'एनिमल' के दौर में इमरोज़ होने का मतलब!
साहिर लुधियानवी हिंदी सिनेमा के सबसे बड़े गीतकार थे। अमृता प्रीतम देश की विख्यात लेखिका थीं। इमरोज़ भी शानदार पेंटर थे लेकिन उनकी पहचान मोहब्बत तक महदूद कर दी गई।
'एनिमल' के दौर में इमरोज़ होने का मतलब!
मोहब्बत की कहानियां युगों तक ज़िंदा रहती हैं। किरदार विदा हो जाते हैं बच जाती हैं कहानियां। प्रेम कहानी का एक ऐसा किरदार आज विदा हो गया है जो जीते जी भी किवदंती ही था। वो मुस्व्विर था। उसके हाथ से कैनवास पर मज़ंर ज़िंदा हो जाते थे। साहिर लुधियानवी और अमृता प्रीतम की प्रेम कहानी के तीसरे किरदार के तौर पर दुनिया ने इमरोज को मशहूर किया। इंद्रजीत ने अपना नाम अमृता से मिलने के बाद इमरोज़ रखा था। कहीं सुना इम रोज़ दरअसल आई एम रोज़ था। गुलाब सा ही सुर्ख रंग था इमरोज की मोहब्बत का। इमरोज की पीठ पर साहिर का नाम लिखती अमृता की कहानियां कितनों ने बांची। प्रेम कहानी में सब नायक होना चाहते हैं। सब साहिर होना चाहते हैं या अमृता होना चाहते हैं। इमरोज़ कौन होना चाहता है। इमरोज कोई हो भी नहीं सकता। वो भी उस दौर में जब एनिमल होना ब्लॉकबस्टर होने की गारंटी है। इसलिए इमरोज़ का जाना मोहब्बत की उस कहानी के आखिरी किरदार का विदा होना है जो अपनी लीग में अकेला है। ये कहानी इसलिए छुट्टी वाले दिन दफ्तर आ कर सुना रहा हूं। इमरोज़ की कहानी। ताकि हमारे अंदर का एनिमल नहीं हमारे अंदर का बुद्ध जागे। इमरोज़ इश्क के बुद्ध हैं कैसे आगे बताऊंगा।। लेकिन इमरोज़ उस प्रेम कहानी के तीसरे किरदार थे जिसके केंद्र में अमृता और साहिर थे। अमृता जो साहिर पर दिल ओ जान से निसार थीं। और साहिर जो मायानगरी के चमकते सितारे थे कहीं और मुब्तला थे। एक फिल्मी गीत में साहिर लिखते हैं
: ज़िन्दगी सिर्फ़ मुहब्बत नहीं कुछ और भी है
ज़ुल्फ़-ओ-रुख़सार की जन्नत नहीं कुछ और भी है
भूख और प्यास की मारी हुई इस दुनिया में
इश्क़ ही एक हक़ीकत नहीं कुछ और भी है
तुम अगर आँख चुराओ तो ये हक़ है तुमको
मैंने तुमसे ही नहीं सबसे मुहब्बत की है
अमृता ने अपनी किताब रसीदी टिकट में साहिर से अपने इश्क का इज़हार कई किस्सों में किया है। इमरोज ने इस किताब के लिए रेखाचित्र बनाए थे। इमरोज की चित्रकारी की कायल अमृता भी थीं। लेकिन वो प्रेम साहिर से करती थीं। इमरोज़ 40 साल तक अमृता के साथ रहे। अमृता के आखिरी वक्त तक और अपने आखिरी वक्त तक भी। जैसे इमरोज़ के लिए अहमद फराज़ ने शेर कहा हो
दिल भी पागल है उस शख्स से बावस्ता है
जो किसी और का होने दे न अपना रखे
साहिर लुधियानवी हिंदी सिनेमा के सबसे बड़े गीतकार थे। अमृता प्रीतम देश की विख्यात लेखिका थीं। इमरोज़ भी शानदार पेंटर थे लेकिन उनकी पहचान मोहब्बत तक महदूद कर दी गई। जबकि इमरोज की कूची से कई प्रसिद्ध रचनाएं, किताबें समृद्ध हुई हैं। साहिर को विदा हुए सालों बात गए। अमृता को गए भी लगभग दो दशक हो गए। इमरोज़ अकेले रहते थे। ऐसा देखने वाले कहते थे। इमरोज़ के साथ अमृता हमेशा रहीं ऐसा उन्हें जानने वाले जानते हैं। इमरोज़ ने इस मजमून पर एक कविता लिखी
लोग कह रहे हैं उसके जाने के बाद
तू उदास और अकेला रह गया होगा
मुझे कभी वक़्त ही नही मिला
ना उदास होने का ना अकेले होने का ..
. वह अब भी मिलती है
सुबह बन कर शाम बन कर
और अक्सर नज़मे बन कर
हम कितनी देर एक दूजे को देखते रहे हैं
और मिलकर अपनी अपनी नज़मे ज़िंदगी को सुनाते रहे हैं
ये था इमरोज़ का जवाब।
रांझा रांझा करते करते आपे रांझा होई की तर्ज पर इमरोज़ मोहब्बत को जीते जीते मोहब्बत ही हो गए थे। आखिरी वक्त तक रचनाशील। इमरोज बतौर कवि भी खूब सराहे गए। अमृता को समर्पित कई कविताएं उन्होंने रची। कभी उनकी ज़ुबान से किसी ने कुछ असुंदर या असंगत नहीं सुना। 97 साल तक इस दुनिया को खूबसूरत बनाते रहे इमरोज़ से जो भी मिला उनकी मोहब्बत में गिरफ्तार हो गया।
अमृता की शादी किसी प्रीतम सिंह से हुई थी। उन्होंने मोहब्बत साहिर से की। साहिर की ज़िंदगी के अपने अलग मसअले थे। इस बीच इमरोज़ कहां थे? वो अमृता से प्रेम करते थे। वो अमृता के साथ थे। हर वक्त। बिना किसी अपेक्षा के। प्रेम के बदले प्रेम तक की अपेक्षा के बिना। बुद्ध ने कहा है कि अपेक्षा ही दुख का मूल है। मगर जो मोहब्बत शुरू ही मोह मोह के धागों के जुड़ने से होती है उसमें अपेक्षाएं तज़ पाना कहां संभव है। इसलिए इमरोज़ एक असंभव सी प्रेम कहानी के इकलौते नायक थे। उनका जाना मोहब्बत की उस परंपरा का अंत है जो उनसे शुरू होती है और शायद उन पर ही खत्म हो जाएगी।
(स्क्रिप्ट एवं वीडियो - आदर्श शुक्ला)
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