इन 3 शर्तों पर मिली लालू यादव, तेजस्वी और तेज प्रताप को जमानत; जानें क्या है पूरा मामला
Court News: 'नौकरी के बदले जमीन' घोटाला मामले में लालू और उनके बेटों को दिल्ली की अदालत ने जमानत दी, लेकिन क्या आप जानते हैं कि लालू प्रसाद यादव, उनके दोनों बेटों तेजस्वी यादव और तेज प्रताप यादव को अदालत ने किन शर्तों पर जमानत दी है? आपको इस केस के बारे में सबकुछ बताते हैं।
'नौकरी के बदले जमीन' घोटाला मामला।
Land for job money laundering case: राष्ट्रीय जनता दल (राजद) प्रमुख एवं पूर्व रेल मंत्री लालू प्रसाद और उनके बेटों तेजस्वी यादव एवं तेज प्रताप यादव को दिल्ली की एक अदालत ने ‘नौकरी के बदले जमीन’ से जुड़े धनशोधन मामले में सोमवार को जमानत दे दी। लेकिन क्या आप जानते हैं कि लालू और उनके बेटों को कोर्ट ने किन 3 शर्तों पर जमानत दी है?नौकरी के लिए जमीन के लिए धन शोधन मामले में अधिवक्ता वरुण जैन ने कहा कि तीन शर्तों पर जमानत दी गई है।
पहली
एक लाख रुपये का जमानत बांड
दूसरी
गवाहों से छेड़छाड़ नहीं की जाएगी और
तीसरी
हमें भारत से बाहर यात्रा करने से पहले अदालत की पूर्व अनुमति लेनी होगी।
चूंकि उनके (राजद नेता लालू प्रसाद यादव, तेज प्रताप यादव और तेजस्वी यादव) पासपोर्ट पहले से ही उसी अदालत में जमा हैं, इसलिए इस विशेष मामले में पासपोर्ट जमा करने की कोई आवश्यकता नहीं है। अदालत ने दस्तावेजों की जांच के लिए मामले को 25 अक्टूबर के लिए टाल दिया है।
क्या है 'नौकरी के बदले जमीन' घोटाला?
साल 2004 से 2009 के बीच की बात है, जब संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (UPA) सरकार में लालू यादव रेल मंत्री हुआ करते थे। रेल मंत्री रहने के दौरान उनके परिवार को कथित तौर पर उपहार में दी गई या बेची गई जमीन के बदले रेलवे में की गई नियुक्तियों से जुड़ा ये पूरा मामला है। कहा जाता है कि रेल मंत्री रहते हुए लालू और उनके कुछ खास लोग रेलवे में नौकरी दिलाने के नाम पर जमीन का सौदा कर रहे थे। आरोप लगे कि जो रेलवे में नौकरी पाना चाहते थे, ऐसे सैकड़ों लोगों ने अपनी जमीन लालू यादव के परिवार या उनके करीबियों के नाम कर दी थी।
कब और कैसे खुल गया ये सारा खेल?
ऐसा दावा किया जाता है कि ये पूरा झोल तब खुला, जब कुछ लोगों ने अपनी जमीन तो दे दी, मगर उन्हें नौकरी नहीं मिली। मामला सामने आने के बाद जब जांच एजेंसी ने शिकंजा कसा तो सीबीआई ने अदालत को ये बताया था कि उसके पास करीब 1450 आवेदन है जो रेल मंत्री या जोनल मैनेजर को भेजे गए थे। सीबीआई ने ये भी दावा किया था कि कुछ अहम दस्तावेज भी उसके पास मौजूद हैं, जिसके तार लालू परिवार से जुड़े हैं। इसी के बाद से छापेमारी का सिलसिला शुरू हुआ था।
आरोप है कि 2004 से 2009 तक, भारतीय रेलवे के विभिन्न जोन में समूह ‘डी’ पदों पर कई व्यक्तियों को नियुक्त किया गया था और बदले में, इन व्यक्तियों ने अपनी जमीन तत्कालीन रेल मंत्री लालू प्रसाद के परिवार के सदस्यों और एक संबंधित कंपनी ए. के. इन्फोसिस्टम्स प्राइवेट लिमिटेड को हस्तांतरित की थी।
ईडी ने अदालत में कब दायर की थी अंतिम रिपोर्ट?
विशेष न्यायाधीश विशाल गोगने ने आरोपियों को एक-एक लाख रुपये के निजी मुचलके पर जमानत देते हुए कहा कि जांच के दौरान उन्हें गिरफ्तार नहीं किया गया था। अदालत द्वारा पहले जारी किए गए समन के अनुपालन के तहत आरोपी उसके समक्ष पेश हुए। न्यायाधीश ने आरोपियों के खिलाफ दाखिल पूरक आरोप पत्र का संज्ञान लेने के बाद समन जारी किए थे।
प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने छह अगस्त को अदालत के समक्ष अंतिम रिपोर्ट दायर की थी। ईडी ने केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) द्वारा दर्ज की गई प्राथमिकी के आधार पर अपना मामला दायर किया। जांच एजेंसी के अनुसार, यह मामला 2004 से 2009 तक रेल मंत्री के रूप में लालू के कार्यकाल के दौरान मध्य प्रदेश के जबलपुर में रेलवे के पश्चिम-मध्य जोन में ग्रुप-डी में हुई भर्तियों से जुड़ा है। आरोप है कि रेलवे में भर्ती होने वाले लोगों ने नौकरी के बदले लालू के परिवार के सदस्यों और सहयोगियों को उपहार स्वरूप जमीन दी थी।
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