कभी बिना जमीन वाला जमींदार बताकर कांग्रेस पर कसा था तंज, अब वैसे ही हालात का सामना कर रहे शरद पवार
Sharad Pawar News : एनसीपी के बड़े नेताओं के साथ वह शिंदे-फड़णवीस सरकार में शामिल हो गए हैं। साथ ही उन्होंने एनसीपी पर भी दावा किया है। अब सवाल है कि शरद पवार क्या पहले की तरह भतीजे की बगावत से अपनी पार्टी को बचा पाएंगे? जाहिर है कि एनसीपी के मौजूदा घटनाक्रम ने शरद पवार को कमजोर किया है।
कांग्रेस से अलग होकर शरद पवार ने बनाई एनसीपी।
Sharad Pawar : महाराष्ट्र में रविवार को हुए सियासी उठपठक का असर देश की राजनीति पर दिखने लगा है। राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (NCP) में बगावत का असर महाराष्ट्र की राजनीति से लेकर राष्ट्रीय राजनीति पर देखा जा रहा है। एनसीपी से अजित पवार की बगावत ने महाराष्ट्र में नए सियासी समीकरण उभारने के साथ ही विपक्ष की एकजुटता को बड़ा झटका दिया है। 13 और 14 जुलाई को होने वाली विपक्ष की बैठक टल गई है। सबसे बड़ा झटका एनसीपी अध्यक्ष एवं मराठा क्षत्रप शरद पवार को लगा है। भतीजे ने चाचा को बहुत भारी झटका दिया है।
भतीजे के 'गेम प्लान' को समझ नहीं पाए शरद पवार?
एनसीपी के बड़े नेताओं के साथ वह शिंदे-फड़णवीस सरकार में शामिल हो गए हैं। साथ ही उन्होंने एनसीपी पर भी दावा किया है। अब सवाल है कि शरद पवार क्या पहले की तरह भतीजे की बगावत से अपनी पार्टी को बचा पाएंगे? जाहिर है कि एनसीपी के मौजूदा घटनाक्रम ने शरद पवार को कमजोर किया है। 1999 में कांग्रेस से अलग होकर अपनी अलग पार्टी और राजनीति में अलग पहचान बनाने वाले पवार के सामने जब भी चुनौतियां एवं मुश्किलें आईं वे उनमें फंसे नहीं बल्कि अपनी चतुराई एवं राजनीतिक समझ से इन अड़चनों से पार निकल गए लेकिन इस बार वे भतीजे के 'गेम प्लान' से घिर गए हैं। विपक्ष का कद्दावर नेता इस बार कमजोर दिख रहा है। एनसीपी में यह टूट ऐसे समय हुई है जब मीडिया में बहुत पहले से चर्चा थी कि अजित पाला बदल सकते हैं। सवाल यह है कि क्या शरद पवार को भतीजे के प्लान की भनक नहीं लगी?
2019 में अजित की कराई थी घर वापसी
राजनीति में शरद पवार की पहचान एक कद्दावर एवं मंझे हुए नेता की है। 2019 में अजित पवार ने जब बगावत कर फड़णवीस सरकार में जब डिप्टी सीएम बने तो पवार ने अपनी 'पावर' दिखाई और करीब एक दिन के भीतर अजित की घर वापसी कर ली। इसके बाद कई ऐसे मौके आए जब पवार ने अपनी राजनीतिक समझ के साथ-साथ महाविकास अघाड़ी को मुश्किल दौर से निकाला। विपक्ष के दूसरे नेता भी उनकी सियासी चाल के आगे नतमस्तक होते हैं। 2024 से पहले विपक्षी एकता को आगे बढ़ाने में वह एक धूरी की तरह काम कर रहे थे। एनसीपी की कमजोरी अब विपक्ष की एकता को कमजोर कर सकती है। एनसीपी सुप्रीमो की हालत उस जमींदार की तरह हो गई है जिसकी राजनीतिक जमीन सिकुड़ने का खतरा मंडरा रहा है।
कांग्रेस को कहा था बिना जमीन वाला जमींदार
दो साल पहले शरद पवार ने कांग्रेस की तुलना गरीब जमींदारों से की थी। साल 2021 में शरद पवार ने कहा कि वे (कांग्रेस) सोचते हैं कि वे जमींदार हैं लेकिन लैंड सीलिंग एक्ट लागू होने के बाद जमींदारों ने अपनी बड़ी जमीनें खो दीं और इसके बाद उनके लिए अपनी हवेलियों का रखरखाव करना मुश्किल हो गया। पलार ने कहा, ‘हर सुबह, वे जमीन को देखते हुए उठते हैं और दावा करते हैं कि जमीन के टुकड़े उनके हुआ करते थे। कांग्रेस की भी ऐसी ही सोच है। उन्हें वास्तविकता को स्वीकार करना चाहिए।’हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि कांग्रेस यदि स्वीकार करती है कि वह कमजोर हो गई है, तो वह सभी विपक्षी दलों को एक साथ लाने में मदद करेगी।
पवार के पास हैं अभी कई रास्ते
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि शरद पवार इस बार भी आसानी से हार नहीं मानेंगे। मराठा क्षत्रप के दांव-पेंच के बारे में अनुमान लगाना बहुत मुश्किल होता है। वे अपने एक दांव से बड़े-बड़े राजनीतिक पहलवानों को चित करते आए हैं। वह कौन सा दांव कब खेल देंगे इसकी खबर किसी को नहीं रहती। भतीजे की बगावत ने उनके लिए मुश्किलें जरूर खड़ी की हैं लेकिन उनके पास पार्टी पर पकड़ बनाए रखने का भावनात्मक एवं कानूनी रास्ता अभी बचा हुआ है। जरूरत पड़ने पर वह इन दोनों का रास्तों का इस्तेमाल करने से नहीं हिचकेंगे। बागी विधायकों को अयोग्य करार देने के लिए विधानसभा के स्पीकर के पास अर्जी पहुंच गई है। कुल मिलाकर महाराष्ट्र की राजनीति आगे कौन सा करवट लेगी यह देखने वाली बात होगी।
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