Kisan Andolan: कितनी अहम है किसान आंदोलन की टाइमिंग? वही पुराना पैटर्न...; यूं ही नहीं डर रही सरकार
Delhi Chalo Farmers Protest: कृषि कानून बिल के खिलाफ हुए आंदोलन से किसान यह बात तो समझ चुके हैं कि अगर सरकार से अपनी मांगे मनवानी हैं तो उन्हें लड़ाई लंबी लड़नी पड़ेगी। इसलिए किसानों ने दिल्ली आने से पहले पूरी तैयारी की है। ट्रैक्टर ट्रालियां और राशन तैयार कर लिया गया है।
किसान आंदोलन
Delhi Chalo Farmers Protest: 2020-21 में हुआ किसान आंदोलन याद है? किसानों ने दिल्ली के बॉर्डर पर डेरा डाल दिया था। यहां किसान ऐसा जमे कि उन्हें हिलाने में सरकार खुद हिल गई। कृषि कानून बिल के खिलाफ यह आंदोलन इतना मुखर था कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को आगे आना पड़ा और कृषि कानून बिल को रद्द कर दिया गया। अब एक बार फिर किसानों के दिल्ली आने से हलचल बढ़ गई है।
पश्चिम उत्तर प्रदेश, हरियाणा, पंजाब और चंडीगढ़ के किसानों ने 'दिल्ली चलो' का नारा दिया है। अलग-अलग राज्यों के किसान ट्रैक्टर ट्रालियों पर सवार होकर दिल्ली के लिए कूच कर गए हैं। 13 फरवरी यानी कल किसान दिल्ली बॉर्डर पर पहुंचने भी लगेंगे। हालांकि, इससे पहले ही राष्ट्रीय राजधानी की सीमाओं को सील कर दिया गया है। कंक्रीट, बैरीकेट्स और कंटीले तारों की दीवारों को बनाया गया है, भारी पुलिस फोर्स और ड्रोन से निगरानी की जा रही है। किसानों के दिल्ली पहुंचने से पहले केंद्र सरकार किसान संगठनों के साथ बातचीत में जुट गई है और उन्हें मनाया जा रहा है।
अब आप सोच रहे होंगे इतने इंतजाम किसलिए? आखिर किसान इस बार दिल्ली क्यों आ रहे हैं? उनकी मांग क्या है? किसानों ने 'दिल्ली चलो' आंदोलन के लिए यही वक्त क्यों चुना है और इस बार किसान कितने दिनों के लिए दिल्ली आ रहे हैं? आइए जानते हैं सबकुछ...
सबसे पहले किसानों की मांग जान लीजिए
दिल्ली पहुंच रहे किसानों की कोई भी मांग नई नहीं है। दरअसल, कृषि कानून को रद्द करते समय सरकार ने किसानों से कुछ वादे किए थे। उन वादों को पूरा करने की समय सीमा खत्म होती जा रही है। ऐसे में किसान एक बार फिर दिल्ली के लिए निकल पड़े हैं। किसान संगठनों के अनुसार उनकी कुल 12 मांगे हैं। उन्हें जानते हैं-
- फसलों को न्यूनतम समर्थन मूल्य देने के लिए सरकार कानून बनाए। यह कानून स्वामिनाथन आयोग की रिपोर्ट पर लागू हो।
- किसानों एवं मजदूरों का पूरा कर्ज माफ हो।
- किसान और मजदूरों के लिए पेंशन का प्रावधान।
- लखीमपुरी खीरी कांड के आरोपियों को सजा मिले और मारे गए किसानों के परिजनों को नौकरी और 10-10 लाख रुपये मिलें।
- दिल्ली आंदोलन के समय जान गंवाने वाले किसान परिवारों को मुआवजा पर पीड़ित परिवार को नौकरी मिले।
- भूमि अधिग्रहण विधेयक 2013 में बदलाव करने की मांग। कलेक्टरेट रेट से चार गुना मुआवाजा देने की मांग।
- विश्व व्यापार संगठन से दूरी बनाने एवं मुक्त व्यापार समझौते को प्रतिबंधित करने की मांग।
- मनरेगा के तहत दिहाड़ी 700 रुपए देने और साल में कम से कम 200 दिन रोजगार मिले।
- मिर्च, हल्दी और अन्य मसालों को लेकर राष्ट्रीय स्तर पर एक आयोग का गठन हो।
- खराब बीज, पेस्टिसाइड और उर्वरक बनाने वाली कंपनियों पर जुर्माना लगे और बीज की गुणवत्ता में सुधार हो।
- आदिवासियों की जमीन पर कंपनियों को कब्जा करने से रोका जाए। उनके जल, जंगल और जमीन के अधिकार को सुरक्षित किया जाए।
- विद्युत संशोधन विधेयक 2020 को खत्म कर दिया जाए।
किसानों ने आंदोलन के लिए यही वक्त क्यों चुना?
किसानों के 'दिल्ली चलो' मार्च के बीच सबसे बड़ी चर्चा यही है कि इस आंदोलन के लिए यही वक्त क्यों चुना गया। लोग इसे राजनीति से प्रेरित बता रहे हैं और कहा जा रहा है कि सरकार पर दबाव बनाने के लिए ऐसा किया गया है। यह बात कई मायनों में सही भी है। दरअसल, किसानों को लगता है कि चार महीनों बाद लोकसभा चुनाव होने हैं। ऐसे में सरकार पर अपनी मांगो को लेकर दबाव बनाने के लिए यही सही समय है। इसे किसान संगठनों के रणनीतिक कदम के तौर पर देखा जा रहा है।
किसानों ने चुना पुराना पैटर्न
कृषि कानून बिल के खिलाफ हुए आंदोलन से किसान यह बात तो समझ चुके हैं कि अगर सरकार से अपनी मांगे मनवानी हैं तो उन्हें लड़ाई लंबी लड़नी पड़ेगी। इसलिए किसानों ने पुराने पैटर्न को चुना है। इसी कारण इसे किसान आंदोलन 2.0 भी कहा जा रहा है। दरअसल, किसानों ने फिर से दिल्ली कूच के लिए टैक्टर ट्रालियां तैयार की हैं और उसमें सवार होकर दिल्ली के लिए निकल पड़े हैं। दिल्ली के लिए कूच करने से पहले किसानों ने लंबी लड़ाई के लिए राशन-पानी का भी इंतजाम किया है। घर-घर जाकर राशन इकट्ठा किया जा रहा है।
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मैं इस वक्त टाइम्स नाउ नवभारत से जुड़ा हुआ हूं। पत्रकारिता के 8 वर्षों के तजुर्बे में मुझे और मेरी भाषाई समझ को गढ़ने और तराशने में कई वरिष्ठ पत्रक...और देखें
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