कर्नाटक चुनाव में बीजेपी-कांग्रेस की जंग के बीच ओवैसी का 'खतरनाक' Experiment! विस्तार से समझिए

Karnataka Election explained: कर्नाटक विधानसभा चुनाव प्रचार आखिरी दौर में पहुंच गया है। बीजेपी-कांग्रेस के बीच जंग तो चल रही है। इसी बीच हैदराबादी भाईजान असदुद्दीन ओवैसी अपना M-फॉर्मूला लेकर मैदान में कूद चुके हैं। क्या ओवैसी का ये नया प्रयोग क्या रंग लाएगा। किसका खेल बिगाड़ेगा। यहां पढ़ें एक्सक्लूसिव रिपोर्ट।

Karnataka Election explained: कर्नाटक में मतदान का काउंटडाउन शुरु हो चुका है। यहां 10 मई को वोट डाले जाएंगे। जाहिर है प्रचारयुद्ध जोरों पर है। हर तरफ बजरंग बली का शोर है लेकिन इस बीच हैदराबादी भाईजान असदुद्दीन ओवैसी भी अपना M-फॉर्मूला लेकर सियासी जोर आजमाइश कर रहे हैं। कर्नाटक की बीजेपी बनाम कांग्रेस की द्विपक्षीय लड़ाई को नई धार दे रहे हैं। कर्नाटक में ओवैसी कैसे कर रहे हैं एक्पेरिमेंट और ओवैसी का ये नया प्रयोग क्या रंग लाएगा। किसका गेम बिगाड़ेगा, हमारी इस एक्सक्लूसिव रिपोर्ट में देखिए।

बजरंग दल बैन पर बोले ओवैसी

ओवैसी ने कहा कि मोदी जी अपने भाषण में कहते हैं कि भाईयों बहनों जब पोलिंग बूथ को जाएंगे वो बजरंगबली बोलकर बटन दबाना तो कांग्रेस के डीके बोले हम मंदिर बनाएंगे और कांग्रेस पार्टी भूल गई इलेक्शन से पहले कांग्रेस के ये चमचे ये जो कांग्रेस के गुलाम हैं ये चमचे कूद-कूद कर बोल रहे थे बजरंग दल पर बैन लगेगा।

कर्नाटक में अपना दमखम दिखा रहे हैं ओवैसी

हिंदी सिनेमा का पुराना लेकिन मशहूर गीत है, तुम अगर मुझको ना चाहो तो कोई बात नहीं, तुम किसी गैर को चाहोगे तो मुश्किल होगी। अब कुछ इसी तरह का तराना लेकर हैदराबादी भाईजान असदुद्दीन ओवैसी कर्नाटक के रण में अपना दमखम दिखा रहे हैं। अपने कोर वोटर्स यानि मुस्लिमों को रिझाने के लिए कौमी टेप बजा रहे हैं।

बीजेपी और कांग्रेस पर हमेशा की तरह अटैकिंग मोड में ओवैसी

अगर आप मजबूरी की हालत में वोट देना चाहते हैं मजबूरी की हालत में मत दो बेखौफ होकर मेरा साथ दो। बेखौफ होकर हमारे भाई का साथ दो कल तक कोई विकल्प नहीं था आज आपके पास है और वो कैसे आपको मालूम है मुझे कई लोगों ने कहा आप किसको टिकट दे रहे हैं इसको बोले क्यूं क्या हुआ बोले ये बहुत तेज है मैं बोला तेज है तो ठीक है मोदी से मुकाबला करना है तो गूंगे नहीं कर सकते लोहे को लोहा काटता है।

छोटे दल भी ठोक रहे हैं ताल

कर्नाटक के चुनावी कैंपेन पर नजर डालें तो अभी जमीन पर ये लड़ाई सिर्फ कांग्रेस बनाम बीजेपी नजर आ रही है। कांग्रेस की तरफ से सोनिया-राहुल-प्रियंका और खड़गे जैसे दिग्गजों ने मोर्चा संभाल रखा है तो बीजेपी की तरफ से मोदी-योगी-शाह-नड्डा समेत तमाम स्टार प्रचारकों की फौज उतरी हुई है। हालांकि अंदरूनी तौर पर देखें तो कर्नाटक में कई छोटे-छोटे दल सियासत के समीकरण बदलने की पुरजोर कोशिश कर रहे हैं। जिसमें हैदराबाद की सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इंडिया यानि SDPI,जनार्दन रेड्डी के नेतृत्व वाली कल्याण राज्य प्रगति पक्ष यानि KRPP केजरीवाल की आम आदमी पार्टी और हैदराबादी भाईजान ओवैसी की AIMIM समेत दूसरे छोटे दल भी शामिल हैं।

छोटे-छोटे दल भी दे सकते हैं बड़ा सरप्राइज

एक्सपर्टस की मानें तो इस बार कर्नाटक के चुनावी रण में उतरे छोटे-छोटे दल भी बड़ा सरप्राइज दे सकते हैं क्योंकि ध्रुवीकरण का कार्ड खुलकर खेला जा रहा है। लड़ाई बजरंग बली बनाम टीपू सुल्तान की है। हिजाब बनाम विकास की है। बीजेपी को भरोसा है कि मोदी का बजरंग बाण बदल देगा कर्नाटक का चुनावी परिणाम उधर जय बजरंगबली के जवाब में ओवैसी अल्लाह हू अकबर बोल रहे हैं। बीजेपी-कांग्रेस को घेर रहे हैं।

ओवैसी की AIMIM 25 पर, SDPI 100 सीटों पर उतारे उम्मीदवार

कर्नाटक के चुनावी शोर के बीच बड़ा मुद्दा यही है कि छोटी पार्टियों का कर्नाटक के सियासी समीकरण पर क्या असर होगा। क्या दो बिल्लियों की लड़ाई में रोटी कोई और ले जाएगा। जहां तक ओवैसी का सवाल है तो एआईएमआईएम पहली बार कर्नाटक के चुनावी रण में हाथ आजमा रही है। वैसी की पार्टी 224 में से 25 सीटों पर चुनाव लड़ रही है। वहीं एसडीपीआई ने 100 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे हैं। ये दोनों ही वो पार्टियां हैं जो मुस्लिम वोटबैंक के सहारे चुनावी मैदान में हैं। जाहिर है सवाल ये भी उठता है कि भाईजान ही भाईजान के वोट काटेंगे तो इसका असर क्या होगा--कौन फायदे में रहेगा कौन घाटे में।

मुस्लिम और दलित वोटों पर ओवैसी की नजर

बीते 2018 के असेंबली इलेक्शन में ओवैसी की पार्टी ने चुनाव ना लड़कर जेडीएस को डायरेक्ट सपोर्ट किया था मगर इस बार समर्थन बैकडोर से है। जहां जेडीएस के जीतने के चांसेज हैं वहां ओवैसी ने कैंडिडेट नहीं दिया है। ओवैसी का प्लान ही है। ओवैसी की नजर उन सीटों पर है जहां मुसलमानों और दलितों का संयुक्त वोट शेयर 35 फीसदी से ज्यादा है। कांग्रेस के लिए चिंता की बात ये भी है कि मुसलमानों के अलावा ओवैसी दलित वोटर्स पर भी डोरे डाल रहे हैं ओवैसी की सभाओं में जय भीम जय मीम के नारे लगाए जा रहे हैं। इतना ही नहीं ओवैसी ज्यादातर कांग्रेस पर हमलावर हैं क्योंकि वोटबैंक एक ही है। कर्नाटक में जो सीटें एससी के लिए आरक्षित की गई हैं उनमें से ज्यादातर सीटों पर मुस्लिम मतदाताओं का वर्चस्व है।

कई नगर निगम सीटों पर चुनाव जीत चुके हैं ओवैसी

AIMIM कर्नाटक के उत्तरी जिलों जैसे विजयपुरा, हुबली, रायचूर, बेलागवी, कलबुर्गी में चुनाव लड़ रही है। असल में 2021 के शहरी स्थानीय निकाय चुनावों में मिली जीत ने बड़ी पार्टियों को चुनौती देने के लिए ओवैसी को कुछ आधार दिया है। उत्तरी कर्नाटक में स्थानीय निकायों में ओवेसी की पार्टी ने विजयपुरा नगर निगम में दो सीटें जीती थीं। बेलगावी नगर निगम में एक, बीदर में एक और बसवाना बागवाड़ी नगर निगम में एक सीट पर जीत दर्ज की थी। हुबली धारवाड़ में भी AIMIM के 3 नगर सेवक हैं।

मुसलमानो को एकजुट कर रहे हैं ओवैसी

जाहिर है ओवैसी जीत की इस लकीर को लंबा करने की कोशिश में हैं। इसीलिए वो अपनी तकरीरों में कभी हिजाब तो कभी टीपू सुल्तान का जिक्र करके इमोशनल कार्ड खेल रहे हैं। कांग्रेस और बीजेपी के खिलाफ मुसलमानो को एकजुट कर रहे हैं। मोदी अगर अपने भाषणों में केरला स्टोरी का जिक्र कर रहे हैं तो ओवैसी गिन गिन कर बीजेपी के मुस्लिम अत्याचारों की याद दिला रहे हैं।

डरी हुई है कांग्रेस

कांग्रेस इसी ध्रुवीकरण से डरी हुई है। बहरहाल AIMIM के बाद अब कर्नाटक में हाथ आजमा रही दूसरी मुस्लिम वोटर बेस्ड पार्टी एसडीपीआई की बात कर लेते हैं। एसडीपीआई ने 2013 में कर्नाटक की 23 असेंबली सीटों पर चुनाव लड़ा था और 3.27 फीसदी वोट शेयर हासिल किया था। 2018 में सिर्फ 3 सीटों पर लड़ाई लड़ी और उनमें 10.50 प्रतिशत वोट हासिल किए थे। और बेंगलुरु की चिकपेट सीट पर कांग्रेस का खेल खराब कर दिया था। SDPI ने AIMIM की तरह 2021 के शहरी स्थानीय निकाय चुनावों में भी जीत दर्ज की थी। जो ये बता रहा है कि जमीन पर SDPI की उपस्थिति है--ऐसे में एक्सपर्ट यही कह रहे हैं कि अगर लड़ाई करीबी रही और छोटी पार्टियों के उम्मीदवार 3 से 4 हजार तक वोट भी पा जाएं तो वो अपना काम कर देंगें..वो जीतेंगे नहीं लेकिन निर्वाचन क्षेत्रों की स्थितियों को बदल देंगे।

AIMIM और SDPI से कांग्रेस को नुकसान

जाहिर है जितना AIMIM और SDPI मजबूत होंगी कांग्रेस को उतना ही नुकसान होगा। ये बात बीजेपी बहुत अच्छी तरह से जानती है इसलिए उसने कर्नाटक चुनाव में खुलकर हार्ड कोर हिंदुत्व वाली लाइन ली है। यहां अमित शाह अपने रोड शो में खुलेआम ऐलान करते हैं कि बीजेपी मुस्लिमों का 4 फीसदी आरक्षण खत्म करके लिंगायत-वोक्कालिंगा और एससी एसटी समुदाय को दे रही है।

बजरंगबली का मुद्दा छाया

इतना ही नहीं पीएम मोदी, मतदान से पहले कर्नाटक के चुनाव प्रचार के केंद्र में बजरंगबली का मुद्दा छाया हुआ है। अमित शाह- यूपी के सीएम योगी और जेपी नड्डा अपनी हर रैली में बजरंग बली के नाम पर वोट मांग रहे हैं। बजरंग दल पर बैन को बीजेपी ने हिंदू आस्था से जोड़कर कांग्रेस को थोड़ा सा बैकफुट पर तो धकेला ही है। यही कारण है कि कांग्रेस इस मुद्दे पर डैमेज कंट्रोल की मुद्रा में है।

बीजेपी के लिए संकटमोचक बनेंगे बजरंग बली?

हनुमान चालीसा में एक चौपाई है। संकट ते हनुमान छुड़ावे, मन कर्म वचन ध्यान जो लावे यानी जो हनुमान जी का ध्यान करता है उसके सारे कष्ट कट जाते हैं। सवाल यही है कि बीजेपी के लिए कर्नाटक में बजरंग बली क्या वाकई संकटमोचक साबित होंगे। बीजेपी को अपने बजरंगबाण पर कितना भरोसा है उसे पीएम नरेंद्र मोदी के मेगा रोड शो से आई इन तस्वीरों से समझिए अब बीजेपी नेताओं के रोड शो में हनुमान का भेष देखा जा रहा है--झंडों पर हनुमान और टीशर्ट पर हनुमान की आकृतियां नजर आ रही हैं। यानि ये साफ हो गया है कि चुनाव प्रचार के अंतिम दिनों का विषय भगवान बजरंग बली बन गए हैं।

कुल मिलाकर कहा जाए तो कर्नाटक का चुनाव इस बार बेहद दिलचस्प हो चला है। मुद्दों को छोड़ भी दें तो छोटी पार्टियां खेल करने के लिए तैयार है। जिसमें सबसे आगे ओवैसी नजर आ रहे हैं। बीजेपी बनाम कांग्रेस की इस लड़ाई के बीच हैदराबादी भाईजान का मुस्लिम गठबंधन क्या गुल खिलाएगा। ये 13 मई को साफ होगा।

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