क्या अजित पवार को ले डूबेगा उनका ओवर कॉन्फिडेंस? बार-बार कर रहे हैं एक ही गलती

Chacha vs Bhatija: अजित पवार इन दिनों ओवर कॉन्फिडेंस में डूबे नजर आ रहे हैं। बार-बार उनके हाव भाव ये इशारा कर रहे हैं कि अब वो अपने चाचा यानी शरद पवार का लोड नहीं लेते हैं, तभी तो वो अजब-गजब बयान दे रहे हैं। उनकी ये गलती कहीं उन पर ही भारी न पड़ जाए। आपको समझाते हैं सारा समीकरण।

Sharad Pawar vs Ajit Pawar Overconfidence

बढ़ सकती है अजित पवार की टेंशन।

Maharashtra Politics: बड़े से बड़े नेताओं की नैय्या डुबोने के लिए उनकी जुबान ही काफी होती है। एक झटके से गरीबी भले ही दूर नहीं हो पाती है, लेकिन किसी भी नेता की सियासत का बंटाधार करने के लिए एक झटका ही काफी है। और जब बात महाराष्ट्र की सियासत की हो रही हो तो न जाने कितनी बार इसके उदाहरण पेश किए जा चुके हैं। फिलहाल यहां उस भतीजे की बात जिसने अपने चाचा को ऐसा गच्चा दिया था, जिसके बाद से सूबे के सियासी समीकरण ही बदल गए थे।

अजित पवार को भुगतना पड़ सकता है खामियाजा

कभी एक दूसरे पर जान न्यौछावर करने वाले अजित पवार और उनके चाचा शरद पवार की लड़ाई किसी से नहीं छिपी है। लेकिन जैसे-जैसे विधानसभा चुनाव नजदीक आ रहे हैं, अजित पवार अति उत्साहित नजर आ रहे हैं। हाल ही में हुए लोकसभा चुनाव में मिली करारी शिकस्त के बावजूद वो अपने ही धुन में डूबे हुए हैं। वो ऐसी गलती कर रहे हैं, जिसका खामियाजा उन्हें आगामी महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में भुगतना पड़ सकता है। आखिर क्या है वो गलती, उसे तफसील से समझाते हैं।

ओवर कॉन्फिडेंस से डूब सकती है अजित की नैय्या

राजनीति में एक बात तो बहुत मशहूर है, यहां कोई किसी का सगा नहीं हो सकता है। सत्ता और सिंहासन की खातिर अपने ही अपनों का अंत करने तक के लिए तैयार हो जाते हैं। मतलब स्पष्ट है, यहां कोई किसी का अपना नहीं होता है। कहते हैं कि एक सफल राजनेता की सबसे बड़ी खूबी यही है कि वो अपने आंख और कान को हमेशा चौकन्ना रखता है, लेकिन जब किसी नेता के सिर पर ओवर कॉन्फिडेंस (अति आत्मविश्वास) सवार हो जाता है, तो अक्सर वो अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी मारने के लिए आतुर हो जाता है। इन दिनों अजित पवार के हाव भाव से कुछ ऐसा ही प्रतीत हो रहा है।

शरद पवार की पूरी पार्टी तोड़ने का बुन रहे थे ख्वाब?

एक तरफ राज्य में होने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर सियासी उठापटक और तैयारियों का दौर तेज हो चुका है, तो वहीं दूसरी ओर महाराष्ट्र के उप-मुख्यमंत्री अजित पवार बार-बार ऐसे बयान दे रहे हैं, जिससे ये समझ आ रहा है कि वो अपने चाचा शरद पवार को काफी हल्के में ले रहे हैं। तभी को उन्होंने ये तक बयान दे दिया कि 'अगर भारतीय जनता पार्टी और शिवसेना ने उन्हें मुख्यमंत्री पद की पेशकश की होती तो वह पूरी राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) को अपने साथ ले आते।' भले ही उनका अंदाज मजाकिया रहा हो, लेकिन चुनावी माहौल में उनके ऐसे बयान पर सवाल उठना लाजमी है।

क्या शरद पवार को हल्के में लेने लगे हैं अजित पवार?

महाराष्ट्र की सियासत के सबसे बड़े धुरंधर शरद पवार को भला अजित पवार इतने हल्के में कैसे ले सकते हैं कि वो ये ख्वाब सजाने लगे कि वो पूरी पार्टी अपने साथ लाने की क्षमता रखने हैं। हाल ही में हुए लोकसभा चुनाव के नतीजों में सबने देखा कि चाचा ने भतीजे को बुरी तरह पटखनी दी। इसके बावजूद अजित अपने चाचा की ताकत से अंजान हैं, तो ये कहीं न कहीं ओवर कॉन्फिडेंस ही है। लेकिन क्या आप ये जानते हैं कि अति आत्मविश्वासी होने के क्या नुकसान हो सकते हैं।

ओवर कॉन्फिडेंस से अजित पवार को क्या होगा नुकसान?

जब भी कोई व्यक्ति अति आत्मविश्वास (ओवर कॉन्फिडेंस) में जीना शुरू कर देता है तो उसे खुद के आगे सब सूक्ष्म दिखाई देने लगते हैं। वो दूसरों की राय को हल्के में लेने लगता है और खुद को ही सबसे बेहतर समझने लगता है। उसे दूसरों की प्रतिक्रिया का मोल समझ नहीं आता है। ऐसे में वो बुद्धि से कम काम लेता है और कई अहंकारी फैसले लेने लगता है। अजित पवार को शायद इस वक्त सोच-समझकर कदम बढ़ाना चाहिए, कुछ नहीं तो कम से कम उस कहावत से सीख लेनी चाहिए- 'दूध का जला छाछ भी फूंक-फूंक कर पीता है', लेकिन अजित को लोकसभा चुनाव से कुछ समझ नहीं आया, यदि विधानसभा चुनाव में भी उन्हें वैसे ही नतीजे झेलने पड़ते हैं तो उनकी आगे की राह मुसीबतों से भर सकती है। सवाल ये है कि क्या अजित पवार अपने बुद्धि या विवेक से काम नहीं ले रहे हैं?

चाणक्य ने बताई है बुद्धि से जुड़ी ये जरूरी बात

एक श्लोक में चाणक्य ने विनाशकाले विपरीतबुद्धि का जिक्र किया है। उन्होंने ये समझाने की कोशिश की है कि किन हालातों में किसी व्यक्ति की बुद्धि उनका साथ छोड़ देती है। उन्होंने लिखा,
न निर्मिता केन न दृष्टपूर्वा न श्रूयते हेममयी कुरङ्गी ।
तथाऽपि तृष्णा रघुनन्दनस्य विनाशकाले विपरीतबुद्धिः ।।
जब कभी चारों ओर से जीवन संकट में घिर हो, यानी विनाश के वक्त मनुष्य का विवेक यानी बुद्धि भी उसका साथ छोड़ देती है। विपरीत हालातों में महान से महान व्यक्ति भी अपनी बुद्धिमानी का प्रयोग नहीं कर पाता है और वह अपना ही नुकसान कर बैठता है। हालांकि राजनीति में कभी भी कुछ भी हो सकता है। शायद अजित पवार का ये ओवर कॉन्फिडेंस उनके लिए आगामी विधानसभा चुनाव में संजीवनी बूटी भी साबित हो सकता है।

जब चाचा ने भतीजे को बताया कि असली एनसीपी कौन

राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) में पिछले साल हुई टूट के बावजूद महाराष्ट्र में हुए लोकसभा चुनाव में शरद पवार ने अग्रिम मोर्चे पर कमान संभाली और पार्टी को आठ सीटों पर जीत दिलाते हुए राज्य की राजनीति में अपने कद को और ऊंचा किया। उन्होंने अपने भतीजे को न सिर्फ सबक सिखाया, बल्कि ये भी बताया कि जिन्होंने अपनी उंगली पकड़ाकर राजनीति की बारीकियां सिखाई, उससे पंगा लोगे तो हश्र बुरा ही होगा।
शरद की अगुवाई वाली राकांपा (एसपी) ने विपक्षी गठबंधन ‘इंडियन नेशनल डेवलपमेंटल इंक्लूसिव अलायंस’ (इंडिया) के साझेदारों के साथ बनी सहमति के तहत राज्य में 10 सीटों पर लोकसभा चुनाव लड़ा था और उनमें से आठ पर जीत हासिल की। यानी शरद की पार्टी का स्ट्राइक रेट 80 फीसदी रहा। इस जीत के जरिए चाचा ने ये साफ कर दिया कि आखिर कौन असली एनसीपी है।

अगर चाचा को कम आंकते हैं अजित तो लगेगा झटका

अजित पवार ने न सिर्फ शरद पवार की पार्टी में दो फाड़ किया, बल्कि उनके ज्यादातर विधायक और सांसद को तोड़कर अपने साथ मिला लिया था। चाचा पूरी तरह भौचक्के रह गए थे, शरद पवार के करीबी प्रफुल्ल पटेल और छगन भुजबल जैसे कई नेताओं ने पाला बदल लिया था। हालांकि अब समय बदल चुका है, चाचा को हल्के में लेना भतीजे को लिए भारी नुकसान झेलने पर मजबूर कर सकता है। इसकी झलक लोकसभा चुनाव में दिख चुका है। विधानसभा चुनाव में भी फैसला जनता को करना है, यहां विधायक के पाला बदलने से सरकार बनने बिगड़ने की संभावनाएं नहीं होंगी। यहां महाराष्ट्र के लोगों का वोट ये फैसला करेगा कि सरकार किसकी बनेगी।
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आयुष सिन्हा author

मैं टाइम्स नाउ नवभारत (Timesnowhindi.com) से जुड़ा हुआ हूं। कलम और कागज से लगाव तो बचपन से ही था, जो धीरे-धीरे आदत और जरूरत बन गई। मुख्य धारा की पत्रक...और देखें

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