केवल गरीब ही नहीं बनाती ज्यादा आबादी, भारत के लिए वरदान साबित हो सकती है जनसंख्या
India population : अभी की अगर बात करें तो भारत की आबादी करीब 1.4 अरब है। भारत की हिस्सेदारी दुनिया की 8 अरब की आबादी में 17.6 प्रतिशत है। संयुक्त राष्ट्र के वर्ल्ड पॉपुलेशन डैशबोर्ड के अनुसार 2023 मध्य तक के अनुमानों के अनुसार भारत की आबादी 1.4286 अरब हो गई है। यह चीन की आबादी 1.4257 अरब से कुछ ज्यादा है।
आबादी के मामले में भारत ने चीन को पीछे छोड़ दिया है।
India population : ब्रिटेन को पीछे छोड़ दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने वाले, दुनिया में सैन्य खर्च करने वाले तीसरे सबसे बड़े देश और सबसे तेजी से उभरती अर्थव्यवस्था वाले भारत ने एक नया और बड़ा कीर्तिमान रच दिया है। संयुक्त राष्ट्र के अनुमानों के मुताबिक आबादी में भारत ने चीन को पीछे छोड़ दिया है। ऐसा, तीन शताब्दियों में पहली बार हुआ है। इससे पहले आबादी की संख्या को लेकर भारत और चीन के बीच तीन बार उतार-चढ़ाव देखने को मिला है। टीओआई की रिपोर्ट के मुताबिक पिछली बार आबादी को लेकर दोनों देशों के स्थान में परिवर्तन 18वीं सदी में या इसके पहले भारत में जब मुगलों का शासन था, तब देखने को मिला। यही नहीं किंग वंश जब चीन की सीमाओं का विस्तार कर रहा था, उस दौरान भी दोनों देशों की आबादी की स्थिति में स्थान परिवर्तन देखने को मिला।
बढ़ती आबादी समस्याएं भी साथ लाती है
अभी की अगर बात करें तो भारत की आबादी करीब 1.4 अरब है। भारत की हिस्सेदारी दुनिया की 8 अरब की आबादी में 17.6 प्रतिशत है। संयुक्त राष्ट्र के वर्ल्ड पॉपुलेशन डैशबोर्ड के अनुसार 2023 मध्य तक के अनुमानों के अनुसार भारत की आबादी 1.4286 अरब हो गई है। यह चीन की आबादी 1.4257 अरब से कुछ ज्यादा है। जाहिर है कि जनसंख्या के मामले में भारत ने चीन को पीछे छोड़ दिया है। हालांकि, आबादी के मामले में भारत की यह कामयाबी अन्य क्षेत्रों में मिली सफलता के मुकाबले थोड़ी परेशान करने वाली भी है। क्योंकि बढ़ती जनसंख्या अपने साथ कई तरह के सवाल लेकर आती है और सीमित संसाधनों वाला देश भारत भी इससे अछूता नहीं है।
भारत में गिरी है जन्म दर
जनसंख्या बढ़ने पर कई तरह की समस्याएं होती हैं। सबसे बड़ी चुनौती समाज के लिए रोजगार, शिक्षा, स्वास्थ्य, घर सहित सभी बुनियादी सुविधाएं जुटाने की रहती है। बुनियादी सुविधाओं के मामले में चीन भारत से आगे है। लेकिन ज्यादा जनसंख्या होने के अपने फायदे भी होते हैं। यह जरूरी नहीं है कि ज्यादा आबादी देश के लिए केवल चुनौती एवं मुश्किलें ही पैदा करेगा। क्योंकि कुछ एक्सपर्ट का मानना है कि जनसंख्या का कम हो जाना आबादी बढ़ने की तुलना में मानवता के लिए ज्यादा बड़ी समस्या है। इसका मतलब यह भी नहीं है कि बढ़ती आबादी पर किसी तरह का रोक-टोक नहीं होना चाहिए। खास बात यह है कि भारत में जन्म दर कम हुई है और उम्मीद जताई गई है कि यह दर 2060 के दशक में अपने चरम पर होगी। गिरती जन्म दर की सबसे बड़ी समस्या चीन और जापान जैसे देशों में उभरकर सामने आई है।
अपने यहां अब ज्यादा बच्चे चाहता है चीन
अपने यहां आबादी पर नियंत्रण के लिए चीन ने 'वन चाइल्ड पालिसी' लागू की। इसका असर यह हुआ कि बाद के दशकों में उसका जन्म दर लगातार गिरता गया। अब हालत यह हो गई है कि चीन में युवाओं से ज्यादा बुजुर्ग हो गए हैं। बताया जाता है कि 2050 तक दुनिया में प्रौढ़ वर्ग की औसत उम्र जहां 35 साल होगी वहीं चीन में प्रौढ़ वर्ग की औसत उम्र 50 साल की होगी। जाहिर है कि इस चिंता को देखते हुए चीन को अपनी 'वन चाइल्ड पॉलिसी' छोड़नी पड़ी। अब वह अपने यहां ज्यादा बच्चे पैदा करने के लिए युवाओं को प्रोत्साहित कर रहा है। हालांकि, यह बात अलग है कि चीन सरकार के 'प्रलोभनों' पर उसके युवा आकर्षित नहीं हो रहे हैं। इसकी एक बड़ी वजह चीन में बढ़ती महंगाई है।
अर्थव्यवस्था के विकास के लिए जरूरी है युवा आबादी
चीन में युवाओं की घटती संख्या उसके लिए कई बड़ी चुनौतियां लेकर आई है। चीन के लिए सबसे बड़ी समस्या अपनी अर्थव्यवस्था की गति कायम रखने की है। सुपरपावर के रूप में अमेरिका को पीछे छोड़ने एवं अपनी भू-स्थानिक महात्वाकांक्षाओं को पूरा करने के लिए उसे अपनी युवा शक्ति पर निर्भर रहना है। जापान की अगर बात करें तो उसने हाल ही में यह स्वीकार किया है कि गिरती जन्मदर एवं बूढ़ी होती आबादी समाज के लिए एक बड़ा खतरा बन गई है। आबादी की इस समस्या से निपटने के लिए प्रधानमंत्री फूमियो किशिदा ने एक नई नीति लाने की घोषणा की।
बड़ी आबादी के साथ कई देशों ने तरक्की की
भारत की अगर बात करें तो दक्षिण एशिया के इस देश की आधी आबादी 30 साल की है। जानकार मानते हैं कि अर्थव्यवस्था सहित कई क्षेत्रों में चीन को पीछे छोड़ने में युवा आबादी भारत के लिए वरदान साबित होगी। ऐसी मान्यता है कि आबादी बढ़ने से देश गरीब हो जाते हैं लेकिन यह पूरी सच्चाई नहीं है। दुनिया में ऐसे कई देश हैं जिनकी आबादी तेजी से बढ़ी लेकिन साथ-साथ उनकी अर्थव्यवस्था भी बढ़ी। 1960 के दशक में दक्षिण कोरिया और ताइवान उन देशों में शामिल थे जिनकी आबादी तेजी से बढ़ी। ये दोनों देश गरीब नहीं है बल्कि आर्थिक रूप से संपन्न देश हैं। हां यह जरूरी है कि आबादी के साथ अर्थव्यवस्था का संतुलन बना रहे।
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