Explained: 1985 का कनिष्क विमान हादसा, 329 लोगों की गई थी जान, कनाडा में धीमी जांच और कई चूकें

कनाडा के इतिहास में आतंकवाद की सबसे घातक घटना थी कनिष्क विमान हादसा। 23 जून, 1985 को एयर इंडिया की उड़ान 182 'कनिष्क' आतंकी हमले का शिकार हुआ था।

Kanishka plane crash

1985 का कनिष्क विमान हादसा

1985 Kanishka Plane Bombing: खालिस्तानी आतंकी हरदीप सिंह निज्जर की हत्या को लेकर कनाडा और भारत के संबंध तनावपूर्ण बन गए हैं। कनाडाई प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने सीधे तौर पर निज्जर की हत्या का आरोप भारतीय एजेंसियों पर लगाया है। इसके साथ ही उसने एक भारतीय राजनयिक को निष्कासित भी कर दिया। भारत ने आरोपों को बेतुका बताते हुए जवाबी कार्रवाई में कनाडा के एक राजनयिक को भी देश छोड़ने का आदेश सुनाया। इस घटनाक्रम ने दोनों देशों के संबंधों को धरातल पर पहुंचा दिया है।

23 जून, 1985 का वो दिन

इसी सिलसिले में 1985 में एयर इंडिया के कनिष्क विमान हादसे को याद करना भी जरूरी हो जाता है। इस हादसे में 329 लोगों की जान गई थी। क्या था ये मामला, समझने की कोशिश करते हैं। कनाडा के इतिहास में आतंकवाद की ये सबसे घातक घटना थी। 23 जून, 1985 को एयर इंडिया की उड़ान 182 'कनिष्क' आतंकी हमले का शिकार हुआ था। बीच हवा में हवाई जहाज में धमाका हुआ जिसमें 329 लोग मारे गए थे। इनमें से अधिकतर कनाडाई नागरिक थे। इस मामले में कनाडा सरकार का रवैया बेहद आपत्तिजनक था और आरोपियों के प्रति उसका रुख बहुत नरम

रहा।

खालिस्तानी आतंकवादियों ने कनिष्क को निशाना बनाया था जो 9/11 आतंकी हमले से पहले तक का सबसे घातक विमानन-संबंधी आतंकवादी घटना थी। इस आतंकी हमले में 280 कनाडाई नागरिकों सहित 329 लोगों की जान चली गई। ये विमान मॉन्ट्रियल से टोरंटो होते हुए लंदन के लिए उड़ान भर रहा था। लेकिन खालिस्तानी आतंकवादियों ने इसे हवा में ही उड़ा दिया। इसका कुछ मलबा आयरलैंड के कॉर्क क्षेत्र के तट पर बिखरा मिला, बाकी उत्तरी सागर में डूब गया। विमान में सवार सभी 307 यात्री और चालक दल के 22 सदस्य मारे गए थे।

एयर इंडिया फ्लाइट 182 कोई मौका ही नहीं मिला

एयर इंडिया फ्लाइट 182 को कोई चेतावनी या आपातकालीन कॉल जारी करने का भी मौका नहीं मिला क्योंकि कनाडा के मॉन्ट्रियल से उड़ान भरने के 45 मिनट के भीतर इसमें विस्फोट हो गया। जैसे ही विमान रडार स्क्रीन से गायब हुआ, लंदन हवाई अड्डे के अधिकारियों ने बचाव दल भेजा, लेकिन कोई भी जिंदा नहीं मिला। विमान में सवार 329 लोगों में से केवल 131 शव ही समुद्र से बरामद किए जा सके। बम विमान में एक सूटकेस में था। सीबीसी न्यूज के मुताबिक, मंजीत सिंह नाम का एक शख्स एयर इंडिया फ्लाइट 182 में एक सूटकेस लेकर आया था, लेकिन जब फ्लाइट ने उड़ान भरी तो मंजीत सिंह उसमें नहीं था।

एक और विमान को उड़ाने की साजिश हुई नाकाम

हमलावरों ने उस दिन एयर इंडिया के एक और विमान पर बमबारी करने की योजना बनाई थी, लेकिन मानवीय गलती के कारण प्लान नाकाम हो गया। दूसरा बम जापान के टोक्यो हवाई अड्डे पर फटा, जिसमें सामान संभालने वाले दो लोगों की मौत हो गई। असल योजना थाईलैंड में बैंकॉक जाने वाली एयर इंडिया फ्लाइट 301 को बम से उड़ाने की थी। कैनेडियन इनसाइक्लोपीडिया में कहा गया है, 23 जून 1985 को जापानी बैगेज हैंडलर हिदेहरू कोडा और हिदेओ असानो टोक्यो के नरीता हवाई अड्डे पर एक सीपी फ्लाइट से सूटकेस उतार रहे थे। जैसे ही उन्होंने वैंकूवर से आए बैग को पकड़ा, जिस पर एयर इंडिया की फ्लाइट का टैग लगा था, उसमें धमाका हो गया। दो कर्मचारी तुरंत मारे गए।

सिख आतंकवादियों का था हाथ

इस हमले के पीछे सिख आतंकवादियों का हाथ बताया गया। 1985 की इंडिया टुडे की खबर के अनुसार, विमान में धमाके के कुछ ही घंटों के भीतर न्यूयॉर्क में समाचार पत्रों के कार्यालयों को हमले की जिम्मेदारी लेने वाले कॉल आने शुरू हो गए। तीन अलग-अलग समूहों ने धमाके का श्रेय लेने के लिए समाचार पत्र कार्यालयों को फोन किया। ये थे दशमेश रेजिमेंट, ऑल-इंडिया सिख स्टूडेंट्स फेडरेशन और कश्मीर लिबरेशन आर्मी। 1985 में कनाडाई अधिकारियों को सिख आतंकवादियों पर ऑपरेशन ब्लू स्टार का बदला लेने के लिए विमान में बम लगाने का संदेह था। कनाडाई अधिकारियों को पता लगा कि बम विस्फोटों की योजना कनाडा में बनाई गई थी।

कृपाल आयोग का हुआ था गठन

भारत सरकार ने बम धमाके की जांच के लिए कृपाल आयोग नियुक्त किया था। इसकी अध्यक्षता न्यायमूर्ति बीएन कृपाल ने की। इसके अलावा सीबीआई ने भी इस साजिश की जांच की। कृपाल आयोग का काम यह पता लगाना था कि क्या यह बमबारी थी या इंजन की खराबी से विस्फोट हुआ था या कोई और वजह थी। आयोग ने पाया कि यह एक आतंकी हमला था। सीबीआई ने जांच के बाद पता लगाया कि बम धमाके में पंजाब के आतंकवादी संगठन बब्बर खालसा इंटरनेशनल (BKI) का हाथ था और इसका मास्टरमाइंड बीकेआई नेता तलविंदर सिंह परमार था।

कनाडा में धीमी जांच, सुरक्षा में चूक

'सम्राट कनिष्क' बमबारी कनाडा में आतंक का सबसे भयानक कृत्य था। फिर भी सिर्फ एक शख्स इंद्रजीत सिंह रेयात को इसमें दोषी ठहराया गया और वह भी बम धमाके के दशकों बाद। मास्टरमाइंड परमार को कभी दोषी नहीं ठहराया गया। 1992 में जब वह भारत लौटा तो पंजाब में पुलिस मुठभेड़ में मारा गया। 2006 में तत्कालीन कनाडाई प्रधानमंत्री स्टीफन हार्पर ने बम विस्फोट के लिए जांच आयोग की घोषणा की। 2010 में प्रकाशित रिपोर्ट में कई सुरक्षा नाकामी और गलतियां पाई गईं, जिसके कारण विमान धमाके का शिकार बन गया।

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अमित कुमार मंडल author

करीब 18 वर्षों से पत्रकारिता के पेशे से जुड़ा हुआ हूं। इस दौरान प्रिंट, टेलीविजन और डिजिटल का अनुभव हासिल किया। कई मीडिया संस्थानों में मिले अनुभव ने ...और देखें

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