Lok Sabha Election 2024: क्या होता है NOTA? क्यों पड़ी नोटा की जरूरत, समझिए इसकी पूरी कहानी

Lok Sabha Election 2024: NOTA का फुल फॉर्म होता है None of the Above, मतलब इनमें से कोई नहीं। NOTA के आने के बाद से कई चुनाव हो चुके हैं, लेकिन अब भी NOTA के तहत बहुत से मतदाता अपने मतदान का प्रयोग करते है। लेकिन, क्या आप जानते हैं कि देश में नोटा की शुरूआत कब हुई? क्यों हुई?

Lok Sabha Election 2024

भारत समेत कई देशों में होता NOTA प्रयोग

Lok Sabha Election 2024: भारत में लोकसभा चुनाव या फिर विधानसभा चुनाव में वोट डालते समय अगर आपको लगता है कि कोई भी उम्मीदवार सही नहीं है तो आप नोटा (NOTA) का बटन दबाकर आप अपना विरोध दर्ज करा सकते हैं। NOTA का फुल फॉर्म होता है None of the Above, मतलब इनमें से कोई नहीं। NOTA के आने के बाद से कई चुनाव हो चुके हैं, लेकिन अब भी NOTA के तहत बहुत से मतदाता अपने मतदान का प्रयोग करते है। लेकिन, क्या आप जानते हैं कि देश में नोटा की शुरूआत कब हुई? क्यों हुई? तो आइए आज हम आपको नोटा को विस्तार से समझाते है...

आखिर कैसे हुई NOTA की शुरुआत?

2013 से पहले जब भारत में नोटा की व्यवस्था नहीं थी तब चुनाव में अगर किसी को लगता था कि उनके अनुसार कोई भी उम्मीदवार योग्य नहीं है, तो वे लोग वोट डालने ही नहीं जाते थे और इस तरह से उनका वोट बेकार हो जाता था। ऐसे में साल 2009 में चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट को NOTA का विकल्प उपलब्ध कराने संबंधी अपनी मंशा से अवगत कराया था। NOTA का फुल फॉर्म होता है None of the Above, मतलब इनमें से कोई नहीं। उसी समय नागरिक अधिकार संगठन पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज ने भी नोटा का समर्थन करते हुए एक जनहित याचिका दाखिल कराई थी। जिसके बाद साल 2013 में सुप्रीम कोर्ट ने मतदाताओं को नोटा का विकल्प देने का निर्णय किया था। इस प्रकार EVM में एक और विकल्प शामिल हो गया जिसका नाम था नोटा। नोटा के तहत EVM मशीन में नोटा का गुलाबी बटन होता है। अगर मतदाता को किसी पार्टी का उम्मीदवार उचित नहीं लगता हैं तो वो नोटा का बटन दबाकर अपना विरोध दर्ज करा सकता है। नोटा के लागू होने के बाद दो लोकसभा चुनाव और कई राज्यों के विधानसभा चुनाव हो चुके हैं लेकिन फिर भी नोटा के तहत किये गए मतदान का प्रतिशत 2-3 ही है। इसकी असल वजह मतदाताओं में जागरूकता की कमी है। नोटा के अंतर्गत मतदान का प्रतिशत उन जगहों में ज्यादा देखने को मिला है, जो इलाके नक्सलवाद से प्रभावित हैं या फिर आरक्षित चुनाव क्षेत्र हैं।

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लोकसभा चुनाव-2019 में 1.06 प्रतिशत मतदाताओं ने किया नोटा का इस्तेमाल

2019 के लोकसभा चुनावों में, 1.06 प्रतिशत मतदाताओं ने किसी भी पार्टी को नहीं चुनते हुए NOTA का बटन दबाया था। यह 2014 के लोकसभा चुनावों के 1.08 प्रतिशत से कम था। कई राज्यों में यह प्रतिशत 2% से ज्यादा तो ज्यादातर राज्यों में लगभग 1 प्रतिशत मतदाताओं ने नोटा का बटन दबाया था। आंकड़ों पर राज्यवार नजर डालने से पता चलता है कि 2019 में, बिहार में सबसे ज्यादा (2 प्रतिशत) लोगों ने नोटा का बटन दबाया था। इसके बाद आंध्र प्रदेश (1.54 प्रतिशत) और छत्तीसगढ़ (1.44 प्रतिशत) में लोगों ने किसी भी दल के स्थान पर नोटा का बटन दबाना जरूरी समझा। केंद्र शासित प्रदेशों में, दमन और दीव (1.70) में सबसे अधिक नोटा वोट पड़े थे।

ये देश भी करते हैं नोटा का प्रयोग

भारत में नोटा को 2013 से लागू किया गया था लेकिन दुनिया के लगभग 13 देश काफी लंबे समय से नोटा का प्रयोग करते चले आ रहे हैं। अमेरिका, कोलंबिया, चिली, स्वीडन, बेल्जियम यूक्रेन, रूस, बांग्लादेश, ब्राजील, फिनलैंड, स्पेन, फ्रांस और ग्रीस शामिल है। इनमें से कुछ देश ऐसे भी हैं जहां नोटा को राइट टू रिजेक्ट का अधिकार मिला हुआ है। जिसका मतलब है कि अगर NOTA को ज्यादा वोट मिलते हैं तो वहां पर चुनाव रद्द हो जाता है। वहीं अगर भारत की बात करें तो नोटा को अधिक वोट मिलने पर भी चुनाव रद्द नहीं होता है अर्थात भारत में NOTA को राइट टू रिजेक्ट का अधिकार प्राप्त नहीं हैं। साल 2013 में NOTA के लागू होने के बाद चुनाव आयोग ने स्पष्ट किया कि नोटा के मत केवल गिने जाएंगे पर इन्हे रद्द मतों की श्रेणी में रखा जाएगा। इस प्रकार साफ था कि नोटा का चुनाव के नतीजों पर कोई असर नहीं पड़ेगा।

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Shashank Shekhar Mishra author

शशांक शेखर मिश्रा टाइम्स नाउ नवभारत डिजिटल (www.timesnowhindi.com/ में बतौर कॉपी एडिटर काम कर रहे हैं। इन्हें पत्रकारिता में करीब 5 वर्षों का अनुभव ह...और देखें

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