#Safe Her : कार्यस्थल पर ऐसे हो सकती है महिलाओं की सुरक्षा, करने होंगे ये उपाय
Women safety : निर्भया गैंगरेप के खिलाफ हुए व्यापक विरोध-प्रदर्शनों के बाद सरकार रेप के खिलाफ कड़ा कानून लेकर आई। रेप के दोषियों को कड़ी सजा देने का प्रावधान हुआ। फास्ट ट्रैक कोर्ट और महिला थानों की व्यवस्था हुई लेकिन धरातल पर ये व्यवस्थाएं ठीक से लागू नहीं हो पाती हैं। रेप के खिलाफ भारत में दोषसिद्धि की दर केवल 26 प्रतिशत है।
महिला सुरक्षा।
Women safety : कोलकाता में 31 साल की ट्रेनी महिला डॉक्टर के साथ रेप और फिर उसकी हत्या के बाद महिला सुरक्षा का सवाल एक बार फिर खड़ा हो गया। खासकर, कार्यस्थलों पर महिला की सुरक्षा कैसे हो, इसे लेकर देश भर में विचार-विमर्श और बहसें शुरू हो गईं। इस घटना ने 2012 के निर्भया कांड की कड़वी यादें ताजा कर दीं। नौ अगस्त की रात कोलकाता के आरजी कर अस्पताल में हुई इस विभत्स एवं जघन्य घटना ने सभी को झकझोर कर रख दिया। अपनी सुरक्षा और पीड़ित परिवार को न्याय दिलाने की मांग को लेकर देश भर में डॉक्टरों ने धरना-प्रदर्शन किया। कोलकाता में जूनियर डॉक्टरों का प्रदर्शन अभी भी जारी है।
नौकरीपेशा महिलाओं का घर के बाद सबसे ज्यादा समय उनके कार्यस्थल पर बीतता है। यह समय का एक बड़ा हिस्सा है जो वे अपने सरकर्मियों के साथ व्यतीत करती हैं। कोलकाता में रेप के बाद जिस महिला डॉक्टर की बेरहमी से हत्या हुई, वह भी उसका कार्यस्थल यानी अस्पताल था। कोई भी महिला यह कभी अपेक्षा नहीं कर सकती कि जहां वह काम कर रही है, जो स्थान उसके लिए दूसरे घर की तरह है, उसके साथ दुष्कर्म हो जाएगा और उसकी हत्या हो जाएगी। वह भी सरकारी अस्पताल जहां रात के वक्त भी चहल-पहल रहती है। लेकिन यह हुआ, इस घटना ने सिस्टम की बहुत सारी खामियां उजागर कीं।
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इस घटना के बाद राष्ट्रीय महिला आयोग की एक टीम ने आरजी कर अस्पताल का दौरा किया था। टीम ने पाया कि महिलाओं की सुरक्षा के लिए वहां इंतजाम पर्याप्त नहीं थे। सीसीटीवी काम नहीं कर रहा था। अस्पतालों में काम करने वाली महिला डॉक्टरों एवं नर्सों की शिकायत रहती है कि कई बार रोगियों के रिश्तेदार या उनकी देखभाल करने वाले रात के समय नशे की हालत में रहते हैं, इससे उनकी सुरक्षा को खतरा बना रहता है। दूसरी, कभी-कभी कैंटीन और वाशरूम इतना दूर होता है कि रात के समय उन्हें जाने में डर लगता है। कई बार वाशरूम जाने वाले रास्ते में पर्याप्त प्रकाश नहीं रहता, उन्हें अंधेरे में ही वहां तक जाना होता है। अंधेरे में उनके साथ कोई वारदात भी हो सकती है।
कार्यस्थल पर महिलाएं खुद को सुरक्षित महसूस करें। इसके लिए नियोक्ताओं को समय-समय पर उनसे बात कर यह पूछना चाहिए कि उन्हें किसी बात से डर तो नहीं लगता। वे खुद को सुरक्षित तो महसूस करती हैं। नियोक्ता सुरक्षा को लेकर अगर महिलाओं से संवाद करते हैं और उनकी राय सुनते हैं तो कार्यस्थल पर एक सुरक्षित माहौल का निर्माण होगा। कार्यस्थल पर गलत मानसिकता वाले लोगों को भी एक संदेश जाएगा।
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निर्भया गैंगरेप के खिलाफ हुए व्यापक विरोध-प्रदर्शनों के बाद सरकार रेप के खिलाफ कड़ा कानून लेकर आई। रेप के दोषियों को कड़ी सजा देने का प्रावधान हुआ। फास्ट ट्रैक कोर्ट और महिला थानों की व्यवस्था हुई लेकिन धरातल पर ये व्यवस्थाएं ठीक से लागू नहीं हो पाती हैं। रेप के खिलाफ भारत में दोषसिद्धि की दर केवल 26 प्रतिशत है। इसका मतलब है कि हर 100 रिपोर्ट किए गए मामलों में से केवल 26 में दोषसिद्धि हो पाती है, जबकि 74 अपराधी बिना सजा के बच निकलते हैं। ऐसे में केवल कानून बना देने से महिलाओं की सुरक्षा नहीं हो पाएगी। दोषियों को सजा मिले इसलिए जरूरी है कि कानूनों को क्रियान्यवन सही एवं प्रभावी तरीके से हो। ऐसे अपराधों में दोषषिद्धि की दर बढ़नी चाहिए।
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