2018 में 30 सीटों पर जीत का रहा कम मार्जिन, इस बार छोटे दलों का उदय...क्या कर्नाटक में होगा उलटफेर
2018 के विधानसभा चुनावों के चुनावी आंकड़ों के विश्लेषण से पता चलता है कि इनमें से पार्टी को 12 सीटों पर 3,000 से भी कम मतों के अंतर से हार का सामना करना पड़ा था।
क्या इस बार कर्नाटक में होगा उलटफेर
Karnataka Assembly Elections 2023: अगले महीने कर्नाटक विधानसभा चुनाव हैं और सभी दलों ने अपनी ताकत दिखाना शुरू कर दिया है। भारतीय जनता पार्टी के सामने सत्ता बनाए रखने की चुनौती है। वहीं, कांग्रेस की कोशिश है कि वह बीजेपी को हराकर कर्नाटक में अपनी वापसी सुनिश्चित करे। एच डी देवेगौड़ा की जेडीएस मुकाबले को त्रिकोणीय करने की कोशिश में है और उसकी निगाह पिछली बार की तरह किंगमेकर बनने की ओर भी है।
30 सीटों पर मार्जिन 5 हजार वोटों से कम
इस सियासी जंग के बीच अहम तथ्य ये है कि 2018 चुनाव में 30 ऐसी सीटें थीं जहां जीत का मार्जिन 5 हजार वोटों से कम का था। यानी अगर इन 30 सीटों पर इस बार बाजी पलटी को किसी भी पार्टी का खेल बन या बिगड़ सकती है। जानने की कोशिश करते हैं कि 2018 में ये कौन सी सीटें थीं जो इस बार सियासी खेल पलट सकती हैं।
2018 में भारतीय जनता पार्टी ने कर्नाटक में 5,000 से कम मतों के अंतर से 16 सीटों पर हार का सामना किया था। 2018 के विधानसभा चुनावों के चुनावी आंकड़ों के विश्लेषण से पता चलता है कि इनमें से पार्टी को 12 सीटों पर 3,000 से भी कम मतों के अंतर से हार का सामना करना पड़ा था। बीजेपी ने राज्य की 224 सीटों में से 104 सीटें जीती थीं और सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी। लेकिन 78 सीटें जीतने वाली कांग्रेस ने 37 सीटें जीतने वाली जनता दल (सेक्युलर) के साथ चुनाव के बाद गठबंधन किया और सरकार बनाई। हालांकि ये सरकार सिर्फ 14 महीने तक ही चली।
हालांकि बीजेपी 2019 में कांग्रेस-जेडी (एस) गठबंधन के 17 दलबदलुओं की बदौलत सत्ता में आई थी, लेकिन आंकड़ों से पता चलता है कि ये 16 सीटें जहां बीजेपी 5,000 से कम वोटों के कारण हार गई थी चुनाव को निर्णायक रूप से अपनी ओर मोड़ सकती थी। 10 मई को होने वाले मतदान को लेकर इस बार चीजें थोड़ी अलग हैं, खासकर छोटे दलों की मौजूगदी ने समीकरण उलझाए हैं।
छोटी पार्टियां बनेंगी कांग्रेस-बीजेपी का सिरदर्द
उदाहरण के लिए, असदुद्दीन ओवैसी की ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM)कुल 224 सीटों में से 25 पर चुनाव लड़ने के लिए तैयार है, जबकि प्रतिबंधित पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (PFI) की राजनीतिक शाखा सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इंडिया (SDPI)ने 100 सीटों पर अपने उम्मीदवारों को मैदान में उतारने का ऐलान किया है। एसडीपीआई ने 2018 में दावा किया था कि कांग्रेस के साथ उसकी समझ है। इन छोटे दलों द्वारा कांग्रेस और जद (एस) के मुस्लिम वोटों में सेंध लगने की उम्मीद है, जिसका सीधा फायदा बीजेपी को मिल सकती है।
इसके अलावा जी जनार्दन रेड्डी की कल्याण राज्य प्रगति पक्ष (केआरपीपी) और आम आदमी पार्टी (आप) जैसी पार्टियां हैं। भाजपा से नाराज खनन कारोबारी और पूर्व भाजपा मंत्री रेड्डी ने पिछले दिसंबर में अपनी खुद की पार्टी केआरपीपी बनाई थी। फरवरी में उन्होंने घोषणा की थी कि वह अपने भाई, मौजूदा बीजेपी विधायक सोमशेखर रेड्डी के खिलाफ बेल्लारी से चुनाव लड़ने जा रहे हैं। रेड्डी की उम्मीदवारी कांग्रेस के लिए भी परेशानी का कारण बन सकती है, खासकर इसलिए क्योंकि वह बोम्मई सरकार के खिलाफ सत्ता विरोधी वोटों को विभाजित कर सकते हैं। वहीं, आप ने जनवरी में घोषणा की थी कि वह सभी 224 सीटों पर उम्मीदवार उतारने जा रही है। इससे भी कांग्रेस को नुकसान उठाना पड़ सकता है।
बमुश्किल जीत पाए थे सिद्धारमैया
राजनीतिक विशेषज्ञों का कहना है कि 2018 में जिन सीटों पर जीत का अंतर कम था, वहां छोटी पार्टियां चिंता का विषय हैं। और ये 30 सीटें बहुत अंतर ला सकती हैं। भले ही छोटी पार्टियां चुनाव नहीं जीत सकते हैं, लेकिन 3-4 हजार वोट हासिल कर विभिन्न निर्वाचन क्षेत्रों में हालात को बदल सकते हैं।
खास बात ये भी है कि 2018 में कांग्रेस ने 30 में से 18 सीटों पर जीत हासिल की थी, जहां जीत का अंतर 2018 में 5,000 वोटों से कम था। दूसरी ओर, बीजेपी ने आठ ऐसी सीटें जीतीं और जद (एस) ने तीन ऐसी सीटें जीती थीं। 2,000 से कम मतों के अंतर से जीतने वाले उम्मीदवारों में से एक पूर्व मुख्यमंत्री सिद्धारमैया थे। कांग्रेस नेता ने उस साल दो सीटों बादामी और चामुंडेश्वरी से चुनाव लड़ा था। सिद्धारमैया ने बादामी सीट 1,696 मतों से जीती, जबकि जद(एस) के जी.टी. देवेगौड़ा के हाथों करीब 36,000 वोटों से चामुंडेश्वरी सीट गंवाई थी।
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