Chandrayaan III: 130 हाथियों के बराबर है LVM3 रॉकेट का वजन, कुतुबमीनार से भी ऊंचा

इसरो अपने कई अभियानों को इसी रॉकेट से सफलतापूर्वक अंजाम दे चुका है, ये रॉकेट करीब 3.9 टन वजनी चंद्रयान को चांद की कक्षा तक ले जाएगा।

Chandrayaan 3

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Chandrayaan 3: चंद्रयान-3 को चांद पर लेकर जाने वाला रॉकेट बेहद खास है। रॉकेट इसे चंद्रमा की कक्षा में स्थापित कराएगा। करीब साढ़े तीन साल पहले चंद्रयान-2 को ऐसा ही रॉकेट लेकर गया था। ये बहुत लंबा, चौड़ा और भारी भरकम प्रक्षेपण यान है। इसका वजन 642 टन है। यानि 130 हाथियों के भार के बराबर इसका वजन है। इसकी ऊंचाई कुतुबमीनार से भी ज्यादा है। ये करीब 43.5 मीटर ऊंचा है, यानि 15 मंजिला मकान के बराबर है। इसरो अपने कई अभियानों को इसी रॉकेट से सफलतापूर्वक अंजाम दे चुका है। इसे जियोसिंक्रोनस स्टैडिंग सेटेलाइट लॉन्च व्हिकल मार्क 3 यानी GSLV Mk3 भी कहा जाता है। ये रॉकेट करीब 3.9 टन वजनी चंद्रयान को चांद की कक्षा तक ले जाएगा।

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क्या है LVM3?LVM3 भारत का सबसे भारी रॉकेट है, जिसका कुल भार 640 टन है और कुल लंबाई 43.5 मीटर है। 5 मीटर व्यास वाले रॉकेट को वायुगतिकीय बलों से बचाने के लिए नाक के आकार का बनाया गया है। ये प्रक्षेपण यान 8 टन तक पेलोड को निचली पृथ्वी की कक्षाओं (LEO) तक ले जा सकता है, जो पृथ्वी की सतह से लगभग 200 किमी दूर है। लेकिन जब भूस्थैतिक स्थानांतरण कक्षाओं (जीटीओ) की बात आती है, जो पृथ्वी से बहुत आगे लगभग 35,000 किमी तक स्थित है, तो यह बहुत कम सिर्फ लगभग चार टन भार तक के उपकरण ले जा सकता है।

लेकिन LVM3 अन्य देशों या अंतरिक्ष कंपनियों द्वारा इसी तरह के मिशन के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले रॉकेटों की तुलना में कमजोर नहीं है। उदाहरण के लिए, यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी (ईएसए) के एरियन5 रॉकेट का द्रव्यमान 780 टन है और यह 20 टन पेलोड को LEO और 10 टन को GTO तक ले जा सकता है। LVM3 ने 2014 में अंतरिक्ष में अपनी पहली यात्रा की और 2019 में चंद्रयान -2 भी ले गया। हाल ही में इस साल मार्च में इसने LEO में लगभग 6,000 किलोग्राम वजन वाले 36 वनवेब उपग्रहों को रखा, जो कई उपग्रहों को अंतरिक्ष में पहुंचाने की अपनी क्षमताओं को दर्शाता है।

LVM3 की खासियतें-ये अब तक का सबसे शक्तिशाली लॉन्चर है, जो पूरी तरह से स्वदेशी है।

-ये अब तक का सबसे भारी-भरकम लॉन्चर है और इसका वजन 642 टन है।

-ये अब तक का सबसे ऊंचा लॉन्चर है। इसकी ऊंचाई 43.3 मीटर यानि कुतुबमीनार से भी करीब 70 मीटर ज्यादा है।

-ये 4 टन वजनी सैटेलाइट को ले आसमान में ले जाने में सक्षम है। जबकि लो अर्थ ऑर्बिट में ये 10 टन वजनी सैटेलाइट ले जा सकता है।

-ये रॉकेट चंद्रायन मिशन-2 को भी सफलतापूर्वक मून ऑर्बिट में स्थापित कर चुका है।

पहली बार 2014 में हुआ परीक्षण

LVM3 को तीन चरणों के वाहन के तौर पर कॉन्फिगर किया गया है। इसमें दो सॉलिड स्ट्रैप-ऑन मोटर्स (S200), एक लिक्विड कोर चरण (L110) और एक हाई थ्रस्ट क्रायोजेनिक ऊपरी चरण (C25) हैं। खास बात ये है कि यह महज 974 सेकंड में 180×36000 किमी की दूरी तय कर लेता है। इस रॉकेट का इसरो ने पहली बार 2014 में परीक्षण किया था और अंतरिक्ष में भेजा था। इसके साथ ही इसरो ने अंतरिक्ष अभियानों में एक नया अध्याय जोड़ा था। तब से इस रॉकेट में कई तरह के बदलाव किए गए। इसे करीब 155 करोड़ रुपये की लागत से बनाया गया था।

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अमित कुमार मंडल author

करीब 18 वर्षों से पत्रकारिता के पेशे से जुड़ा हुआ हूं। इस दौरान प्रिंट, टेलीविजन और डिजिटल का अनुभव हासिल किया। कई मीडिया संस्थानों में मिले अनुभव ने ...और देखें

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