अब BJP के लिए 'नारायण-नारायण' जपेंगे नारद राय, पूर्वांचल में अखिलेश का बिगाड़ेंगे 'खेल'

Narad Rai : पूर्वांचल की घोसी सीट पर भूमिहार समुदाय के उम्मीदवार का दबदबा रहा है। इस सीट पर भूमिहार मतदाताओं की संख्या डेढ़ लाख बताई जाती है। यहां भूमिहार समुदाय उम्मीदवारों को 12 बार जीत मिली है। भूमिहार समुदाय के बड़े चेहरे कल्पनाथ राय घोषी सीट से चार बार विजयी हुए। 2019 में बसपा के टिकट पर चुनाव जीतने वाले अतुल राय भी इसी बिरादरी से आते हैं।

Narad Rai

भाजपा में शामिल हुए सपा नेता नारद राय।

Narad Rai : लोकसभा चुनाव के अंतिम चरण के ठीक पहले समाजवादी पार्टी (सपा) के वरिष्ठ नेताओं में शुमार नारद राय ने अपनी इस पुरानी पार्टी को अलविदा कह दिया। वह भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के साथ आ गए हैं। भगवा पार्टी का दामन थामकर उन्होंने पूर्वांचल में सपा को एक बड़ा झटका दिया है। राय भूमिहार बिरादरी से आते हैं। पूर्वांचल की सभी सीटों पर भूमिहार समुदाय की संख्या अच्छी-खासी है और कई सीटों पर भूमिहार जीत-हार में निर्णायक भूमिका निभाने का सामर्थ्य रखते हैं। राजनीतिक जानकार मान रहे हैं कि नारद के भाजपा में शामिल होने के बाद कुशीनगर से बलिया, घोषी और गाजीपुर तक सपा के भूमिहार वोटों में सेंधमारी होगी और इसका फायदा भाजपा को होगा।

कौन हैं नारद राय, अखिलेश से दूरी की वजह

नारद राय सपा के संस्थापक मुलायम सिंह यादव के करीबी और उनके भरोसेमंद रहे हैं। 1980 के दशक में वह सपा में शामिल हुए। तब से वह सपा के मुख्य चेहरे हैं। बताया जाता है कि अखिलेश ने जब पार्टी अध्यक्ष बनने के लिए बगावत की थी तब नारद ने उनका साथ न देकर मुलायम का समर्थन किया। जानकार मानते हैं कि अखिलेश और नारद के बीच रिश्तों में आई खटास की यह मुख्य वजह है। अखिलेश आज भी इस बात को भूल नहीं पाए हैं। बलिया से उन्हें सपा का टिकट न मिलने का भी यह एक प्रमुख कारण माना जा रहा है। भाजपा में शामिल होने के बाद नारद राय ने अखिलेश पर कई गंभीर आरोप लगाए हैं। नारद का कहना है कि अखिलेश अपने पिता मुलायम सिंह को केवल पार्टी अध्यक्ष के रूप में देखते थे।

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पूर्वांचल की इन सीटों पर भूमिहार समुदाय का असर

पूर्वांचल की कुशीनगर, गोरखपुर, वाराणसी, आजमगढ़, बलिया, घोसी, गाजीपुर, चंदौली, देवरिया, सलेमपुर, मिर्जापुर, अंबेडकर नगर और जौनपुर सीटों पर भूमिहार मतदाता हैं लेकिन इनमें से घोसी, गाजीपुर, बलिया और वाराणसी में इनका दबदबा और चुनाव नतीजों को प्रभावित करने की क्षमता है। पूरे सूबे की अगर बात करें तो यहां इस समुदाय की आबादी करीब तीन प्रतिशत है।

घोसी सीट पर भूमिहार उम्मीदवार का दबदबा

पूर्वांचल की घोसी सीट पर भूमिहार समुदाय के उम्मीदवार का दबदबा रहा है। इस सीट पर भूमिहार मतदाताओं की संख्या डेढ़ लाख बताई जाती है। यहां भूमिहार समुदाय उम्मीदवारों को 12 बार जीत मिली है। भूमिहार समुदाय के बड़े चेहरे कल्पनाथ राय घोषी सीट से चार बार विजयी हुए। 2019 में बसपा के टिकट पर चुनाव जीतने वाले अतुल राय भी इसी बिरादरी से आते हैं। तो गाजीपुर सीट से गौरी शंकर राय एक बार और भाजपा नेता मनोज सिन्हा तीन बार सांसद रह चुके हैं। बलिया लोकसभा क्षेत्र में भूमिहार मतदाताओं की संख्या करीब डेढ़ लाख और आजमगढ़ में करीब एक लाख है। मऊ जिले की वाराणसी में डेढ़ लाख तो गाजीपुर में एक लाख से ज्यादा भूमिहार बिरादरी के मतदाताओं के होने का दावा किया जाता है। वहीं, चंदौली लोकसभा क्षेत्र में भूमिहार बिरादरों के मतदाताओं की संख्या 50 से 60 हजार होने की बात कही जाती है।

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नारद ने सपा छोड़ने की बताई वजह

नारद का कहना है कि सपा ने ही उन्हें नेता बनाया। वह राम मनोहर लोहिया के सिद्धांतों पर काम करते रहे और गरीबों के साथ खड़े रहे। समाचार एजेंसी एएनआई से खास बातचीत में उन्होंने कहा, 'पार्टी में जब नेताजी का अपमान हुआ तो मैं उनके साथ बेटे की तरह खड़ा रहा। सपा अध्यक्ष पद से जब उन्हें हटाया गया तो वह रोने लगे। अखिलेश यादव ने जबरन पार्टी अध्यक्ष पद पर कब्जा किया। मुझे लगा कि पार्टी में सब कुछ ठीक हो जाने के बाद अखिलेश पुरानी बातों को भुला देंगे लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ।' नारद का आरोप है कि 2022 के विधानसभा चुनाव में अखिलेश ने उन्हें टिकट दिया लेकिन यह सुनिश्चित भी किया कि वह जीत न पाएं।

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आलोक कुमार राव author

करीब 20 सालों से पत्रकारिता के पेशे में काम करते हुए प्रिंट, एजेंसी, टेलीविजन, डिजिटल के अनुभव ने समाचारों की एक अंतर्दृष्टि और समझ विकसित की है। इ...और देखें

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