एक-दो नहीं, चार बार प्रधानमंत्री बनने से चूके थे 'बाबूजी'... इंदिरा की हार के बाद भी अधूरी रह गई थी इस नेता की ख्वाहिश
Jagjivan Ram Story: जब देश में आपातकाल लागू हुआ तो इंदिरा गांधी ने जगजीवन राम से कहा था कि यदि उन्हें इस्तीफा देना पड़ा तो अगले प्रधानमंत्री वो (जगजीवन राम) बनेंगे, लेकिन ना तो ऐसी नौबत आई और ना ही जगजीवन राम पीएम बन सके। दलितों की आवाज बुलंद करने वाले जगजीवन राम 4-4 बार पीएम बनते-बनते रह गए।
जगजीवन राम का सियासी किस्सा।
Siyasi Kissa: 'पीएम इन वेटिंग' का जिक्र होते ही आज के दौर में लाल कृष्ण आडवाणी का नाम हर किसी के जेहन में सबसे पहले आ जाता है। आडवाणी ऐसे पहले नेता नहीं हैं, उनसे पहले भी सियासत में एक ऐसा चेहरा रहा है जो एक या दो बार नहीं, बल्कि चार-चार बार प्रधानमंत्री बनते बनते रह गया। वो देश के उप प्रधानमंत्री भी रहे हैं, नाम है- जगजीवन राम... उन्हें लोग बाबू जी कहकर पुकारा जाता रहा है।
इंदिरा गांधी की सरकार में रहे देश के रक्षा मंत्री
जिस वक्त भारत-पाकिस्तान के बीच 1971 का युद्ध चल रहा था, उस समय देश की कमान भले ही इंदिरा गांधी के हाथों में थी, लेकिन भारत के रक्षा मंत्री जगजीवन राम ही थे। वैसे तो बाबू जगजीवन राम से जुड़े अनगिनत किस्से मशहूर हैं, लेकिन क्या आप जानते हैं कि ये वही नेता हैं जो एक या दो बार नहीं, बल्कि चार-चार बार देश के पीएम बनने से चूक गए थे। कभी इंदिरा गांधी के सबसे करीबी नेताओं में गिने जाने वाले जगजीवन ने आपातकाल के वक्त ही इंदिरा की खिलाफत कर दी थी और कांग्रेस छोड़ अपनी पार्टी बना ली, लेकिन जब 1977 में लोकसभा चुनाव हुए तो जय प्रकाश नारायण के कहने पर उन्होंने जनता पार्टी से चुनाव लड़ा।
कब-कब प्रधानमंत्री बनने से चूके जगजीवन राम?
पहला मौका- इंदिरा गांधी के करीबी नेताओं में गिने जाने वाले बाबू जगजीवन राम को इंदिरा के बाद देश का अगला प्रधानमंत्री माना जा रहा था। बताया जाता है कि इंदिरा ने जगजीवन को ये भरोसा दिलाया था कि यदि इमरजेंसी के दौरान उन्हें अपने पद से इस्तीफा देना पड़ेगा तो बतौन प्रधानमंत्री उनकी ही ताजपोशी होगी। इंदिरा गांधी ने अपने पद से इस्तीफा देने पर जगजीवन राम को पीएम बनाने की बात तक कही थी, लेकिन ना तो ऐसी नौबत आई और ना ही जगजीवन राम प्रधानमंत्री बन सके। इसी के बाद उन्होंने कांग्रेस से दूरी बना ली। ये पहला मौका था जब वे पीएम बनते बनते रह गए।
इंदिरा गांधी के साथ जगजीवन राम।
दूसरा मौका- इंदिरा गांधी ने 25 जून 1975 को देश में आपातकाल की घोषणा की थी, जो करीब 21 महीने यानी 21 मार्च 1977 तक लागू रहा। भारत में आपातकाल के बाद इंदिरा और कांग्रेस दोनों का ही जमकर विरोध हुआ। इस बीच 1977 में देश की जनता ने इंदिरा से नाराजगी जाहिर कर दी, जिसका जवाब चुनावी नतीजों से मिल गया। लोकसभा चुनाव 1977 में जनता पार्टी ने कांग्रेस को तगड़ी पटखनी दी। यही वो वक्त था जब एक बार फिर जगजीवन राम को प्रधानमंत्री बनाने की चर्चा तेज हो गई थी। हालांकि मोरारजी देसाई और जय प्रकाश नारायण की नजदीकियों के चलते उनका पत्ता कट गया और पीएम पद के लिए देसाई की ताजपोशी हुई।
मोरारजी देसाई और जगजीवन राम।
तीसरा मौका- भले ही मोरारजी देसाई देश के पहले गैर कांग्रेसी प्रधानमंत्री बन गए थे, लेकिन उनकी राह आसान नहीं थी। उनके ही मंत्रिमंडल में शामिल नेताओं ने उनकी खिलाफत करनी शुरू कर दी। आखिरकार उनकी सरकार गिर गई और अब ये सवाल था कि अगला प्रधानमंत्री कौन बनेगा? इस बार भी सभी की निगाहें इंदिरा गांधी पर टिकी थी। चौधरी चरण सिंह और जगजीवन राम के बीच सियासी लड़ाई का दौर शुरू हुआ। हालांकि इंदिरा ने बगावत करने वाले जगजीवन को तगड़ा झटका दिया और चौधरी का समर्थन करने की बात कह दी। ये तीसरा मौका था, जब बाबू जगजीवन राम प्रधानमंत्री बनने से चूक गए।
जनता पार्टी के नेताओं के साथ जगजीवन राम।
चौथा मौका- इंदिरा गांधी के समर्थन से चौधरी चरण सिंह ने 1979 में सरकार तो बना ली, लेकिन उन्हें इंदिरा की दखअंदाजी जरा भी पसंद नहीं आ रही थी। उधर इंदिरा की ये चाहत थी कि सरकार का कंट्रोल उनके ही हाथों में रहे, ऐसा नहीं हो रहा था तो इंदिरा गांधी ने चौधरी चरण सिंह की सरकार से अपना समर्थन वापस ले लिया और उनकी सरकार गिर गई। इसके बाद 1980 के लोकसभा चुनाव हुए। इस बार जनता पार्टी ने जगजीवन राम को प्रधानमंत्री पद का दावेदार बनाया था। लेकिन उस चुनाव में कांग्रेस और इंदिरा गांधी ने उनकी उम्मीद पर पानी फेर दिया। इंदिरा की वापसी हुई और जगजीवन राम का प्रधानमंत्री बनने का सपना चौथी बार टूट गया।
जगजीवन राम
बिहार से था पूर्व उप प्रधानमंत्री जगजीवन राम का ताल्लुक
पूर्व उप प्रधानमंत्री जगजीवन राम बिहार से थे। पाकिस्तान के खिलाफ 1971 के युद्ध के दौरान वह केंद्रीय रक्षा मंत्री थे। आपातकाल के विरोध में उन्होंने कांग्रेस छोड़ दी थी। वैसे तो सियासत और बिहार एक दूसरे के सबसे मजबूत पूरक हैं, बिहार के एक छोटे से गांव में जन्में जगजीवन राम दिल्ली की राजनीति का बड़ा चेहरा रहे, लेकिन उनके प्रधानमंत्री बनने की ख्वाहिश अधूरी ही रह गई। बता दें, उनका जन्म भोजपुर जिले के चांदवा गांव में सोभी राम और वसंती देवी के यहां 5 अप्रैल 1908 में हुआ था और 6 जुलाई 1986 को 78 वर्ष की उम्र में उनका निधन हो गया था।
बड़ा मशहूर है जगजीवन राम के बेटे से जुड़ा विवाद
जब 1977 में जगजीवन राम प्रधानमंत्री नहीं बन पाए थे तो जेपी ने उन्हें काफी समझाया और उन्होंने मोरारजी देसाई की सरकार उप प्रधानमंत्री पद संभाला। बताया जाता है कि इसी सीट उनके बेटे की आपत्तिजनक तस्वीरों को लेकर भी जमकर हंगामा हुआ था। ये बात साल 1978 की है, जब आपत्तिजनक मैग्जीन में उनके के बेटे सुरेश राम की एक महिला के साथ छपी, उसी के बाद में उनके बेटे ने उस महिला से शादी कर ली थी।
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