली राष्ट्रपति बन पाएंगी? ये सवाल इसलिए है कि भले ही उनकी राह में डोनाल्ड ट्रंप खड़े हैं और उन्हें कड़ी दे रहे हैं। लेकिन कई ऐसे फैक्टर हैं, जो इस ओर इशारा कर रहे हैं कि कमला हैरिस करिश्मा करने की राह पर अग्रसर हैं। आपको तफसील से सारा समीकरण समझाते हैं।

Kamala Harris US Presidential Election

क्या अमेरिका की राष्ट्रपति बन पाएंगी कमला हैरिस?

Kamala Harris vs Donald Trump: सियासी कवायदों में एक-एक पल की अहमियत होती है। गुजरा हफ्ता अमेरिकी इतिहास में एक नए अध्याय का गवाह बन सकता है। इन सबके केंद्र में हैं कमला हैरिस। उन्होनें कभी सोचा नहीं होगा कि आगामी अमेरिकी राष्ट्रपति चुनावों में डेमोक्रेट खेमे की रहनुमाई वो करेंगी। बढ़ती उम्र और दिमागी थकान (गिरती याददाश्त) के चलते बाइडेन ने कमला पर अपना भरोसा जताया। कम ज्यादा कमोबेश सभी की निगाहें अब कमला हैरिस पर है। जिस रफ्तार के साथ वो नेपथ्य से नेतृत्व की ओर उभरी हैं, वो किसी परीकथा से कम नहीं। अब हैरिस डेमोक्रेट राष्ट्रपति पद की उम्मीदवार हैं तो उनके पीछे उत्साही समर्थकों की भारी भीड़ है।
जैसे ही कमला हैरिस के नाम पर मुहर लगी चुनावी तस्वीर में एकाएक नए रंग भरने लगे। एक बड़ा वर्ग इसे डेमोक्रेट्स की ओर से चला गया बड़ा दांव मान रहा है। कमला हैरिस की विश्वसनीयता का ये माहौल है कि मात्र 24 घंटों के भीतर ही उन्हें रिकॉर्ड तोड़ 81 मिलियन डॉलर की पॉलिटिकल डोनेशन मिली। मौजूदा हालातों में उन्होनें राष्ट्रपति पद के लिए डेमोक्रेटिक नामांकन हासिल करने के लिए प्रतिनिधियों के समर्थन की जरूर संख्याबल भी हासिल कर लिया है। फिलहाल डेमोक्रेट खेमे ने ये साफ कर दिया है कि अगर कोई हैरिस के नामाकंन को चुनौती देना चाहता है तो वो अपनी दावेदारी पेश करे। इस काम के लिए समय सीमा भी जारी कर दी गयी है। बराक ओबामा के समर्थन के बाद कमला हैरिस की दावेदारी को काफी मजबूती मिली है, यानि कि हैरिस का रास्ता करीब करीब पूरी तरह साफ है।

मिल रहा है चौतरफा समर्थन

जहां कई बड़े डेमोक्रेट सियासतदानों ने उनके नाम पर मुहर लगाई है, वहीं सोशल मीडिया पर भी हैरिस के नाम की धूम मची हुई है। ब्रिटेन से भी उनके समर्थन में सरगम फूट रही है, ब्रिटिश पॉप स्टार चार्ली एक्ससीएक्स ने सोशल मीडिया पर हैरिस को अपना खुल समर्थन दिया। वाकई ये हैरिस के लिए यादगार लम्हा होगा। भारतीय मूल की पहली अश्वेत अमेरिकी उपराष्ट्रपति का राष्ट्रपति पद की दौड़ में शामिल होने के साथ ही सोशल मीडिया पर जमकर मीम्स भी जारी किए जा रहे है। कुछ इस तरह की सियासी बयार बराक ओबामा के समय भी देखी गयी थी।

अवसर के साथ चुनौतियां भी हैं बड़ी

इस बीच कई नामी-गिरामी अमेरिकी सर्वे एजेंसियों के नतीजे हैरिस के पक्ष में जाते दिख रहे है। युवा अमेरिकी मददाताओं के बीच हैरिस का चेहरा विश्वसनीयता के साथ भारी स्वीकार्यता लिए हुए है। दिलचस्प ये भी है कि हैरिस के चुनावी मैदान में आने के साथ ही डोनाल्ड ट्रंप की बढ़त और लोकप्रियता में गिरावट दर्ज की जा रही है। ये सर्वे से निकली छनी हुई बातें है, इसलिए पुख्ता तौर पर इस पर ज्यादा जोर नहीं दिया जाना चाहिए। दूसरी ओर बाइडेन कुछ हद तक एंटी-इनकम्बेंसी की हवा भांप चुके हैं। ट्रंप का झक्की मिजाज बड़ी अमेरिकी आबादी को नागवारा है। इसलिए अमेरिकी बाइडेन और ट्रंप का आमना सामना नहीं चाह रहे हैं, कुछ नए और बदलाव की उम्मीद हैरिस से बंधती दिखती है। इन सबके बीच नवंबर तक ये देखना दिलचस्प होगा कि हैरिस के आसपास बुनता विश्वास का ताना-बाना दिन ब दिन किस तरह अपनी मजबूती बरकरार रखता है?

आसान नहीं है, चुनावी डगर

कमला हैरिस का नाम सामने आने के साथ ही रिपब्लिकन खेमा उनकी आलोचना का नैरेटिव रच रहा है। जिस रफ्तार से वो आगे बढ़ रही है, उनकी राहों में कांटे बिछाने की कवायदों में तेजी देखी गयी। रिपब्लिकन ने हैरिस को नस्लवादी और महिला विरोधी करार दिया। उनके उपराष्ट्रपति पद के कार्यकाल को लेकर मीनमेख निकाला जा रहा है। अमेरिकी सरजमीं पर बढ़ रहे प्रवासन संकट के लिए रिपब्लिकन उन्हें जवाबदेह ठहरा रहे हैं। इसके साथ ही गाजा में चौतरफा फैला मानवीय संकट कमला समेत डेमोक्रेट्स के लिए गले ही हड्डी बनता दिख रहा है। गाजा को लेकर बाइडेन ने जो अमेरिकी नीति अख्तियार की, अब उसका चेहरा हैरिस है। माना जा रहा है कि उन्हें इसका सीधा खामियाजा उठना पड़ा सकता है। अमेरिकी युवाओं के बीच गाजा को लेकर सहानुभूति बढ़ी है, मामले को लेकर वो वॉशिंगटन से खफा है। इस फैक्टर के चलते डेमोक्रेट को भारी नुकसान उठाना पड़ सकता है। गाजा के लिए उठी हमदर्दी की आवाजे एरिजोना, जॉर्जिया, नेवादा, साउथ कैरोलिना, मिशिगन, पेंसिल्वेनिया और विस्कॉसिन जैसे स्विंग स्टेट्स में डेमोक्रेट के खिलाफ बैलेट बॉक्स जा सकती है। जनसांख्यिकी के पैमाने पर अरब मूल के अमेरिकी भी हैरिस के खिलाफ जमकर मतदान कर सकते हैं।

चुनावी अभियान में गाज़ा है, बड़ी रुकावट

गाजा के तथ्य, तर्क, बातें और जमीनी हकीकत के बीच चुनावों के मद्देनज़र हैरिस मामले की नजाकत को काफी नाज़ुक तरीके से डील कर रही हैं। बेहद सधे और नपे-तुले कदम से वो अमेरिकी उदारवादियों (खासतौर से वामपंथी धड़ा) को अपने पक्ष में बनाने की कोशिश में लगी हुई है ताकि उन्हें मौजूदा हालातों में किसी पक्ष का विरोधी करार ना दिया जाए। हाल ही में अमेरिकी कांग्रेस में नेतन्याहू के संबोधन में गैर मौजूदगी दर्ज करवाकर उन्होनें उनसे निजी तौर पर मुलाकात की, हैरिस के इस कदम से काफी कुछ साफ हो जाता है। एक तरफ हैरिस युद्धविराम समझौते की पैरोकारी करती है, दूसरी ओर तेल अवीव का समर्थन भी। इन सबके बीच तटस्थ आकलन ये कहता है कि वो ये सूरत ज्यादा दिनों तक कायम नहीं रख पायेंगी। उन्हें एक खेमे का खुलकर समर्थन करना होगा। उन्हें या तो इजरायल को छूट देनी होगी, गाजा के जंगी मैदान में फिलिस्तीनियों का खून बहाने की, या फिर वो इजरायल का मामूली विरोध करके खानापूर्ति करेंगी, जिसकी उम्मीद लगभग ना के बराबर है।

कमला हैरिस को लाने होंगे जरूरी बदलाव

राष्ट्रपति पद के लिए हैरिस को अपनी शख्सियत को नया कलेवर देना होगा, ये चीज उनकी खूबियों में कभी शुमार नहीं रही हैं। साल 2019 के अमेरिकी चुनावों के दौरान उनका चुनावी अभियान नाकामी की भेंट चढ़ गया था। उस दौरान वो चुनाव प्रचार में संतुलन कायम नहीं कर पायी थी। खास ये भी है कि वो अपने चुनावी संदेश, रणनीति और एजेंडे की तासीर में बदलाव नहीं ला पाती है, जिसके चलते वाजिब असर का माहौल नदारद रहता है।

अमेरिका के पास है, मैडम राष्ट्रपति हासिल करने का मौका

हैरिस का नाम ऐलान करने से पहले ट्रंप के पक्ष में बयार बनती दिख रही थी, जो कि फिलहाल सुस्त पड़ गयी है। हैरिस के पास मौका है, जिसका फायदा उठाकर वो अपनी काबिलियत और कुव्वत को साबित कर सकती है। इससे पहले बतौर पर प्राथमिक उम्मीदवार या उपराष्ट्रपति उनकी चमक फीकी ही रही है। उनके सामने ट्रंप है, जिन्हें झक्की बूढ़ा, तुकमिजाज़ और सनकी साबित करने में हैरिस को ज्यादा मुश्किल नहीं होगी। ट्रंप के मुकाबले हैरिस नौजवान हैं, वो खुद को अमेरिका के मुस्तकबिल के तौर पर पेश करेंगी। वो अमेरिकी जम्हूरियत के आने वाले कल की अगुवा हो सकती है। अमेरिकी रियाया के पास एक मौका है, मैडम राष्ट्रपति को व्हाइट हाउस के तख्त तक पहुंचाने का, जिसे वो बामुश्किल ही गवाना चाहेंगे। इसलिए कहा जाता है कि सियासी गलियारे का एक एक पल बेशकीमती होता है।
इस लेख के लेखक राम अजोर जो स्वतंत्र पत्रकार एवं समसमायिक मामलों के विश्लेषक हैं।
Disclaimer: ये लेखक के निजी विचार हैं, टाइम्स नाउ नवभारत डिजिटल इसके लिए उत्तरदायी नहीं है।
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आयुष सिन्हा author

मैं टाइम्स नाउ नवभारत (Timesnowhindi.com) से जुड़ा हुआ हूं। कलम और कागज से लगाव तो बचपन से ही था, जो धीरे-धीरे आदत और जरूरत बन गई। मुख्य धारा की पत्रक...और देखें

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