अब स्वामी प्रसाद मौर्य का क्या होगा? कुशीनगर सीट का चुनावी इतिहास और सियासी समीकरण समझिए
Lok Sabha Election: ये सवाल इसलिए क्योंकि उन्हें उम्मीद थी कि कुशीनगर लोकसभा सीट पर विपक्षी दलों के गठबंधन INDIA का समर्थन मिल जाएगा, लेकिन सपा ने स्वामी से अपना हिसाब चुका लिया है। बार-बार पार्टी बदलने वाले मौसमी नेता स्वामी प्रसाद क्या अब सपा बसपा की मुश्किलें बढ़ाएंगे? समझें सियासी समीकरण।
अखिलेश की मुसीबत बढ़ाएंगे स्वामी प्रसाद?
Kushinagar Lok Sabha Seat: सियासत में कब किसकी किस्मत चमक जाए और कब किसका बंटाधार हो जाए, बड़े-बड़े राजनीतिक पंडितों की भविष्यवाणी धरी की धरी रह जाती है। कभी बसपा, कभी भाजपा, कभी सपा का दामन थामने वाले स्वामी प्रसाद मौर्य पर एक कहावत बड़ी सटीक बैठती है- 'न घर के रहे न घाट के...', राजनीति में कब किस नेता का हाल ऐसा हो जाए कुछ नहीं कहा जा सकता है। उन्होंने हाल ही में ये ऐलान किया था कि वो कुशीनगर लोकसभा सीट से चुनाव लड़ेंगे, उनकी बाद विपक्षी दलों के गठबंधन INDIA से चल रही है। लेकिन इस बीच अखिलेश यादव ने स्वामी को करारा झटका देते हुए इस सीट से अपने प्रत्याशी के नाम की घोषणा कर दी। उधर उनकी बेटी और सांसद संघमित्रा मौर्य को भी भाजपा से टिकट नहीं मिला है, हालांकि बेटी ने पिता का साथ देने के लिए भाजपा से बगावत करने से साफ इनकार कर दिया है। अब सवाल ये है कि आखिर स्वामी प्रसाद मौर्य का क्या होगा?
विपक्षी गठबंधन INDIA ने स्वामी को नहीं दिया तवज्जो
INDI गठबंधन के नेताओं से बातचीत चल रही है, स्वामी प्रसाद ऐसा दावा करते रह गए और उनके साथ खेला हो गया। वो कहते हैं न अब पछताए का होए जब चिड़िया चुग गई खेत। दरअसल, स्वामी प्रसाद मौर्य ने अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी का दामन छोड़ राष्ट्रीय शोषित समाज पार्टी के नाम से राजनीतिक दल बनाई थी, उन्हें आसार थे कि चुनावी सीजन में उनकी पार्टी को साथ लाने के लिए विपक्षी दलों के गठबंधन इंडियन नेशनल डेवलपमेंट इंक्लूजिव अलायंस (INDIA) की ओर से कोई न कोई पहल की जाएगी, लेकिन उनके अरमानों पर पानी फिर गया। उन्होंने तमाम कोशिशें कीं, लेकिन विपक्षी गठबंधन ने उन्हें भाव तक नहीं दिया।
नही काम आई स्वामी प्रसाद मौर्य की तमाम कोशिशें
हाल ही में यूपी की योगी सरकार के पूर्व मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य ने ये ऐलान किया था कि वो खुद कुशीनगर सीट से लोकसभा चुनाव लड़ेंगे, जबकि उनके सहयोगी एस एन चौहान देवरिया से उम्मीदवार होंगे। उस वक्त उन्होंने कहा था कि विपक्षी गठबंधन से बातचीत चल रही है। इसी बीच अखिलेश यादव ने कुशीनगर लोकसभा सीट से अजय प्रताप सिंह उर्फ पिंटू सैंथवार को टिकट दे दिया। जो स्वामी के लिए किसी तगड़े झटके से कम नहीं है। वहीं देवरिया सीट पर पहले ही कांग्रेस ने अखिलेश प्रताप सिंह को अपना उम्मीदवार बना दिया है। सीधे शब्दों में ये कहा जाए कि 'विपक्ष को स्वामी पर एक तिनका भरोसा नहीं है', तो गलत नहीं होगा।
अखिलेश यादव के गले की फांस बनेंगे स्वामी प्रसाद?
स्वामी प्रसाद मौर्य ने ये भी कहा था कि यदि गठबंधन में हिस्सेदारी नहीं मिली तो, अन्य सीटों पर भी वो उम्मीदवार उतरेंगे। इस बयान के मायने को समझा जाए, तो ये सीधे-सीधे अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी और कांग्रेस को खुली चुनौती है। तो क्या अब ये माना जाए कि लोकसभा चुनाव में अखिलेश यादव और कांग्रेस की मुसीबतों में स्वामी प्रसाद इजाफा करने वाले हैं या यूं कहा जाए कि वो विपक्ष की राह के कांटा बनने वाले हैं।
क्या कहता है कुशीनगर सीट का चुनावी इतिहास?
साल 2002 में गठित भारत के परिसीमन आयोग की सिफारिशओं के बाद वर्ष 2008 में ये लोकसभा सीट अस्तित्व में आई थी। इस सीट पर पहली बार 2009 में लोकसभा चुनाव हुए, जिसमें कांग्रेस को जीत हासिल हुई। हालांकि मोदी लहर आने के बाद 2014 और 2019 के लोकसभा चुनावों में यहां से भाजपा ने जीत हासिल की।
कुशीनगर में किस चुनाव में किस पार्टी का बजा डंका?
वर्ष | नाम | पार्टी |
2009 | रतनजीत प्रताप नारायण सिंह | कांग्रेस |
2014 | राजेश पांडे | भाजपा |
2019 | विजय दुबे | भाजपा |
समाजवादी पार्टी (सपा) का दामन छोड़ राष्ट्रीय शोषित समाज पार्टी के नाम से राजनीतिक दल बनाने वाले पूर्व मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य ने लोकसभा चुनाव में नगीना क्षेत्र से आजाद समाज पार्टी (कांशीराम) के उम्मीदवार चंद्रशेखर आजाद को समर्थन देने की घोषणा की। पिछड़ा वर्ग के प्रमुख नेता मौर्य ने 'एक्स' पर एक पोस्ट में कहा, 'नगीना लोकसभा क्षेत्र (सुरक्षित) से आजाद समाज पार्टी (कांशीराम) के प्रत्याशी चंद्रशेखर आजाद को राष्ट्रीय शोषित समाज पार्टी समर्थन देती है।'
स्वामी प्रसाद मौर्य ने कहा, 'आजाद युवा, कर्मठ, जुझारू और सामाजिक न्याय के प्रति समर्पित एक क्रांतिकारी नेता हैं, जिन्हें नगीना लोकसभा की जनता के द्वारा अपार समर्थन भी मिल रहा है। अतः नगीना लोकसभा की सम्मानित जनता से उन्हे प्रचंड बहुमत के साथ जिताने की अपील करता हूं।'
भाजपा से बगावत, सपा से लड़ा चुनाव; मिली हार
स्वामी प्रसाद मौर्य पांच बार विधानसभा के सदस्य, मायावती और योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व की सरकारों में उत्तर प्रदेश में मंत्री और विपक्ष के नेता भी रहे हैं। वह योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व की भाजपा सरकार (2017-2022) में श्रम मंत्री रहे थे।
उन्होंने 11 जनवरी 2022 को योगी सरकार में श्रम मंत्री पद से इस्तीफा देकर सपा में शामिल हुए और कुशीनगर की फाजिलनगर सीट से विधानसभा चुनाव लड़ा। चुनाव में पराजित होने के बाद सपा ने उन्हें विधान परिषद का सदस्य बनाया और पार्टी में राष्ट्रीय महासचिव की जिम्मेदारी सौंपी। पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव से मतभेद के चलते इसी वर्ष फरवरी में मौर्य ने विधान परिषद और सपा से इस्तीफा देकर अपनी पार्टी बनाई।
चुनाव से पहले भाजपा से क्यों खिसिया गए थे स्वामी प्रसाद?
साल 2022 के यूपी विधानसभा चुनाव के बीच कोइरी समुदाय में अच्छी पकड़ रखने का दावा करने वाले योगी सरकार के तत्कालीन कैबिनेट मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य ने पहले मंत्री पद से इस्तीफा दे कर भाजपा का दामन छोड़ दिया था। उस वक्त उन्होंने अखिलेश यादव की साइकिल की सवारी करनी पसंद की। उन्हें ये आसार नजर आ रहे थे कि इस चुनाव में कमल कीचड़ में डूब जाएगा और साइकिल की रफ्तार इस कदर बढ़ेगी कि विजय का सेहरा सपा के सिर पर ही बंधेगा। हालांकि मौर्य ने उस वक्त भाजपा छोड़ने की वजह ये बताई कि यहां पिछड़ों का सम्मान नहीं होता है। राजनीतिक विशेषज्ञों ने दावा किया था कि मौर्य को ओम प्रकाश राजभर ने ही सपा के साथ लाया था।
फाजिलनगर में स्वामी प्रसाद को मिली थी करारी हार
विधानसभा चुनाव 2022 में समाजवादी पार्टी ने मौर्य को कुशीनगर की फाजिलनगर सीट से अपना उम्मीदवार बनाया था। कहा जाता है कि जब आरपीएन सिंह ने भाजपा का दामन थामा तो पडरौना सीट पर स्वामी प्रसाद मौर्य को हार का डर सताने लगा था। इसी के चलते वो फाजिलनगर चले गए। हालांकि इसका भी कोई फायदा उन्हें नहीं हुआ, चुनाव में बीजेपी प्रत्याशी सुरेंद्र कुशवाहा के हाथों उन्हें करारी हार झेलनी पड़ी थी।
अब ये सवाल उठता है कि जिस क्षेत्र के विधानसभा चुनाव में स्वामी को जीत नसीब नहीं हुई, वो उसी कुशीनगर से लोकसभा चुनाव में कैसे जीतेंगे? कहा जाता है कि सपा छोड़ने के बाद स्वामी प्रसाद भाजपा के साथ भी जा सकते थे, लेकिन स्वामी को बीजेपी तवज्जो नहीं देना चाहती, क्योंकि केशव प्रसाद मौर्य के जरिए पार्टी ने कुशवाहा समाज में अच्छी खासी पकड़ बना रखी है।
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