'INDIA' में बने रहना ममता बनर्जी की मजबूरी या जरूरी? समझिए फूंक-फूंक कर कदम रखने के सियासी मायने

West Bengal Politics: विपक्षी गठबंधन में बने रहना ममता बनर्जी और उनकी पार्टी के लिए जरूरी है या फिर सियासी मजबूरी है? ये सवाल इस लिए उठ रहे हैं, क्योंकि कांग्रेस बार-बार टीएमसी पर निशाना साध रही है, मगर ममता इन दिनों पूरी तरह बैकफुट पर नजर आ रही है। आपको सारा माजरा समझाते हैं।

क्या ममता बनर्जी को सता रही है टेंशन?

कहते हैं कि इश्क और जंग में सबकुछ जायज है... ये कहावत सियासत पर भी हू-ब-हू लागू होती है। आगामी लोकसभा चुनाव को लेकर राजनिति में काफी उबाल देखने को मिल रहा है। अपने बेबाक अंदाज के लिए मशहूर ममता बनर्जी इन दिनों बैकफुट पर हैं। पश्चिम बंगाल कांग्रेस के अध्यक्ष अधीर रंजन चौधरी बार-बार टीएमसी और ममता के खिलाफ जहर उगलते रहते हैं, हाल ही में ईडी के अधिकारियों पर हुए हमले के बाद उन्होंने सरकार को जमकर खरी-खोटी सुनाई। टीएमसी ने भी जवाब दिया, मगर शायद ममता बनर्जी को फिलहाल किसी तरह के फसाद में नहीं पड़ना है। तभी उन्होंने नरम रुख अख्तियार कर लिया।

INDIA में बने रहना ममता की मजबूरी या जरूरी?

विपक्षी दलों के गठबंधन इंडियन नेशनल डेवलपमेंट इंक्लूजिव अलायंस (INDIA) गठबंधन में कांग्रेस और तृणमूल कांग्रेस दोनों एक-दूसरे की सहयोगी हैं, मगर दोनों के बीच बार-बार हो रहे बखेड़े से ये असमंजस होने लगा है कि चुनाव से पहले अगर ऐसी हालत है, तो चुनाव आने पर दोनों पार्टियां एकसाथ कदम से कदम मिलाकर कैसे चलेंगी? फिलहाल ममता के अंदाज को समझना आसान है कि उन्हें किसी तरह के विवाद में नहीं पड़ना है, तभी शायद उन्होंने अपने पार्टी के नेताओं को दूसरों को पार्टी के बारे में टिप्पणी करने से रोक दिया।

ममता बनर्जी भी इस बात को बखूबी समझती हैं कि इस तरह के सिरफुटव्वल से उनका ही नुकसान होगा। ममता की कोशिश है कि आगामी चुनाव के लिए विपक्षी गठबंधन के बीच जब सीट शेयरिंग का फॉर्मूला सेट हो तो उनकी पार्टी के खाते में ज्यादा से ज्यादा सीटें आए। ममता की चुप्पी उनकी मजबूरी भी है और सियासी हालातों के देखते हुए कहीं न कहीं ऐसा करना जरूरी भी है।

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