दिल्ली से बेंगलुरु तक सियासी जोर-आजमाइश, NDA का कुनबा बढ़ाकर विपक्षी एकजुटता की काट निकालेगी BJP

NDA Meeting : एनडीए में शामिल होने से पहले चिराग पासवान ने सीटों की शर्त रख दी है लेकिन सूत्रों का मानना है कि उनके चाचा पशुपति के साथ भाजपा के नेता संपर्क में हैं और दोनों के बीच सुलह का रास्ता निकालने की कोशिश की जा रही है। एनडीए से पुराने साथियों को जोड़ने के साथ-साथ नए दलों को साथ लाने की कोशिश की जा रही है।

rahul gandhi

मंगलवार को दिल्ली में एनडीए की बैठक।

NDA Meeting : लोकसभा चुनाव 2024 से पहले राजनीतिक दल अपनी ताकत की नुमाइश की तैयारी में जुट गए हैं। विपक्ष के 24 दलों की दो दिन की बैठक सोमवार से बेंगलुरू में शुरू हो रही है तो भाजपा के नेतृत्व वाला राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) को नया आकार देने की कोशिश चल रही है। एनडीए की 18 जुलाई को दिल्ली में एक बड़ी बैठक होने जा रही है। पक्ष और विपक्ष का यह मेगा शो आने वाले दिनों के लिए एक बड़ा सियासी संकेत है। छोटे एवं क्षेत्रीय सियासी दल चुनाव में अपने नफे-नुकसान का आंकलन करते हुए भाजपा और कांग्रेस के साथ गठबंधन में जाने की तैयारी कर चुके हैं।

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छोटे दलों को अपने साथ जोड़ रही BJP

विपक्ष की लामबंदी को देखते हुए भाजपा भी अपना कुनबा बढ़ाने की रास्ते पर है। बिहार, यूपी, पंजाब, राजस्थान, महाराष्ट्र, और आंध्र प्रदेश में वह अपने लिए नए साथियों की तलाश कर चुकी है। 18 जुलाई की बैठक में एनडीए का नया चेहरा सामने आ सकता है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि भाजपा यह संकेत नहीं देना चाहती कि गठबंधन के इस दौर में वह कहीं से भी पीछे है। एनडीए से पुराने साथियों को जोड़ने के साथ-साथ नए दलों को साथ लाने की कोशिश की जा रही है।

चिराग पासवान भी मान जाएंगे?

बिहार में जीतन राम मांझी भाजपा के साथ आ गए हैं। बताया जा रहा है कि मुकेश सहनी, चिराग पासवान, पशुपति पारस, उपेंद्र कुशवाहा और नागमणि भाजपा के साथ होंगे। एनडीए में शामिल होने से पहले चिराग पासवान ने सीटों की शर्त रख दी है लेकिन सूत्रों का मानना है कि उनके चाचा पशुपति के साथ भाजपा के नेता संपर्क में हैं और दोनों के बीच सुलह का रास्ता निकालने की कोशिश की जा रही है।

बिहार में नागमणि भी आएंगे साथ!

कुशवाहा की गिनती कुशवाह जाति के सबसे बड़े नेता के रूप में की जाती है। मधुबनी, आरा, समस्तीपुर, रोहतास और बांका में उपेंद्र कुशवाहा की मजबूत पकड़ मानी जाती है। वहीं मांझी की पार्टी जमुई, औरंगाबाद और सासाराम में अच्छा दखल रखती है। 2014 के चुनाव में मांझी की पार्टी को 2 फीसदी और कुशवाहा की पार्टी राष्ट्रीय लोक जनता दल को 3 फीसदी वोट मिला था। नागमणि की पार्टी शोषित इंकलाब पार्टी की पकड़ जहानाबाद एवं झारखंड सीमा पर है। भाजपा की नजर निषाद समुदाय के नेता मुकेश सहनी पर भी है। सहनी की पकड़ मधुबनी, खगड़िया, मुजफ्फरपुर, दरभंगा और समस्तीपुर में है।

राजभर के आने से पूर्वांचल में मजबूत हुई भगवा पार्टी

यूपी में ओम प्रकाश राजभर के साथ आने से भाजपा पूर्वांचल में मजबूत हुई है। पिछले विधानसभा चुनाव में राजभर समाजवादी पार्टी के साथ थे लेकिन अब वह एनडीए का हिस्सा बन गए हैं। उत्तर प्रदेश में राजभर समाज की कुल आबादी लगभग 4 प्रतिशत है। कुछ जगह राजभर समाज 20 फीसदी के आसपास है तो कुछ क्षेत्रों में उनकी आबादी 10 प्रतिशत के करीब है। वाराणसी, चंदौली, गाजीपुर, जौनपुर, मऊ, बलिया, आजमगढ़, देवरिया, गोरखपुर, कुशीनगर, महाराजगंज, सिद्धार्थनगर, बस्ती, संत कबीर नगर, अयोध्या, अंबेडकरनगर, बहराइच और श्रावस्ती जिलों में राजभर समाज का प्रभाव माना जाता है। 2022 के विस चुनाव में राजभर के छह विधायक जीतकर विधानसभा पहुंचे। यूपी विस चुनाव में सुभासपा को 1.4 फीसदी वोट मिला। उत्तर प्रदेश में भाजपा के अन्य सहयोगी दलों की बात करें तो निषाद पार्टी और अपना दल (एस) पहले से ही भाजपा के साथ हैं।

पंजाब में ढींडसा पर नजर

पंजाब में शिरोमणि अकाली दल (शिअद) एनडीए में शामिल होगा कि नहीं इस पर थोड़ा संस्पेंस बना हुआ है। हालांकि,शिअद से अलग हुए सुखदेव ढींडसा 18 जुलाई की बैठक में शामिल हो सकते हैं। बता दें कि तीन कृषि कानूनों के विरोध में शिअद गठबंधन से अलग हो गई। सूत्रों की मानें तो पंजाब में ढींडसा भाजपा के साथ आ सकते हैं।

दक्षिण में भाजपा को मजबूत करेंगे पवन कल्याण

दक्षिण के सुपरस्टार और जन सेना पार्टी (जेएसपी) के अध्यक्ष पवन कल्याण 18 जुलाई को नई दिल्ली में होने वाली भाजपा के नेतृत्व एनडीए की बैठक में हिस्सा लेंगे। पवन कल्याण भाजपा के सहयोगी और टीडीपी के करीबी हैं। कर्नाटक विधानसभा चुनाव के बाद जेडी-एस के साथ भाजपा की नजदीकियां बढ़ी हैं लेकिन जेडी-एस एनडीए में शामिल होगी कि नहीं यह अभी साफ नहीं हो पाया है। शिवसेना शिंदे गुट भी इस बैठक में शामिल हो रहा है। कुल मिलाकर भाजपा यह संकेत देने की कोशिश कर रही है कि सियासी ताकत के प्रदर्शन में वह पीछे नहीं है। अपना कुनबा बढ़ाकर वह विपक्ष का सामना करने के लिए तैयार है।

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आलोक कुमार राव author

करीब 20 सालों से पत्रकारिता के पेशे में काम करते हुए प्रिंट, एजेंसी, टेलीविजन, डिजिटल के अनुभव ने समाचारों की एक अंतर्दृष्टि और समझ विकसित की है। इ...और देखें

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