कांग्रेस के लिए दूसरा 'छत्तीसगढ़' साबित हुआ हरियाणा, जानें हार की बड़ी वजहें
Haryana Election Result 2024: हरियाणा में कांग्रेस की सबसे बड़ी वजह पार्टी में आंतरिक गुटबाजी को माना जा सकता है। प्रदेश में जितने भी बड़े स्तर के नेता भूपिंदर सिंह हुड्डा, कमारी शैलजा, रणदीप सुरजेवाला हैं, इन सभी के अपने-अपने गुट हैं। ये सभी मुख्यमंत्री बनना चाहते हैं। चुनाव के दौरान इनकी पूरी कोशिश अपनी छवि मजबूत करने और दूसरे की कमजोर करने की रही।
Haryana Assembly Election 2024
Haryana Election Result 2024: हरियाणा चुनाव में कांग्रेस को बहुत बड़ा झटका लगा है। हरियाणा में तीसरी बार लगातार भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनने जा रही है। हरियाणा के चुनाव (रुझान/नतीजे) कांग्रेस की उम्मीदों के विपरीत हैं क्योंकि कांग्रेस यह मानकर चल रही थी कि इस बार वह चुनाव जीत रही है। लोकसभा चुनाव के बाद यह कहा जाने लगा था कि हरियाणा विधानसभा चुनाव में इस बार भाजपा की हार होगी। कहा जा रहा था भाजपा सरकार और नायब सिंह सैनी के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर है और जाट लैंड में किसी भी सरकार को तीसरी बार सरकार बनाने का मौका नहीं मिला है। लेकिन भाजपा की इस सफलता ने इन सभी बातों को गलत साबित कर दिया। हरियाणा की सत्ता में भाजपा तीसरी बार वापसी कर रिकॉर्ड बनाने जा रही है। नायब सिंह सैनी एक बार फिर सीएम बनेंगे। यहां हम कांग्रेस की हार की बड़ी वजहों की चर्चा करेंगे-
पार्टी की आंतरिक गुटबाजी
हरियाणा में कांग्रेस की सबसे बड़ी वजह पार्टी में आंतरिक गुटबाजी को माना जा सकता है। प्रदेश में जितने भी बड़े स्तर के नेता भूपिंदर सिंह हुड्डा, कमारी शैलजा, रणदीप सुरजेवाला हैं, इन सभी के अपने-अपने गुट हैं। ये सभी मुख्यमंत्री बनना चाहते हैं। चुनाव के दौरान इनकी पूरी कोशिश अपनी छवि मजबूत करने और दूसरे की कमजोर करने की रही। ये एक-दूसरे का पैर खींचते रहे। चुनाव जीतने के लिए टीम वर्क की जरूरत होती है लेकिन कांग्रेस के इन नेताओं में इसका अभाव दिखा। कांग्रेस नेता किरण चौधरी अपनी बेटी श्रुति चौधरी के साथ जब भाजपा में शामिल हुईं तो उन्होंने इसी आंतरिक गुटबाजी और खींचतान का इशारा किया। कांग्रेस की इस हार में कुमारी शैलजा भी एक फैक्टर हैं।
अति आत्मविश्वास ले डूबा
हरियाणा में कांग्रेस की हार की एक बड़ी वजह उसका अति आत्मविश्वास है। कांग्रेस के नेता से लेकर कार्यकर्ता तक यह मानकर चल रहे थे कि चुनाव में इस बार उनकी जीत होनी पक्की है। इस आत्मविश्वास की वजह से वे चुनौतियों से मुंह मोड़े रहे। तो वहीं, लोकसभा चुनाव में मिले झटके के बाद भाजपा ने अपना भूल-सुधार किया और उन कमजोरियों को दूर करने की कोशिश की जिसकी वजह से उसे हार मिली। उसने नए तरीके से समीकरण बिठाए और नाराज तबकों को अपने साथ जोड़े। राहुल गांधी बार-बार यह कह रह थे कि लोकसभा चुनाव में उन्होंने नरेंद्र मोदी के आत्मविश्वास को तोड़ दिया। लेकिन उनके इस बयान में उनका अभिमान दिखा। छत्तीसगढ़ में भी कांग्रेस के साथ यही हुआ था। उस समय भी कांग्रेस के बारे में कहा जा रहा था कि भूपेश बघेल की अगुवाई में वह चुनाव जीत रही है।
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दलित और जाट वोट बैंक में बिखराव
लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने हरियाणा में अच्छी वापसी की। उसने 10 में से 5 सीटें जीतीं। लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की इस जीत के पीछे जाट और दलित वोटों का एक साथ आना था लेकिन यह एकजुटता विधानसभा चुनाव में नहीं दिखाई दी। भाजपा से नाराज चल रहा जाट समुदाय काफी हद तक भूपिंदर सिंह हुड्डा और कांग्रेस के साथ तो रहा हैं लेकिन दलित वोट बैंक में इस बार सेंधमारी हो गई। चुनाव में इनेलो के साथ भाजपा और जजपा के साथ चंद्रशेखर आजाद की पार्टी थी। दलित वोट इन दोनों दलों के साथ गए जिससे कांग्रेस का वोट बैंक इस बार कमजोर हुआ। जबकि भाजपा गैर-जाट वाले 36 बिरादरी के अपने फॉर्मूला पर आगे बढ़ी और इसका उसे लाभ मिला।
सीएम फेस का न होना, राहुल की देर से सक्रियता
कांग्रेस की तरफ से सीएम फेस का न होना भी पार्टी को नुकसान कर गया। सीएम पद की रेस में कई नेता थे। इससे मतदाता और कांग्रेस समर्थक एकजुट नहीं हो पाए। इससे गलत संदेश गया। जबकि भाजपा ने नायब सिंह सैनी के चेहरे के साथ आगे बढ़ा। चुनाव प्रचार में राहुल गांधी का आगमन देरी से हुआ। हरियाणा चुनाव को उन्होंने भी हल्के में लिया।
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