राहुल गांधी ने चाचा और दादी से भी नहीं लिया सबक, कहीं कांग्रेस को भारी न पड़ जाए ये गलती! पहली बार बदला इतिहास
Congress History: एक ओर राहुल गांधी अपनी भारत जोड़ो यात्रा में न्याय और निडरता की बात करते हैं, वहीं दूसरी ओर हार के चलते वो अमेठी लोकसभा सीट से चुनाव नहीं लड़ने का फैसला कर लेते हैं और रायबरेली जैसी सेफ सीट को चुनते हैं। क्या ये फैसला कांग्रेस के लिए भारी नुकसान पहुंचाने वाला है? समझिए सारा समीकरण।
क्या राहुल गांधी ने कर दी कोई बड़ी गलती?
Political Story: वो साल था 1977 देश में इमरजेंसी लगने के बाद पहली बार लोकसभा चुनाव हो रहा था। आजाद भारत के इतिहास में पहली दफा कांग्रेस पार्टी सत्ता से बेदखल होने जा रही थी और देश में पहला गैर कांग्रेसी प्रधामनमंत्री शपथ लेने वाला था। इंदिरा गांधी के इमरजेंसी के फैसले के खिलाफ पूरा देश एकजुट हो गया और जनता पार्टी ने इस चुनाव में कांग्रेस को धूल चटा दी। कांग्रेस विरोधी लहर में पार्टी के कई दिग्गज नेताओं को मुंह की खानी पड़ी। लेकिन गांधी परिवार के वो दो सदस्य जिनके हाथों में सरकार की बागडोर हुआ करती थी वो दोनों भी इस चुनाव में अपनी सीट गंवा देते हैं। एक तो देश की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी थीं और दूसरे थे उनके बेटे संजय गांधी...। उत्तर प्रदेश की रायबरेली और अमेठी लोकसभा सीट, जिसे कांग्रेस का गढ़ माना जाता रहा है वहां पहली बार कांग्रेस को हार मिली। इंदिरा और संजय को भले ही 1977 के चुनाव में हार झेलनी पड़ी थी, लेकिन दोनों ने हार नहीं मानी।
रायबरेली लोकसभा चुनाव 1977 के नतीजे
उम्मीदवार | कुल वोट | वोट फीसदी | पार्टी |
राजनारायण | 177719 | 51.9% | जनता पार्टी |
इंदिरा गांधी | 122517 | 35.7% | कांग्रेस |
उम्मीदवार | कुल वोट | वोट फीसदी | पार्टी |
रविंद्र प्रताप सिंह | 176410 | 58.3% | भारतीय लोक दल |
संजय गांधी | 100566 | 33.2% | कांग्रेस |
24 मार्च 1977... जब आजाद भारत में किसी गैर कांग्रेसी पार्टी की सरकार बनी। दिलचस्प बात ये है कि जिस मोरारजी देसाई को कांग्रेस में रहते हुए दो-दो बार कुर्सी नसीब नहीं हुई, वही देश के पहले गैर कांग्रेसी प्रधानमंत्री चुने गए। जनता पार्टी की सरकार में देसाई 28 जुलाई 1979 तक प्रधानमंत्री रहे, इसके बाद जनता पार्टी के ही चौधरी चरण सिंह 28 जुलाई, 1979 से 14 जनवरी, 1980 तक पीएम रहे। 1980 में एक बार फिर लोकसभा चुनाव हुए, तीन साल का ही वक्त बीता था और कांग्रेस ने दोबारा सत्ता में दमदार वापसी की। वो कांग्रेस जो 1977 के चुनाव में 154 सीटों पर सिमट गई थी, उसने तीन साल में ही दोगुना से अधिक 353 सीटों पर जीत हासिल कर दोबारा सरकार बनाई। इतना ही नहीं कांग्रेस पार्टी ने 1980 के चुनावों में अमेठी और रायबरेली सीटों पर वापस से अपना कब्जा जमाया।
Indira Gandhi Jawahar Lal Nehru (1)
इंदिरा और संजय ने हार के बावजूद उम्मीद नहीं छोड़ी
इंदिरा गांधी और संजय गांधी को भले ही 1977 के लोकसभा चुनाव में रायबरेली और अमेठी की जनता ने नकार दिया था, लेकिन दोनों ने मन से हार नहीं मानी। इंदिरा को दुनिया आयरल लेडी के नाम से जानती थी। उनके अडिग फैसले और निडरता से हर कोई वाकिफ रहा है। वो बार-बार ये संदेश देती थीं कि उन्हें कोई डरा और झुका नहीं सकता। यही वजह थी कि 1977 में रायबरेली से हार मिलने के बावजूद वो 1980 के लोकसभा चुनाव में एक बार फिर इस सीट से चुनाव लड़ने पहुंच गईं। उन्होंने रायबरेली सीट जीतकर जनता पार्टी से बदला लिया और ये बताया कि वो डरती नहीं हैं।
उम्मीदवार | कुल वोट | वोट फीसदी | पार्टी |
इंदिरा गांधी | 223903 | 56.5% | कांग्रेस (आई) |
राजमाता विजया राजे सिंधिया | 50249 | 12.7% | जनता पार्टी |
उन्होंने जनता पार्टी की उम्मीदवार राजमाता विजया राजे सिंधिया को एक लाख 73 हजार से अधिक वोटों से धूल चटा दी। हालांकि 1980 के चुनाव इंदिरा ने तेलंगाना (उस वक्त के आंध्र प्रदेश) के मेदक सीट से भी चुनाव लड़ा था। रायबरेली में जनता पार्टी से अपना बदला लेकर उन्होंने ये सीट छोड़ दी और मेदक सीट को चुना। इसके बाद रायबरेली सीट पर उपचुनाव हुए, जिसमें कांग्रेस के अरुण नेहरू ने जनेश्वर मिश्र को करारी शिकस्त दी। इसके बाद रायबरेली में गांधी परिवार के किसी सदस्य की दोबारा हार नहीं हुई, हालांकि 1996 और 1998 के लोकसभा चुनाव में इस सीट पर भाजपा के अशोक सिंह ने कांग्रेस को हार झेलने पर मजबूर कर दिया था। 2004 से अब तक इस सीट पर इंदिरा की बहु सोनिया गांधी सांसद रहीं, उन्होंने इस बार ये सीट छोड़ दी और राजस्थान से राज्यसभा सांसद बन गईं।
Rajiv Indira Sanjay
संजय गांधी ने भी अमेठी सीट पर दोबारा जमाया कब्जा
इंदिरा गांधी के बेटे संजय गांधी भी आसानी से हार मानने वाले नेताओं में से नहीं थे, भले की इमरजेंसी के बाद हुए चुनाव में अमेठी की जनता ने उन्हें करारा जवाब दिया था, लेकिन संजय ने तीन सालों तक अमेठी में काम किया और दोबारा वहां से चुनाव लड़ने पहुंच गए। और उन्होंने अमेठी सीट पर दोबारा कांग्रेस का परचम फहराया।
उम्मीदवार | कुल वोट | वोट फीसदी | पार्टी |
संजय गांधी | 186990 | 57.11% | कांग्रेस |
रविंद्र प्रताप सिंह | 58445 | 17.85% | जनता पार्टी |
राहुल गांधी ने अपने चाचा और दादी से क्यों नहीं ली सबक?
राहुल गांधी ने शायद अपने चाचा संजय गांधी और दादी इंदिरा गांधी से जरा भी सीख नहीं ली, तभी तो उन्होंने अमेठी सीट छोड़कर अपने विरोधियों को उन्हें भगोड़ा और डरपोक साबित करने का मौका दे दिया। क्या वाकई राहुल गांधी को अमेठी में हार का डर सता रहा था, इसीलिए वो सेफ सीट मानी जाने वाली रायबरेली से चुनाव लड़ने पहुंच गए हैं? ऐसे सवाल उठने तो लाजमी हैं, क्योंकि पहली बार कांग्रेस पार्टी के इतिहास में ऐसा हुआ है कि यदि कोई गांधी परिवार का सदस्य किसी सीट से चुनाव हार गया हो और उसके अगले चुनाव में वो उस सीट को छोड़कर कहीं और से चुनाव लड़ रहा है।
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