पुरी यात्रा: स्क्रू जैक की मदद से भारी-भरकम रथ को बढ़ाया जाता है आगे, रेलवे के 40 इंजीनियरों की टीम करती है काम
रेलवे की 40 सदस्यीय टीम में तकनीशियन, एक मैकेनिकल इंजीनियर, एक सीनियर सेक्शन इंजीनियर और दो सहायक सेक्शन इंजीनियर शामिल होते हैं।
puri rath yatra
Jagannath Rath Yatra: भारतीय रेलवे (Indian Railways) को भारत की जीवन रेखा कहा जाता है। यह रोजाना 1.3 करोड़ से अधिक यात्रियों को ले जाती है। लेकिन कम ही लोग ओडिशा के लोकप्रिय जगन्नाथ रथ यात्रा उत्सव के दौरान रथों के सुचारू संचालन में इसकी दशकों पुरानी भूमिका के बारे में जानते हैं। 1964 से रेलवे के इंजीनियरिंग विभाग और ईस्ट कोस्ट रेलवे के कर्मचारी विशेष स्क्रू जैक का इस्तेमाल कर यात्रा के तीन रथों को जुलूस मार्ग पर लाइन में लगाने और शिफ्ट करने में शामिल रहे हैं।
ईस्ट कोस्ट रेलवे के 40 इंजीनियरों की टीम का योगदान
जुलूस के दौरान तीन हिंदू देवी-देवताओं जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा को पुरी के जगन्नाथ मंदिर से गुंडिचा मंदिर तक और वापस मंदिर तक विशाल सजे हुए रथों में खींचा जाता है। ईस्ट कोस्ट रेलवे के अधिकारियों के अनुसार, लगभग 40 इंजीनियरों की एक टीम तीनों रथों को एक लाइन में खींचने और उनके रास्ते में आने वाली किसी भी बाधा को हटाने के लिए जुलूस में शामिल होती है। ये टीम निरीक्षण, संरेखण, इसकी स्थिति और रथों के बीच सही अंतर बनाए रखने के लिए भी जिम्मेदार होते हैं।
स्टीयरिंग जैक नहीं, स्क्रू जैक का होता है इस्तेमाल
रेलवे अधिकारियों के मुताबिक, लकड़ी के रथों में स्टीयरिंग जैसी आधुनिक मशीनरी नहीं होती हैं। इसमें ट्रैवर्सिंग स्क्रू जैक का उपयोग किया जाता है। रथों को एक पंक्ति में खींचने के लिए लगभग 40 लोग शामिल होते हैं। इन रथों को पीछे नहीं हटना चाहिए और इसे रोकना ही इंजीनियरों की जिम्मेदारी होती है। रेलवे की 40 सदस्यीय टीम में तकनीशियन, एक मैकेनिकल इंजीनियर, एक सीनियर सेक्शन इंजीनियर और दो सहायक सेक्शन इंजीनियर शामिल होते हैं।
11 दिनों के दौरान 40 सदस्यीय टीम पूरी तरह से शाकाहारी भोजन पर रहती है और स्क्रू जैक तैयार करने और रथों को सीधा करने के लिए रणनीति तैयार करने के लिए एक महीने पहले से तैयारी करती है। इस पूरी कवायद के बाद ही रथयात्रा सुचारू रूप से पूरी हो पाती है।
कैसे हुई शुरुआत
1960 के दशक की शुरुआत में रथ यात्रा के दौरान एक बिजली का खंभा रथ से उलझ गया था, इसके चलते इसके पहियों को नुकसान पहुंचा था। इस हादसे के बाद रथ यात्रा में मौजूद वरिष्ठ अधिकारियों को समझ ही नहीं आया कि आगे क्या करना है। संयोग से उस वक्त वहां महोत्सव को देखने के लिए एक रेलवे अधिकारी मौजूद थे। उन्होंने इसे समझा और रथ को पहिए से उतरने के लिए तरकीब ईजाद की। उन्होंने स्क्रू जैक का इस्तेमाल करके हालात को काबू में किया। इसके बाद से ही हर साल ईस्ट कोस्ट रेलवे रथ यात्रा में अपनी सेवा दे रहा है।
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