आजाद भारत के परमवीर: पाक सेना और कबाइलियों को खदेड़ा, टीथवाल पहाड़ी पर संभाला मोर्चा; उस हिंदुस्तानी योद्धा की कहानी

Param Vir Chakra Story: देश के महान सैनिकों ने जान हथेली पर लेकर सीमा की सुरक्षा की। तिरंगे की आन-बान-शान की खातिर अपने प्राण न्योछावर किए हैं, देश के नाम शहीद होने वाले सैनिकों के फेहरिस्त बहुत लंबी हैं। देश पर कुर्बान होने वाले रक्षकों को हर हिंदुस्तानी नमन करता है। आपको ऐसे ही एक परमवीर की कहानी से रूबरू करवाते हैं।

Param Vir Chakra Major Piru Singh Shekhawat Story

मेजर पीरू सिंह की वीरगाथा।

Major Piru Singh Ki Kahani: लंबे संघर्ष के बाद 15 अगस्त 1947 को अंग्रेजी हुकूमत से देश को आजादी मिली थी। लाखों कुर्बानियों के बाद मिली आजादी को 77 वर्ष पूरे हो चुके हैं। विकसित देशों की श्रेणी में शामिल होने के लिए भारत तेजी से आगे बढ़ रहा है और देश के दुश्मनों को खूब मिर्ची लगती है। आए दिन आतंकी हमले की खबरें सामने आती हैं, कई बार हमला करने की नाकाम कोशिशें होती हैं, लेकिन हिंदुस्तान के रक्षकों ने देश के आजादी पर आंच नहीं आने दिया। आपको इस लेख में स्वतंत्र भारत के परमवीर चक्र से सम्मानित हवलदार मेजर पीरूसिंह शेखावत की कहानी से रूबरू करवाते हैं।

आजादी के रक्षक मेजर पीरू सिंह की शौर्यगाथा

हवलदार मेजर पीरू सिंह शेखावत का नाम जहन में आते ही वीरता और जोश का भाव पैदा होता है। भारत के इस वीर सपूत ने भारत मां की सेवा में प्राण त्याग दिए थे। साल 1936 में पीरू सिंह सेना में भर्ती हुए थे। साल 1947 में भारत आजाद हुआ तब पाकिस्तान की नापाक निगाहें जम्मू-कश्मीर पर टिकी थी। 1947 में मौका देखकर पाकिस्तानी कबाइलियों और हमलावरों ने जम्मू कश्मीर पर हमला बोल दिया था।

जब टीथवाल पहाड़ी पर भारतीय सेना ने संभाला मोर्चा

साल 1948 की गर्मियों की बात है, जब पाक सेना और कबाइलियों ने मिलकर जम्मू-कश्मीर पर आक्रमण कर किशनगंगा नदी पर बने अग्र‍िम मोर्चे छोड़ने पर मजबूर किया, तो भारतीय सेना ने टीथवाल पहाड़ी पर मोर्चा संभाला। दुश्मन को खदेड़ने का जिम्मा राजपूताना राइफल्स की डी कंपनी को दिया गया था। इस कंपनी की अगुवाई पीरू सिंह शेखावत कर रहे थे। पाकिस्तान की फौज ने भारतीय सैनिकों पर भीषण हमला किया और 51 सैनिक शहीद हो गए।

राजा रामचंद्र की जय का नारा लगाते हुए आगे बढ़ते रहे

बहादुर पीरू सिंह ने अपने बचे साथियों के साथ राजा रामचंद्र की जय का उद्घोष करते हुए आगे कदम बढ़ाए। उनका पूरा शरीर गोलियों से घायल था, लेकिन वे दुश्मनों पर गोलियां बरसाते हुए आगे बढ़ते रहे। पीरू सिंह ने कई हमलावरों को मार गिराया था। तभी एक बम धमाके में उनका चेहरा जख्मी हो गया इसके बावजूद वे दुश्मन के दो बंकरों को ध्वस्त करने में सफल रहे। तीसरे बंकर पर उन्होंने बम फेंका ही था कि उनके सिर में एक गोली आकर लगी और पीरू सिंह मां भारती की गोद में शहीद हो गए। हवलदार मेजर पीरूसिंह शेखावत को मरणोपरांत उनकी शहादत और वीरता के लिए परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया था।

हवलदार मेजर पीरू सिंह शेखावत के बारे में जानिए

राजस्थान के झुंझुनू के बेरी गांव में 20 मई 1918 को पीरू सिंह का जन्म हुआ था। लाल सिंह के सात बच्चों में चार बेटियां और तीन बेटे थे, भाई-बहनों में पीरू सबसे छोटे थे। पढ़ाई लिखाई और स्कूल जाने में उनकी कोई खास दिलचस्पी नहीं थी, हालांकि उनकी ये चाहत जरूर थी कि वो सेना में भर्ती हो जाए। 18 साल की उम्र पूरी होने से पहले ही उन्होंने इसके लिए कोशिश की हालांकि वो विफल रहे और बाद में सेना में भर्ती हुए।

कैसे आगे बढ़ते चले गए पीरू सिंह शेखावत?

20 मई 1936 यही वो तारीख थी, जब 1 पंजाब रेजिमेंट की 10वीं बटालियन में पीरू सिंह को नामांकित किया गया था। ट्रेनिंग पूरी होने के बाद उन्हें उसी रेजिमेंट की 5वीं बटालियन में 1 मई, 1937 को तैनात किया गया। तीन साल बाद ही 7 अगस्त 1940 को उन्हें लांस नायक के पद पर प्रमोशन मिल गया। इसके अगले ही साल मार्च 1941 में नायक के तौर पर प्रमोट किया गया, 1942 में हवलदार और 1945 में मेजर के रूप में उन्हें प्रमोशन मिला। आजादी के बाद 1947 में उन्हें राजपूताना राइफल्स की छठी बटालियन में ट्रांसफर कर दिया गया। इसके अगले ही साल 1948 में उन्होंने पाकिस्तान के खिलाफ छिड़े जंग में अपनी शौर्यता का प्रदर्शन किया और देश की रक्षा करते हुए अपनी जान कुर्बान कर दिया।

कब किसे मिला परमवीर चक्र का सम्मान?

क्रमांकनामरेजीमेंटकब मिला सम्मान
1मेजर सोमनाथ शर्माचौथी बटालियन, कुमाऊं रेजीमेंमरणोपरांत
2लांस नायक करम सिंहपहली बटालियन, सिख रेजीमेंटजीवित रहते हुए
3सेकेंड लेफ़्टीनेंट राम राघोबा राणेइंडियन कार्प्स आफ इंजिनयर्सजीवित रहते हुए
4नायक यदुनाथ सिंहपहली बटालियन, गार्ड रेजीमेंटमरणोपरांत
5कंपनी हवलदार मेजर पीरू सिंहछठी बटालियन, राजपूताना राइफल्समरणोपरांत
6कैप्टन गुरबचन सिंह सलारियातीसरी बटालियन, 1 गोरखा राइफल्समरणोपरांत
7मेजर धनसिंह थापापहली बटालियन, 8 गोरखा राइफल्सजीवित रहते हुए
8सूबेदार जोगिंदर सिंहपहली बटालियन, सिख रेजीमेंटमरणोपरांत
9मेजर शैतान सिंह13वीं बटालियन, कुमाऊं रेजीमेंटमरणोपरांत
10कंपनी क्वार्टर मास्टर हवलदार अब्दुल हमीदचौथी बटालियन, बाम्बे ग्रेनेडियर्समरणोपरांत
11लेफ्टीनेंट कर्नल आर्देशिर तारापोरद पूना हार्समरणोपरांत
12लांस नायक अलबर्ट एक्का14वीं बटालियन, गार्ड ब्रिगेडमरणोपरांत
13फ्लाईंग आफिसर निर्मलजीत सिंह सेखों18वीं स्क्वैड्रन, भारतीय वायुसेनामरणोपरांत
14लेफ्टीनेंट अरुण क्षेत्रपालपूना हार्समरणोपरांत
15मेजर होशियार सिंहतीसरी बटालियन, बाम्बे ग्रेनेडियर्सजीवित रहते हुए
16नायब सूबेदार बन्ना सिंह8वीं बटालियन, जम्मू कश्मीर लाइट इनफेन्ट्रीजीवित रहते हुए
17मेजर रामास्वामी परमेश्वरन8वीं बटालियन, महार रेजीमेंटमरणोपरांत
18लेफ्टीनेंट मनोज कुमार पांडेप्रथम बटालियन, 11 गोरखा राइफल्समरणोपरांत
19ग्रेनेडियर योगेन्द्र सिंह यादव18वीं बटालियन, द ग्रेनेडियर्सजीवित रहते हुए
20राइफलमैन संजय कुमार13वीं बटालियन, जम्मू कश्मीर राइफल्सजीवित रहते हुए
21कैप्टन विक्रम बत्रा13वीं बटालियन, जम्मू कश्मीर राइफल्समरणोपरांत
आजाद भारत के रक्षकों की ही देन है कि आज देश का बच्चा-बच्चा अपने घरों में चैन और सुकून की नींद सो पाता है। परमवीर चक्र से सम्मानित वीर सैनिकों की शहादत की कहानी हर किसी का सीना गर्व से चौड़ा कर देता है। परमवीर चक्र, भारत का सर्वोच्च सैन्य सम्मान है। जिसका नाम सुनकर ही रगों में जोश और बलिदान की लहर दौड़ जाती है। ये सम्मान दुश्मनों के सामने शूरवीरता और त्याग के लिए हमारे रणबांकुरों को प्रदान किया जाता है। आजादी के बाद से अब तक भारत के 21 सैनिकों को उनकी वीरता और शहादत के लिए 'परमवीर' चक्र दिया जा चुका है।

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आयुष सिन्हा author

मैं टाइम्स नाउ नवभारत (Timesnowhindi.com) से जुड़ा हुआ हूं। कलम और कागज से लगाव तो बचपन से ही था, जो धीरे-धीरे आदत और जरूरत बन गई। मुख्य धारा की पत्रक...और देखें

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