अंग्रेजों के खिलाफ पहाड़ों में यहां से उठा था आंदोलन, महात्मा गांधी ने कहा था कुमाऊं की बारदोली

देश 15 अगस्त 1947 को आजाद हुआ था। यह आजादी वर्षों के आंदोलनों और बलिदानों की बदौलत मिली थी। देश के अलग-अलग हिस्सों में हुए असंख्य आंदोलनों ने अंग्रेजों को भारत छोड़कर जाने पर मजबूर कर दिया। ऐसा ही एक आंदोलन कुमाऊं के पहाड़ों में भी हुआ। जिस जगह यह आंदोलन हुआ, उसे महात्मा गांधी ने कुमाऊं की बारदोली कहा था।

पहाड़ों में आजादी की अलख

इस साल भारत अपना 78वां स्वतंत्रता दिवस मना रहा है। आजादी के आंदोलन में कई वीरों ने अपने प्राणों की आहूति दी और कई ने वर्षों जेल में काटे। महात्मा गांधी के नेतृत्व में ही देश में कई आंदोलन हुए, जिसने अंग्रेजों की चूलें हिला दीं। भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद, सुभाष चंद्र बोस जैसे कई क्रांतिकारियों ने अंग्रेजों की गुलामी सहने से इनकार कर दिया और हंसते-हंसते देश पर अपने प्राण न्यौछावर कर दिए। आज का उत्तराखंड उस समय United Province का हिस्सा था। जैसे ही पहाड़ शांत होते हैं, वैसी ही यहां के लोक भी शांत होते हैं। ज्यादातर लोग यही समझते हैं, लेकिन आजादी की लड़ाई में पहाड़ भी शांत नहीं रहे और यहां के लोग भी। यहां कुमाऊं के सल्ट क्षेत्र में हुए एक आंदोलन को स्वयं महात्मा गांधी ने 'कुमाऊं की बारदोली' कहा था। चलिए जानते हैं उस आंदोलन के बारे में -

कब और कहां हुआ यह आंदोलन

जिसे महात्मा गांधी ने कुमाऊं की बारदोली कहा, वह आंदोलन असल में कुमाऊं में अल्मोड़ा जिले के सल्ट क्षेत्र में हुआ। यहां उसे खुमाड़ की क्रांति भी कहा जाता है। ऐसा इसलिए क्योंकि यह आंदोलन यहां के खुमाड़ गांव में ही हुआ था, जिसमें क्रांतिकारियों ने ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ आंदोलन शुरू किया था। साल 1942 में हुए इस आंदोलन में क्रांतिकारी हीरामणि, हरिकृष्ण उप्रेती, गंगाराम, खीमाराम, चूड़ामणि, बहादुर सिंह, लक्ष्मण सिंह अधिकारी ने देश की खातिर अपने प्राण न्यौछावर कर दिए थे।

SDM ने दिए लोगों पर गोली चलाने के आदेश

साल 1942 आते-आते पहाड़ी क्षेत्र के लोगों की नसों में भी देश की आजादी की लड़ाई में योगदान के लिए खून उबाल ले रहा था। बात अगस्त 1942 की है, जब एडीएम जॉनसन ने देघाट पटवारी चौकी में 7-8 आंदोलनकारियों को बंद कर दिया और यह खबर पूरे क्षेत्र में आग की तरह फैल गई। देखते ही देखते लोग इकट्ठा हुए और पटवारी चौकी को घेर लिया। SDM जॉनसन ने भीड़ को देखते हुए गोली चलाने के आदेश दे दिए, जिसमें हरिण कृष्ण उप्रेती और हीरामणि शहीद हो गए।

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