पानी पर फिर मची है कर्नाटक-तमिलनाडु में रार, जानिए आखिर क्या है कावेरी जल विवाद
Cauvery Water Dispute : कर्नाटक और तमिलनाडु के बीच कावेरी नदी (Cauvery Water) के जल बंटवारे को लेकर विवाद वर्षों पुराना है। दोनों राज्यों में यह विवाद ब्रिटिश हुकूमत के समय से चला आ रहा है। इस विवाद की शुरुआत 1892 और 1924 में तत्कालीन मद्रास प्रेसीडेंसी और मैसूर साम्राज्य के बीच हुए दो समझौतों से मानी जाती है।
कर्नाटक कावेरी नदी का पानी नहीं छोड़ना चाहता।
Cauvery Water Dispute : कावेरी नदी के जल को लेकर कर्नाटक (Karnataka) और तमिलनाडु (Tamilnadu) के बीच एक बार फिर ठन गई है। कर्नाटक के किसान तमिलनाडु (Karnataka Farmers) को पानी दिए जाने के खिलाफ हैं। वे सड़क पर उतरकर विरोध-प्रदर्शन कर रहे हैं। कावेरी नदी (Cauvery River) के पानी पर तमिलनाडु और कर्नाटक के नेताओं के बीच बयानबाजी हो रही है। कावेरी मुद्दे पर मंगलवार को बेंगलुरु में बंद (Bengaluru Bandh) है जबकि शुक्रवार को राजव्यापी बंद (Karnataka Bandh) का आह्वान किया गया है।
जाहिर है कि पानी बंटवारे का यह विवाद दोनों राज्यों के किसानों (Tamilnadu Farmers) के लिए एक बड़ा मुद्दा बन गया है। कावेरी नदी (Cauvery River) के पानी पर दशकों से छिड़े विवाद का अभी तक हल नहीं निकल पाया है। कावेरी नदी का पानी कर्नाटक (Karnataka) और तमिलनाडु (Tamilnadu) की राजनीति को हमेशा से गरमाता रहा है। यहां हम जानने की कोशिश करेंगे कि आखिर कावेरी जल विवाद (Cauvery Water Dispute) है क्या?
क्या है कावेरी जल विवाद (Cauvery Water Dispute)
कर्नाटक और तमिलनाडु के बीच कावेरी नदी (Cauvery Water) के जल बंटवारे को लेकर विवाद वर्षों पुराना है। दोनों राज्यों में यह विवाद ब्रिटिश हुकूमत के समय से चला आ रहा है। इस विवाद की शुरुआत 1892 और 1924 में तत्कालीन मद्रास प्रेसीडेंसी और मैसूर साम्राज्य के बीच हुए दो समझौतों से मानी जाती है। आजादी से पहले हुए इन समझौतों को कर्नाटक मानने से इंकार करता है। कर्नाटक का तर्क है कि ये समझौते मद्रास प्रेसीडेंसी (तमिलनाडु का हिस्सा) के पक्ष में है। कर्नाटक न्यायसंगत आधार पर कावेरी नदी जल के बंटवारे की मांग करता है।
कन्नामबाड़ी गांव पर बना बांध
इस सहमति के तहत 44.8 हजार मिलियन क्यूबिक फीट जल का संग्रहण करने के लिए मैसूर को कन्नामबाड़ी गांव पर एक बांध बनाने की इजाजत मिली। इस करार को 50 सालों तक वैध माना गया। हालांकि, पानी बंटवारे को लेकर दोनों पक्ष फिर आमने-सामने आ गए और पानी को लेकर विवाद करते रहे। जल के विवाद का यह मुद्दा सुप्रीम कोर्ट में कई बार उठा लेकिन शीर्ष अदालत से भी इस विवाद का स्थायी समाधान अभी तक नहीं हो पाया है।
विवाद सुलझाने के लिए 1990 में हुई बड़ी पहल
तमिलनाडु, कर्नाटक, केरल और पुडुचेरी के बीच कावेरी जल का विवाद का हल निकालने के लिए सरकार की तरफ से 1990 में एक बड़ी एवं गंभीर पहल हुई। विवाद का हल निकालने के लिए सरकार ने कावेरी जल विवाद न्यायाधिकरण (CWDT) का गठन किया। सीडब्ल्यूडीटी ने अपने एक अहम फैसले में कर्नाटक को मासिक अथवा साप्ताहिक आधार पर तमिलनाडु को 205 मिलियन क्यूबिक फीट जल छोड़ने का आदेश दिया।
मौजूदा विवाद
तमिलनाडु को पानी छोड़ने के आदेश के बाद कर्नाटक की सरकार इसका अनुपालन करने में असमर्थता जाहिर की है। कर्नाटक में कांग्रेस नेताओं का कहना है कि कावेरी नदी (Cauvery River) में इतना पानी नहीं है कि वे तमिलनाडु को जल छोड़ सकें। कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्दारमैया का कहना है कि राज्य में अगस्त के बाद से बारिश नहीं हुई है। जबकि तमिलनाडु में बारिश होती रही है।
5,000 क्यूसेक पानी छोड़े कर्नाटक
बता दें कि कावेरी जल प्रबंधन प्राधिकरण (CWMA) ने कर्नाटक सरकार को 5,000 क्यूसेक पानी तमिलनाडु को छोड़ने का निर्देश दिया है। इस निर्देश के खिलाफ कर्नाटक सरकार सुप्रीम कोर्ट पहुंची। कोर्ट ने गुरुवार को इस मामले में दखल देने से इंकार कर दिया
पूर्व पीएम देवेगौड़ा ने एक उचित ‘फॉर्मूले’ पर दिया जोर
पूर्व प्रधानमंत्री एच डी देवेगौड़ा ने सोमवार को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से अपील की कि वह कावेरी नदी क्षेत्र के सभी जलाशयों के अध्ययन के लिए कोई बाहरी एजेंसी नियुक्त करने का जल शक्ति मंत्रालय को निर्देश दें, जो इस नदी से जुड़े विवाद में शामिल राज्यों एवं केंद्र सरकार से स्वतंत्र हो। उन्होंने ऐसी संकटपूर्ण स्थिति में सभी संबंधित राज्यों पर लागू होने वाले एक उचित ‘फॉर्मूले’ की आवश्यकता पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि इस वर्ष दक्षिण-पश्चिम मानसून (जून से सितंबर के बीच) के नाकाम रहने के कारण कर्नाटक में कावेरी नदी क्षेत्र के चार जलाशयों में अपर्याप्त जल भंडार हैं।
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