Operation Lotus:भारतीय राजनीति में 'ऑपरेशन लोटस', जानें- कर्नाटक से क्या है कनेक्शन

Operation Lotus: 13 मई 2023 को साफ हो जाएगा कि कर्नाटक में कमल खिलेगा या लोगों ने अपनी किस्मत कांग्रेस के हाथ में सौंपी है या मैसूर के इलाके में ताकतवर जेडीएस के पास सत्ता की कुंजी होगी। इन सबके बीच जब हम कर्नाटक की राजनीति पर चर्चा करते हैं तो ऑपरेशन लोटस का जिक्र होने लगता है। किसी भी राजनीतिक हलचल(अगर बीजेपी का नाम आ रहा हो) के दौरान विपक्षी दल इस खास शब्द का जिक्र जरूर करते हैं।

10 मई को होना है कर्नाटक विधानसभा चुनाव

मुख्य बातें
  • बीजेपी को ऑपरेशन लोटस के जरिए घेरता है विपक्ष
  • मध्य प्रदेश में कमलनाथ सरकार गिराए जाने के संदर्भ में इस्तेमाल
  • मध्य प्रदेश कांग्रेस के बागी विधायक कर्नाटक में रुके थे

Operation Lotus: भारतीय राजनीति में आप एक शब्द ऑपरेशन लोटस का नाम जरूर सुनते होंगे। इस शब्द के जरिए विपक्षी दल बीजेपी पर निशाना साधते हैं। लेकिन इस खास शब्द का कर्नाटक की राजनीति से क्या संबंध है। क्या आप इसके बारे में जानते हैं। वैसे तो इस शब्द का सीधे सीधे कर्नाटक से संबंध नहीं है। लेकिन 2019 में यह शब्द प्रचलन में तब आया जब मध्य प्रदेश कांग्रेस के कुछ विधायक कर्नाटक जा पहुंचे और कांग्रेस ने आरोप लगाना शुरू कर दिया कि बीजेपी शासित प्रदेश के जरिए कमलनाथ की सरकार को गिराने की साजिश नहीं बल्कि कोशिश की जा रही है। मध्य प्रदेश में कांग्रेस की सरकार जा चुकी थी और कांग्रेस की नजरों में ऑपरेशन लोटस कामयाब हो चुका था। उसके बाद से जब कभी गैर बीजेपी सरकारों के गिरने या बदलने की खबरों ने चर्चा पकड़ी तो ऑपरेशन लोटस शब्द लोकप्रिय हो गया।

2007 में बीजेपी को मिली थी पहली बार कामयाबी अब ऑपरेशन लोटस को समझने से पहले कर्नाटक में बीजेपी की मौजूदगी को भी समझना होगा। 2007 में पहली बार कर्नाटक में कमल खिला। जेडीएस के साथ मिलकर बी एस येदियुरप्पा ने सरकार बनाई, लेकिन सात दिन सीएम रह पाए, जेडीएस ने समर्थन वापस ले लिया। 2008 के चुनाव में बीजेपी की सरकार बनी, 224 में से 110 सीटें मिलीं, कांग्रेस 80 और जेडीएस को 28 सीटें मिलीं।30 मई 2008 को येदियुरप्पा ने कमान संभाली। हालांकि भ्रष्टाचार के मामले में लोकायुक्त की रिपोर्ट के बाद इस्तीफा देना पड़ा हालांकि वो 2011 तक कुर्सी पर काबिज रहे। येदियुरप्पा के बाद डी वी सदानंद गौड़ा को जिम्मेदारी मिली। लेकिन अंदरुनी कलह से सिर्फ 343 दिन तक सत्ता में बने रहे। 2012 में सदानंद गौड़ा के बाद शेट्टार को सीएम की कुर्सी मिली। बीजेपी ने शेट्टार के चेहरे पर चुनाव लड़ने का फैसला किया। लेकिन भ्रष्टाचार के दाग इतने गहरे साबित हुए कि बीजेपी उन धब्बों को नहीं मिटा सकी और 2013 में चुनावी लड़ाई में 40 सीट पर सिमट गई। 122 सीट के साथ सिद्दारमैया सरकार बनाने में कामयाब रहे। इस तरह से कर्नाटक के इतिहास में 2008 से 2013 के बीच तीन लोगों ने सरकार की कमान संभाली और यह पहला मौका था।

2018 के चुनाव में बीजेपी ने एक बार फिर बी एस येदियुरप्पा की अगुवाई में चुनाव लड़ने का फैसला किया। बीजेपी 104 सीट के साथ बड़ी पार्टी के तौर पर सामने आई। येदियुरप्पा ने सरकार बनाने का दावा पेश किया। लेकिन विश्वासमत हासिल करने से पहले इस्तीफा दे दिया। बाद में जेडीएस को कांग्रेस ने समर्थन दिया और एच डी कुमारस्वामी मुखिया बने। लेकिन कांग्रेस के दबाव की वजह से काम करना मुश्किल हो रहा था और गद्दी छोड़नी पड़ी। ऐसे बदले माहौल में बी एस येदियुरप्पा एक बार फिर राज्य की कमान संभालने में कामयाब रहे, हालांकि कार्यकाल के बीच में बीजेपी ने चेहरा बदल बी आर बोम्मई को कमान सौंप दी।

क्या कहते हैं जानकार

जानकारों का कहना है कि भारतीय राजनीति खासतौर से अगर दक्षिण भारत की राजनीति पर नजर डालें तो आप पाएंगे कि चाहे कोई भी दल रहा हो भ्रष्टाचार के आरोपों से बच नहीं सका। उत्तर भारत से उलट दक्षिण में संकेतों की राजनीति होती रही है। अगर बात कर्नाटक कि करें तो इस तरह के शब्दजाल के जरिए जनता को भरमाने, उलझाने और समझाने की कोशिश होती रही है। आपको याद होगा कि जब 2018 में मध्य प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनी तो करीब एक साल के बाद ही उठापठक शुरू हो चुकी थी। मध्य प्रदेश कांग्रेस के कई विधायक कर्नाटक पहुंच गए और नाम मिला कि बीजेपी तोड़फोड़ की राजनीति कर रही है। जानकार बताते हैं कि भारतीय राजनीति में तोड़फोड़, सरकार बनाने या गिराने के मामले नहीं है।लेकिन इस तरह की कवायदों को जब नाम मिलना शुरू हुआ तो लोगों की दिलचस्पी बढ़ने लगी।

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