मुख्तार अंसारी ने BJP विधायक कृष्णानंद राय को मारने की क्यों रची थी साजिश, विस्तार से जानकारी
Krishnanad Rai Murder Explainer: कृष्णानंद राय यूपी के गाजीपुर जिले के रहने वाले थे। 2002 में उन्होंने मोहम्मदाबाद यूसुफपुर सीट से उस परिवार (मुख्तार अंसारी-अफजाल अंसारी) को मात दी थी जिसकी मात्र कल्पना ही की जा सकती थी। सियासी हार से बौखलाए मुख्तार को सिर्फ एक ही रास्ता नजर आया कि वो किसी तरह से कृष्णानंद राय को अपने रास्ते से हमेशा के लिए हटा दे। उसने अपनी सियासी साजिश को अंजाम देने के लिए मौके का इंतजार किया और 29 नवंबर 2005 को हत्या करा दी।
कृष्णानंद राय मर्डर केस में आरोपी है मुख्तार अंसारी
- 2005 में बीजेपी विधायक कृष्णानंद राय की हुई थी हत्या
- मोहम्मदाबाद यूसुफपुर से 2002 में विधायक चुने गए
- मुख्तार अंसारी के बड़े भाई को दी थी मात
Krishnanad Rai Murder Explainer: कुख्यात बदमाश मुख्तार अंसारी के लिए 15 अप्रैल 2023 निर्णायक साबित होने वाला है। गाजीपुर का एमपी-एमएलए कोर्ट अगर बरी करे या दोषी करार दे तो दोनों ही सूरत में फैसला इतिहास के पन्नों में दर्ज हो जाएगा। अदालती फैसले की तारीख बेशक 15 अप्रैल है लेकिन मामला 18 साल पुराना है। 2005 का वो साल और महीना नवंबर का। ठंड गुलाबी थी लेकिन जिस वारदात को अंजाम दिया गया था उसके बाद सियासत में उबाल दूध की उबाल की तरह आया और करीब सात दिनों तक गाजीपुर, वाराणसी में तनाव बना रहा। जिस शख्स के काफिले पर ए के 47 से करीब 500 राउंड गोलियां दागी गई थीं वो कोई आम नहीं बल्कि खास था। बीजेपी के तत्कालीन विधायक कृष्णानंद राय(2005 krishnanand rai murder case) को उनकी ही सरकार में गोलियों से छलनी कर दिया गया था। पोस्टमार्टम के बाद उनकी शरीर से निकली गोलियों की संख्या खौफनाक साजिश को खुद ब खुद बयां कर रही थी। लेकिन यहां बताएंगे कि आखिर वो कौन सी वजह थी जिसमें मुख्तार अंसारी(Mukhtar Ansari Accused) आरोपी नंबर 1 बना।
इस तरह शुरू हुई अदावत
यूपी के पूर्वांचल वाले हिस्से में गाजीपुर जनपद को लहुरी काशी (Ghazipur as small Kashi) के नाम से भी जाना जाता है। इस जिले का इतिहास कामयाबियों की कहानियों से भरा पड़ा है। लेकिन कामयाबियों की कहानियों में कुछ ऐसे अध्याय हैं जिसके पन्ने काले हैं। किसी अपराध को पेशेवर अपराधी द्वारा अंजाम देने को सामान्य सी घटना के तौर पर देखा जाता है। लेकिन जब सफेद खद्दर वाला शख्स खुद को नाता अपराध की दुनिया से नाता जोड़ ले तो कहानी सिर्फ कहानी नहीं रह जाती है। यहां पर बात अंसारी परिवार ( Mukhtar Ansari- Afzal Ansari- Shivahtullah Ansari) की हो रही है। दलित- शोषित, वंचित की आवाज उठाकर सियासी दुनिया में अपनी पकड़ मजबूत कर चुके अंसारी परिवार को एकाएक चुनौती एक ऐसे शख्स से मिलने लगी थी जिसका नाम कृष्णानंद राय था।
2005 में मारे गए थे कृष्णानंद राय
कृष्णानंद राय (कोयले के कारोबार से जुड़ाव) का वैसे तो सक्रिय राजनीति से नाता नहीं था। लेकिन कोयले के काले कारोबार को लेकर मुख्तार और बृजेश सिंह की अदावत बढ़ने लगी थी। उस वक्त बृजेश सिंह को लगा था कि अगर मुख्तार अंसारी को कमजोर करना है तो कृष्णानंद राय के साथ मिलकर आगे बढ़ना होगा। कृष्णानंद राय और बृजेश सिंह को यह अहसास हुआ कि अंसारी परिवार को राजनीतिक तौर पर मात देने की जरूरत है। उस कवायद में कृष्णानंद राय सियासत में कूदे और अंसारी परिवार को बड़ी मात दी और वहीं से व्यावसायिक रंजिश, राजनीतिक रंजिश में बदली जो 2005 में राय के मर्डर के साथ अंजाम तक पहुंची। 2005 से 2023 तक इस केस ने कई मोड़ देखे। कृष्णानंद राय की बेवा अलका राय कहती है कि न्याय के इंतजार में आंखें पथरा गई हैं। लेकिन उन्हें उम्मीद है कि न्याय जरूर मिलेगी। वो अपने इंटरव्यू में इस बात का जिक्र पहले कर चुकी हैं किस तरह से अंसारी परिवार ने मामले को अटकाने, लटकाने और भटकाने की पुरजोर कोशिश की। लेकिन सुप्रीम कोर्ट के दखल के बाद जब मुख्तार अंसारी को यूपी लाए जाने में कामयाबी मिली तो उन्हें भी उम्मीद बंधी कि अभी आस मत टूटने दो।
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