इधर विपक्ष ने संसद में उठाया मुद्दा, उधर सुप्रीम कोर्ट ने सरकारी आदेश पर लगाया रोक; जानें क्या है नेमप्लेट वाला पूरा विवाद
Nameplate Controversy: यूपी की योगी सरकार के उस आदेश पर सियासत से लेकर अदालत तक संग्राम छिड़ा है। जहां एक ओर संसद में विपक्ष ने इस मुद्दे को उठाया, वहीं दूसरी तरफ सुप्रीम कोर्ट ने कांवड़ यात्रा मार्ग पर स्थित भोजनालयों के मालिकों के नाम प्रदर्शित करने संबंधी सरकारी निर्देश पर अंतरिम रोक लगा दी है।
कांवड़ यात्रा के लिए नेमप्लेट वाला पूरा विवाद समझिए।
Political Battle on Kanwar Yatra: क्या आप जानते हैं कि आखिर उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने ऐसा कौन सा फरमान जारी कर दिया था, जिससे जुड़ा विवाद इस वक्त हर किसी का ध्यान अपनी ओर आकर्षित कर रहा है। सीएम योगी के उस आदेश की आलोचना विपक्षी दलों के नेताओं ने पहले दिन से ही शुरू कर दी थी। अब संसद के मानसून सत्र की शुरुआत के साथ ही दोनों सदनों में ये मुद्दा तूल पकड़ता नजर आया। एक ओर जहां विपक्षी सांसदों ने एक सुर में योगी सरकार के इस फैसले के खिलाफ संसद में आवाज बुलंद की, वहीं दूसरी तरफ यूपी सरकार, उत्तराखंड सरकार और मध्य प्रदेश सरकार को सुप्रीम कोर्ट को तगड़ा झटका लगा है।
क्या है कांवड़ यात्रा के लिए नेमप्लेट वाला विवाद?
विपक्षी नेताओं ने एक सुर में उस फैसले का विरोध किया, जिसमें उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने ये आदेश जारी किया था कि कांवड़ यात्रा के दौरान उन रास्तों में पड़ने वाले खाद्य और पेय पदार्थों की दुकानों पर संचालक/मालिक का नाम और पहचान प्रदर्शित की जाए ताकि तीर्थयात्रियों की आस्था की पवित्रता बनी रहे। एक ओर जहां योगी सरकार के इस आदेश के खिलाफ विपक्षी नेताओं ने सड़क से संसद तक इस मुद्दे का विरोध किया, तो वहीं अब इस आदेश पर सुप्रीम कोर्ट ने अंतरिम रोक लगा दी। विपक्षी दलों के नेताओं ने योगी सरकार पर भेदभाव फैलाने का आरोप लगाया। तो वहीं सुप्रीम कोर्ट ने इस विवाद पर सुनवाई करते हुए जो टिप्पणी की है, वो सरकार को आईना दिखाने वाला है।
सरकारी फरमान पर सुप्रीम कोर्ट ने लगाई अंतरिम रोक
उत्तर प्रदेश में कांवड़ यात्रा के रूट पर दुकानों के मालिकों के नेम प्लेट लगाने के मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा, तो योगी सरकार और उनके आदेश का समर्थन करने वालों को अदालत ने हाई वोल्टेज झटका दे दिया। जिस पर सुनवाई करते हुए अदालत ने उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और मध्य प्रदेश सरकार को नोटिस जारी किया। कोर्ट ने बड़ा आदेश जारी करते हुए ढाबे पर नेम प्लेट लगाने के सरकारी आदेश पर अंतरिम रोक लगा दी है। अदालत का कहना है कि दुकान मालिकों, उनके कर्मचारियों के नाम प्रदर्शित करने के लिए मजबूर नहीं किया जाना चाहिए। इस मामले में अगली सुनवाई शुक्रवार को होगी।
मोइत्रा ने आदेश के खिलाफ किया है अदालत का रुख
सुप्रीम कोर्ट ने कांवड़ यात्रा मार्ग पर स्थित भोजनालयों के मालिकों के नाम प्रदर्शित करने संबंधी उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड सरकार के निर्देश पर सोमवार को अंतरिम रोक लगा दी। इसके साथ ही न्यायालय ने उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के इन निर्देशों के खिलाफ दायर याचिकाओं पर उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड एवं मध्य प्रदेश सरकारों को नोटिस जारी किया। तृणमूल कांग्रेस की सांसद महुआ मोइत्रा ने उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड सरकारों के उस आदेश के खिलाफ उच्चतम न्यायालय का रुख किया है जिसमें कहा गया है कि कांवड़ यात्रा मार्ग पर स्थित भोजनालयों को अपने मालिकों के नाम प्रदर्शित करने होंगे।
सुनवाई के दौरान अधिवक्ता और पीठ ने क्या कहा?
मोइत्रा की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक सिंघवी ने न्यायमूर्ति ऋषिकेश रॉय और न्यायमूर्ति एस वी एन भट्टी की पीठ से कहा कि भोजनालयों के मालिकों के नाम प्रदर्शित करने के लिए ‘परोक्ष’ आदेश पारित किए गए हैं। इसके बाद पीठ ने सिंघवी से पूछा कि क्या उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड ने भोजनालय मालिकों के नाम प्रदर्शित करने के संबंध में कोई औपचारिक आदेश दिया है। पीठ ने कहा, 'क्या राज्य सरकारों ने कोई औपचारिक आदेश पारित किया है?' सिंघवी ने कहा कि भोजनालयों के मालिकों के नाम प्रदर्शित करने संबंधी उत्तर प्रदेश एवं उत्तराखंड का आदेश 'पहचान के आधार पर बहिष्कार' है और यह संविधान के खिलाफ है।
मोइत्रा ने अपनी याचिका में दोनों राज्य सरकारों द्वारा जारी आदेश पर रोक लगाए जाने का आग्रह करते हुए कहा कि ऐसे निर्देश समुदायों के बीच विवाद को बढ़ावा देते हैं। इसमें आरोप लगाया गया है कि संबंधित आदेश मुस्लिम दुकान मालिकों और कारीगरों के आर्थिक बहिष्कार तथा उनकी आजीविका को नुकसान पहुंचाने के उद्देश्य से जारी किया गया है।
कांग्रेस ने संसद में जोश-शोर से उठाया नेमप्लेट वाला मुद्दा
कांग्रेस सांसद धर्मवीर गांधी ने उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में कांवड़ यात्रा के मार्ग में पड़ने वाले भोजनालयों के मालिकों के नाम प्रदर्शित करने से जुड़े आदेश का विषय सोमवार को लोकसभा में उठाया और कहा कि देश में सौहार्द एवं एकता कायम रखने के लिए इस ‘‘विभाजनकारी आदेश’’ को वापस लिया जाना चाहिए। पंजाब के पटियाला से लोकसभा सदस्य गांधी ने सदन में शून्यकाल के दौरान यह विषय उठाया। उन्होंने कहा, 'कांवड़ यात्रा पर दुकानदारों के नाम लिखने का आदेश दिया गया है। यह एक विभाजनकारी कदम है। इससे समाज में तनाव पैदा होगा। यह असंवैधानिक और अलोकतांत्रिक है।' गांधी ने आरोप लगाया कि इस ‘विभाजनकारी एजेंडे’ को लागू करके भाजपा अपना राजनीतिक उद्देश्य पूरा करना चाहती है।
कांग्रेस का कहना था, 'सांप्रदायिक सौहार्द और एकता को कायम रखने के लिए इस आदेश को वापस लिया जाए।' कांग्रेस सांसद हिबी ईडेन ने पेपर लीक का मुद्दा सदन में उठाया और कहा कि सरकार को उच्च स्तरीय समिति गठित करनी चाहिए। इस पर लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने कहा कि इस मामले को उच्चतम न्यायालय देख रहा है और सीबीआई जांच कर रही है और फिर भी आप समिति की बात कर रहे हैं। शून्यकाल में कांग्रेस की वर्षा गायकवाड़ ने मराठी को शास्त्रीय भाषा का दर्जा दिए जाने की मांग सरकार से की।
राज्यसभा में चर्चा की मांग वाले विपक्ष के नोटिस को किया खारिज
वहीं राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ ने सोमवार को विपक्षी सदस्यों के वे नोटिस नियमों का हवाला देते हुए खारिज कर दिए जिनमें उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा कांवड़ यात्रा के मार्ग पर दुकानों को उनके मालिकों और कर्मचारियों के नाम प्रदर्शित करने के संबंध में दिए गए निर्देश को लेकर नियत कामकाज स्थगित कर चर्चा की मांग की गई थी। विपक्षी सांसदों ने नियम 267 के तहत नोटिस दिये थे जिनमें उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा कांवड़ यात्रा के मार्ग पर दुकानों को उनके मालिकों और कर्मचारियों के नाम प्रदर्शित करने के संबंध में दिए गए निर्देश को लेकर आज का नियत कामकाज स्थगित कर चर्चा की मांग की गई थी। धनखड़ ने कहा कि ये नोटिस 'न तो नियम 267 की आवश्यकताओं के अनुरूप हैं और न ही आसन की ओर से दिए गए निर्देशों के अनुरूप हैं... इसलिए इन्हें अस्वीकार स्वीकार किया जाता है।'
योगी सरकार ने कांवड़ यात्रा को लेकर लिया था ये फैसला
उत्तर प्रदेश सरकार ने 22 जुलाई से शुरू होने वाली कांवड़ यात्रा के सुचारू संचालन को सुनिश्चित करने के लिए कई उपायों की घोषणा की था। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने आदेश दिया था कि कांवड़ मार्गों पर खाद्य और पेय पदार्थों की दुकानों पर संचालक/मालिक का नाम और पहचान प्रदर्शित की जाए ताकि तीर्थयात्रियों की आस्था की पवित्रता बनी रहे। इसके अतिरिक्त, हलाल-प्रमाणित उत्पाद बेचने वालों के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी। हालांकि योगी सरकार को अब देश की सर्वोच्च अदालत ने करारा झटका दिया है।
मुजफ्फरनगर पुलिस ने इससे पहले लिया था ये फैसला
इससे पहले, मुजफ्फरनगर पुलिस ने कांवड़ मार्ग पर सभी भोजनालयों से अपने मालिकों और कर्मचारियों के नाम स्वेच्छा से प्रदर्शित करने का आग्रह किया था, साथ ही कहा कि इस आदेश का उद्देश्य किसी भी तरह का धार्मिक भेदभाव पैदा करना नहीं है, बल्कि केवल भक्तों की सुविधा के लिए है। सहारनपुर के डीआईजी अजय कुमार साहनी ने कहा था कि पहले भी ऐसे मामले सामने आए हैं, जब कांवड़ियों के बीच होटल और ढाबों पर खाने की रेट लिस्ट को लेकर बहस हुई है।
इसके अलावा, ऐसे भी मामले सामने आए हैं, जहां किसी होटल/ढाबे पर नॉनवेज मिलता है या किसी दूसरे समुदाय के व्यक्ति ने किसी और नाम से होटल/ढाबा खोल लिया है और इससे विवाद हुआ है। इसके मद्देनजर, यह निर्णय लिया गया कि दुकानों/होटल/ढाबों के मालिक/मालिक का नाम बोर्ड पर स्पष्ट रूप से लिखा जाएगा, रेट लिस्ट स्पष्ट रूप से लिखी जाएगी और काम करने वालों के नाम भी स्पष्ट रूप से लिखे जाएंगे, ताकि किसी भी तरह की कोई समस्या न हो...सभी से बातचीत की गई है और सभी होटल/ढाबे इस पर सहमत हो गए हैं...हमारे कांवड़ मार्ग के लिए यह निर्णय लिया गया है।
अब ये विवाद सुप्रीम कोर्ट के पाले में पहुंच गया है, सही और गलत का फैसला अदालत को करना है। लेकिन विपक्षी नेता बार-बार ये आरोप लगा रहे हैं कि इस तरह के फैसले सांप्रदायिक सौहार्द को चोट पहुंचाने का काम करते हैं। विपक्षी दलों ने ये भी आरोप लगाया है कि योगी सरकार ने आपसी मतभेद को बढ़ाने के लिए ये आदेश जारी किया है।
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