Defamation Case: राहुल गांधी के वकीलों ने 10 दिन का समय क्यों लिया, क्या दलीले दीं और सूरत कोर्ट ने क्या कहा? पढ़ें हर बात विस्तार से

Rahul Gandhi: मोदी सरनेम मामले में बार-बार यह सवाल उठ रहा है कि निचली अदालत के फैसले को चुनौती देने के लिए राहुल गांधी ने 10 दिन का समय क्यों लिया? यह सवाल जायज भी है। आइए पढ़ते हैं राहुल के वकीलों ने इन 10 दिनों में क्या तैयारिंया की...

राहुल गांधी

Rahul Gandhi News: सूरत के सत्र न्यायालय ने राहुल गांधी को 13 अप्रैल तक जमानत दे दी है। उन्होंने अवमानना के मामले में दोषी ठहराए जाने के निचली अदालत के फैसले को चुनौती दी थी। सेशन कोर्ट ने राहुल की याचिका को स्वीकार करते हुए शिकायतकर्ता पूर्णेश मोदी और गुजरात सरकार को नोटिस देकर 10 अप्रैल तक जवाब मांगा है।

अब सवाल ये कि राहुल गांधी के वकीलों की टीम ने निचली अदालत के फैसले को चुनौती देने में 10 दिन का लंबा समय क्यों लगा दिया? इसका जवाब सेशन कोर्ट में दाखिल की गई अपील की कॉपी है जिसमें कई कानूनी पहलुओं के आधार पर 2 साल की सजा के फैसले को गलत बताते हुए रद्द करने की मांग की गई है।

राहुल गांधी ने अपनी याचिका में किन वजहों से सूरत के चीफ ज्यूडिशियल मैजिस्ट्रेट के आदेश को गलत बताया है, आइए पढ़ते हैं-

1. बिना सबूतों के दोषी करार दिया गयायाचिका में कहा गया है कि अदालत ने राहुल गांधी को बिना किसी साक्ष्य के दोषी ठहरा दिया। कोर्ट का आदेश संभावनाओं, अनुमान, शंका और काल्पनिक आरोपों पर दिया गया है जिसका क्रिमिनल लॉ में कोई स्थान नहीं है। कानून के नजरिए में निचली कोर्ट का आदेश बिल्कुल गलत था। ट्रायल कोर्ट ने जिन दस्तावेजों और गवाहों को आधार माना वो मान्य नहीं थे।

2. शिकायतकर्ता पीड़ित पक्ष ही नहीं हैजिस पुर्णेश मोदी के मुकदमे के बाद राहुल को सजा हुई दरअसल वो उनके बयान से प्रभावित या पीड़ित नहीं माना जा सकता। ऐसे में उन्हें अवमानना की याचिका दाखिल करने का अधिकार भी कानूनी रूप से हासिल नहीं है। किसी के बयान से किसी दूसरे व्यक्ति को दुःख पहुंचे इसका मतलब ये नहीं कि अपराधिक अवमानना का मामला बनेगा। अगर शिकायतकर्ता के मुताबिक राहुल ने कथित तौर पर नरेंद्र मोदी का अपमान किया है तो भी वो पीड़ित पक्ष नहीं है। कानून साफ कहता कि पीड़ित पक्ष ही यानी कि इस मामले में नरेंद्र मोदी ही अपराधिक मुकदमा दर्ज कर सकते हैं।

3. राहुल ने पूरे मोदी समाज का नहीं किया अपमानट्रायल कोर्ट के आदेश के मुताबिक राहुल गांधी अपने भाषण में नरेंद्र मोदी, नीरव मोदी,ललित मोदी, मेहुल चौकसी, विजय माल्या पर आरोप लगाने के बाद रुके नहीं, ऐसे में उनका मकसद मोदी सरनेम वालों का अपमान करना था। लेकिन असल में सारे मोदी सरनेम वाले चोर हैं से मतलब नरेंद्र मोदी, नीरव मोदी और ललित मोदी से था। उनका मकसद मोदी सरनेम के अपमान का था ही नहीं।

4. मोदी समाज परिभाषित और निश्चित समूह नहींभारतीय दण्ड संहिता(IPC) की धारा 499 में किसी समूह से जुड़े व्यक्ति की अवमानना पर ही लागू होती है। शिकायतकर्ता मोदी सरनेम वाले 13 करोड़ लोगों के अवमानना की बात करते हैं। लेकिन सरकारी रिकॉर्ड में मोदी समाज का कहीं वर्णन नहीं है। बल्कि मोध वणिक समाज या मोध गाछी समाज का जिक्र जरूर आता है। ट्रायल कोर्ट अपने आदेश में ये तय करने में नाकाम रहा कि राहुल के भाषण में जिस मोदी का जिक्र किया गया वो मोदी समाज ही है और वाकई में मोदी समाज का अस्तित्व भी है।

5. शिकायकर्ता ने 1988 में लगाया मोदी सरनेमराहुल गांधी ने अपनी याचिका में ये तथ्य सामने रखा है कि साल 1988 में शिकायतकर्ता ने अपना सरनेम भुटवाला से मोदी किया है। शिकायतकर्ता पूर्णेश मोदी ने ऐसा कोई भी ओरिजनल डॉक्यूमेंट नहीं दिया जिससे ये साबित हो कि उनका सरनेम भुटवाला न होकर मोदी है। ऐसे में शिकायतकर्ता अवमानना का केस दायर ही नहीं कर सकते हैं। ऐसे में निचली अदालत का ये भी आधार कि मोदी सरनेम वाला कोई भी व्यक्ति मुकदमा दायर कर सकता है, तथ्यात्मक रूप से सही नहीं है।

6. व्हाट्सएप फॉरवर्ड पढ़कर दर्ज करा दिया मुकदमाशिकायतकर्ता ने कहा है कि उन्हे व्हाट्सएप पर एक अखबार की कटिंग की फोटो किसी अनजान शख्स ने फॉरवर्ड की। जिसमें कथित तौर पर मोदी समाज का अपमान किया गया था। जिसके आधार पर अगले दिन बिना किसी व्यक्तिगत अवमानना के सूरत से हजारों किलोमीटर दूर दिए गए बयान को बिना सुने मुकदमा दर्ज करा दिया। जिससे ये स्पष्ट है कि अपने पार्टी के लोगों के कहने पर वोटों के ध्रुवीकरण के इरादे से अवमानना की शिकायत दर्ज की गई।

7. क्षेत्राधिकार के कानून का नहीं हुआ पालनराहुल गांधी ने अपनी याचिका में कहा है कि सूरत की कोर्ट ने सीआरपीसी की धारा 202 का पालन नहीं किय, जो कहता है कि यदि कोई आरोपी मजिस्ट्रेट के अधिकार क्षेत्र से बाहर रहता है तो ऐसे में मजिस्ट्रेट के लिए सीआरपीसी की धारा 204 के तहत ट्रायल शुरू करने से पहले या तो खुद मामले की जांच करना चाहिए या जांच करने का निर्देश देना जरूरी है। लेकिन राहुल गांधी के मामले में ऐसा नहीं हुआ।

8. जनमत को नकारा गया, राजकोष पर दबाव बढ़ाट्रायल कोर्ट ने राहुल गांधी को सांसद होने की वजह से अवमानना के मामले में अधिकतम दो वर्ष की सजा सुना दी। लेकिन कोर्ट ने ये भी नहीं सोचा कि अधिकतम सजा देकर वो चुनाव में लोगों के जनमत को नकार रहे हैं। साथ ही उपचुनाव कराने की स्थिति में राजकोषीय खर्च भी बढ़ेगा। इसके अलावा अपराध की प्रकृति की तुलना में सजा की अवधि वो भी एक विपक्ष के सांसद के खिलाफ जिससे लोकतंत्र में सरकार की आलोचना की उम्मीद की जाती है, न्यासंगत नहीं है।

राहुल गांधी की किस मांग पर कोर्ट का क्या रुख रहा-

टाइम्स नाउ नवभारत के पास सूरत के सेशन कोर्ट के आदेश की कॉपी मौजूद है। दरअसल राहुल गांधी ने सूरत के मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट के दोषी करार दिए जाने के आदेश को रद्द किए जाने वाली याचिका के साथ दो अन्य एप्लीकेशन भी लगाए थे। पहले में दोषसिद्धि के रद्द होने तक कोर्ट से दोषी करार दिए जाने पर रोक(Stay of conviction) और दूसरी जमानत के लिए। कोर्ट के आदेश के मुताबिक

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