विपक्ष के गठबंधन में इन 5 नेताओं की होगी हनक! इनमें कांग्रेस का एक भी नहीं
Opposition Parties Meet: आगामी लोकसभा चुनाव 2024 से पहले विपक्ष लामबंद हो रहा है, रणनीति पर समझौते के लिए बैठकों का दौर जारी है। अगर विपक्षी पार्टियों के बीच गठबंधन पर समझौता होता है, तो 5 नेताओं का दबदबा जरूर देखने को मिलेगा। इनमें लालू प्रसाद यादव, नीतीश कुमार, ममता बनर्जी, अखिलेश यादव और शरद पवार के नाम शामिल हैं। इन नेताओं की शर्तें माननी जरूरी भी है और विपक्ष की मजबूरी भी...
विपक्षी पार्टियों के गठबंधन में 5 सबसे मजबूत नेता।
These 5 Leaders Role In Opposition Alliance: जैसे-जैसे लोकसभा चुनाव 2024 नजदीक आ रहा है, सियासी गलियारे में उथल-पुथल तेज हो रही है। बैठकों का दौर जारी है, एक तरफ विपक्ष भाजपा को सत्ता से उखाड़ फेंकने के लिए रणनीति तैयार कर रहा है। वहीं दूसरी ओर एनडीए में भाजपा छोटे-छोटे दलों को साथ लाने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा रही है। विपक्ष भले ही एकजुटता के दावे कर रहा हो, लेकिन इससे पहले के चुनावों में भी गठबंधन की तमाम कोशिशें नाकाम हो चुकी हैं। अब अगर विपक्षी पार्टियों के बीच आगामी चुनाव 2024 के लिए बात बन भी जाती है तो विपक्षी गठबंधन में जिन 5 नेताओं का सबसे अधिक दबदबा देखा जाएगा, उनमें कांग्रेस के शायद एक भी नेता ना हों। आखिर ऐसा क्यों है? तो चलिए इसकी असल वजह समझते हैं।
गठबंधन में इन 5 नेताओं की हो सकती है हनक
विपक्ष की बैठक में लोकसभा चुनाव 2024 का फॉर्मूला सेट करने की कोशिश की जा रही है। बात बनेगी या नहीं, ये तो आने वाला वक्त ही बताएगा। अगर इन 26 विपक्षी पार्टियों के बीच चुनाव के लिए समझौता हो जाएगा तो ये कहना गलत नहीं होगा कि लालू प्रसाद यादव, नीतीश कुमार, अखिलेश यादव, ममता बनर्जी और शरद पवार का अच्छा-खासा दबदबा देखने को मिल सकता है। इन पांचों नेताओं की शर्तें मानना गठबंधन के लिए जरूरी होगा या उनकी मजबूरी होगी? एक-एक करके बताते हैं।
1). अखिलेश यादव
विपक्षी गठबंधन में सबसे मजबूत कड़ी अखिलेश यादव ही होंगे। वो कहते हैं न दिल्ली का रास्ता यूपी से होकर ही जाता है। जाहिर सी बात है, 80 लोकसभा सीटों वाला राज्य उत्तर प्रदेश सरकार बनाने और गिराने की क्षमता रखता है। फिलहाल इस गठबंधन में यूपी से अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी के अलावा कोई दमदार दल शामिल नहीं है। जयंत चौधरी की पार्टी आरएलडी भी सपा की सहयोगी है। विपक्षी एकता की इस बैठक से मायावती की बसपा ने दूरी बनाए रखी है। विपक्ष को हर हाल में यूपी में अखिलेश यादव को ही आगे करना पड़ेगा। बीते विधानसभा चुनाव में कांग्रेस और बसपा का जो हश्र हुआ, वो सभी ने देखा। अखिलेश यादव विपक्ष के लिए यूपी में जरूरी भी हैं और मजबूरी भी हैं।
2). ममता बनर्जी
पश्चिम बंगाल के सियासी गलियारों में ममता बनर्जी की अच्छी खासी हनक है। विधानसभा चुनावों में पूरे देश ने उनकी ताकत देखी। लगातार तीसरी बार मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठने वाली ममता बनर्जी को पीएम उम्मीदवार की रेस में भी देखा जा रहा है। 42 सीटों वाले पश्चिम बंगाल में ममता दीदी की पार्टी एआईटीसी का जलवा है। हालांकि पिछले लोकसभा चुनाव में ममता को तगड़ा झटका लगा था। उन्हें इन चुनावों में सिर्फ 22 सीटें ही मिली थीं। बीजेपी ने 18 सीट पर कब्जा किया था और कांग्रेस की झोली में महज 2 सीटें गई थीं। अगर विपक्षी पार्टियों का गठबंधन बना तो पश्चिम बंगाल की दीदी का भी जोर देखने को मिलेगा। ममता बनर्जी विपक्ष के लिए पश्चिम बंगाल में जरूरी भी हैं और मजबूरी भी हैं।
3). लालू प्रसाद यादव
बिहार में इन दिनों जेडीयू, आरजेडी और कांग्रेस की सरकार है। इसमें आरजेडी का अच्छा खासा दबदबा है। लालू प्रसाद यादव के दोनों बेटे नीतीश सरकार में मंत्री हैं। तेजश्वी यादव डेप्युटी सीएम हैं और युवाओं के मन को खूब लुभा रहे हैं। बिहार में यादव समाज एकतरफा वोट करता है। या फिर यूं कहें कि बिहार की सियासत किस ओर करवट लेगी इसे तय करने में यादव वोटबैंक की अहम भूमिका है। एक वक्त था जब लालू प्रसाद यादव प्रधानमंत्री बनते-बनते रह गए थे। हालांकि उनकी सियासी धमक आज भी कम नहीं हुई है। विधानसभा चुनाव में आरजेडी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी। ऐसे में लालू परिवार की हर शर्त माननी भी विपक्ष के लिए जरूरी भी है और मजबूरी भी है।
4). नीतीश कुमार
सबसे लंबे समय तक बिहार के मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठने वाले नेता और कोई नहीं, बल्कि नीतीश कुमार ही हैं। सीएम रहते हुए अपने नीतियों से बिहारियों को रिझाने में नीतीश कुमार का कोई जवाब नहीं है। जनता इन्हें सुशासन बाबू के नाम से पुकारती है। हालांकि पिछले विधानसभा चुनाव में सुशासन बाबू अपना जलवा बिखेरने में कामयाब नहीं हो पाए थे, उसके बावजूद सीएम की कुर्सी पर कोई और नहीं बैठा। कहा जाता है कि कुर्मी वोटबैंक नीतीश के इशारों पर ही काम करता है। आगामी लोकसभा चुनाव 2024 से पहले विपक्षी पार्टियों को एकसाथ लाने के लिए भी नीतीश कुमार ने ही पहल की है। ऐसे में नीतीश कुमार को नजरअंदाज कर पाना विपक्ष के लिए अपने पैर पर कुल्हाड़ी मारने के समान होगा।
5). शरद पवार
इन दिनों महाराष्ट्र से शरद पवार के लिए बुरी खबर आई थी। भतीजे अजित पवार ने चाचा शरद पवार को अचानक गच्चा दे दिया और भाजपा से हाथ मिला लिया। हालांकि शरद पवार की दिमाग में क्या चल रहा है इसकी किसी को भनक तक नहीं लग सकती है। पिछली बार जब अजित पवार बागी हुए थे, तो शरद पवार ने उन्हें वापस आने पर मजबूर कर दिया था। सियासत में जोड़-तोड़ का फॉर्मूला सेट करने में शरद पवार का कोई जवाब नहीं है। मजह 38 साल की उम्र में उन्होंने सरकार गिराने और विधायकों को तोड़ने और मिलाने का गुर सीख लिया था। महाराष्ट्र में कुल 48 लोकसभा सीटें हैं। फिलहाल शरद पवार की पार्टी कमजोर हो चुकी है, मगर सियासत के चाणक्य कहे जाने वाले शरद पवार विपक्ष के इस गठबंधन के लिए जरूरी भी हैं और विपक्ष के लिए मजबूरी भी हैं।
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