Independence Day 2024: अहिंसावादी महात्मा गांधी ने कहां और क्यों 'करो या मरो' का नारा दिया; Explained
Independence Day 2024 Special Mahatma Gandhi Bharat Choddo Andolan: महात्मा गांधी ताउम्र अहिंसा के पुजारी रहे। उन्होंने अंग्रेजों के क्रूर शासन के खिलाफ अहिंसा को ही अपना हथियार बनाया। फिर कब और क्यों उन्हें करो या मरो का नारा देने के लिए मजबूर होना पड़ा। जानिए अगस्त क्रांति की पूरी कहानी -
महात्मा गांधी ने करो या मरो का नारा क्यों दिया?
क्यों शुरू हुआ भारत छोड़ो आंदोलन?साल 1939 में दूसरा विश्व युद्ध (Second World War) शुरू हो चुका था। जापान उस समय ऐसी शक्ति था, जिसके खिलाफ मित्र सेनाएं लड़ रही थीं। जापानी सेनाएं भारत के उत्तर-पूर्वी सीमा पर कब्जा कर रही थी। अंग्रेजों ने दक्षिण-पूर्व एशिया में अपने कब्जे वाले क्षेत्रों को छोड़ दिया और यहां के लोगों को मझधार में छोड़ दिया। अंग्रेजों के इस कदम से भारत में लोगों का अंग्रेजों से विश्वास उठ गया कि वह जापान और जर्मनी जैसी फासीवादी ताकतों से उनकी रक्षा कर पाएंगे। उस समय महात्मा गांधी का भी मानना था कि अगर अंग्रेज, भारत छोड़कर चले जाते हैं, तो जापानियों के पास भी भारत पर आक्रमण करने का कोई कारण नहीं बचेगा। युद्ध में ब्रिटेन को हो रहे भारी नुकसान की वजह से जरूरी चीजों की महंगाई चरम पर पहुंच गई थी। इससे अंग्रेजों के खिलाफ देश में जबरदस्त रोष था।
दूसरा विश्वयुद्ध और भारत छोड़ो आंदोलनबात 1942 की है। उस समय दूसरा विश्व युद्ध चल रहा था। भारतीय सेना भी अंग्रेजों की ओर से विश्वयुद्ध में भाग ले रही थीं। इसी दौरान 8 और 9 अगस्त 1942 को ऑल इंडिया कांग्रेस कमेटी का बॉम्बे में अधिवेशन बुलाया गया। इसी अधिवेशन के दौरान आज ही के दिन यानी 8 अगस्त 1942 को महात्मा गांधी के नेतृत्व में 'भारत छोड़ आंदोलन' (Quit India Movement) शुरू हुआ। इसे अगस्त क्रांति (August Kranti) के नाम से भी जाना जाता है। जैसा कि इस आंदोलन के नाम 'भारत छोड़ आंदोलन' से साफ है, इसमें अंग्रेजों से तुरंत भारत छोड़ने की मांग की गई। अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ इस आंदोलन में अंग्रेजी शासन खत्म करने के लिए काफी उग्र आंदोलन शुरू किया गया। Cripps Mission मिशन के फेल हो जाने के बाद 8 अगस्त को भारत छोड़ो आंदोलन की शुरुआत की गई थी।
- यहां आपको Cripps Mission मिशन के फेल होने
- 8 अगस्त 1942 को कांग्रेस के बॉम्बे अधिवेशन
- और 'अगस्त क्रांति' जैसी बातों को याद रखना चाहिए
महात्मा गांधी को चुना गया नेताबॉम्बे अधिवेशन के दौरान कांग्रेस की विचारधारा के अनुरूप ही एक अहिंसक आंदोलन की रूपरेखा तय की जानी थी, जिसमें अंग्रेजों पर भारत छोड़ने के लिए दबाव बनाया जाता। लेकिन 8 अगस्त 1942 को भारत छोड़ो रेजोल्यूशन पास हुआ और महात्मा गांधी को इसका नेता बनाया गया। इसमें अंग्रेजों से तुरंत भारत छोड़ने की मांग करने से जुड़ा रेजोल्यूशन पास हुआ था। भारत में एक अंतरिम सरकार के गठन के साथ ही अंग्रेजों के पूरी तरह से बाहर होने जैसे कई प्रस्ताव पास किए गए।
समाज के वर्गों को गांधीजी के निर्देश- सरकारी नौकर : नौकरी न छोड़ें, बल्कि कांग्रेस के प्रति अपनी वफादारी की घोषणा करें
- सिपाही : सेना के साथ बने रहें, लेकिन अपने देशवासियों पर गोली चलाने से बचें।
- किसान: अगर जमींदार सरकार विरोधी हैं, तो तय किराया या टैक्स दें; अगर वे सरकार के पक्ष में हैं, तो किराया या टैक्स न दें।
- छात्र : अगर वे पर्याप्त रूप से आश्वस्त हैं, तो पढ़ाई छोड़ सकते हैं।
- राजा और राजकुमार : लोगों का समर्थन करें और उनकी संप्रभुता को स्वीकार करें।
- राजाओं के अधीन राज्यों के लोग : राजा का तभी समर्थन करें, जब वह सरकार विरोधी हो और स्वयं को भारत का हिस्सा घोषित करें।
महात्मा गांधी का भाषण और गोवालिया टैंक मैदान
कांग्रेस दफ्तरों पर छापेभारत छोड़ो आंदोलन शुरू होते ही तत्कालीन अंग्रेज हुकूमत ने कांग्रेस को गैरकानूनी संगठन घोषित कर दिया। इसके साथ ही देशभर में मौजूद कांग्रेस दफ्तरों पर छापे मारे गए। कांग्रेस नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया, जिसमें महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू और सरदार पटेल भी शामिल थे। इससे देश में अराजक स्थिति पैदा हो गई। तमाम वरिष्ठ नेताओं की गिरफ्तारी के बाद अब आंदोलन की बागडोर जयप्रकाश नारायण और राममनोहर लोहिया जैसे युवा नेताओं के हाथों में आ गई। इसी दौरान अरुणा आसफ अली जैसे युवा नेतृत्व उभरकर आए।
1 लाख से ज्यादा लोग गिरफ्तारभारत छोड़ो आंदोलन के दौरान 1 लाख से ज्यादा लोगों को गिरफ्तार किया गया। सरकार ने आंदोलन को दबाने के लिए दमन का सहारा लिया। पूरे आंदोलन के दौरान अंग्रेजों की ओर से बड़े पैमाने पर लाठीचार्ज की घटनाएं हुईं। यहां तक कि छोटे बच्चों और महिलाओं को भी नहीं बख्शा गया। आंदोलन के दौरान पुलिस की गोलीबारी में लगभग 10 हजार लोगों की मौत हो गई थी।
आंदोलनकारियों ने बिल्डिंगों में लगा दी आगभारत छोड़ो आंदोलन के दौरान सांप्रदायिक हिंसा नहीं हुई। लेकिन कांग्रेस पर प्रतिबंध और पूरे युद्ध के दौरान महात्मा गांधी सहित बड़े नेताओं को पूरे आंदोलन के दौरान जेल में डालने के कारण आंदोलन में हिंसा भी जमकर हुई। आंदोलन में हिंसा के साथ सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुंचाने की घटनाएं भी हुईं। कई बिल्डिंगों को आग के हवाले कर दिया गया। बिजली की तारों और संचार माध्यमों को नुकसान पहुंचाया गया। यातायात के साधनों पर भी हमला किया गया। महात्मा गांधी को 1944 में स्वास्थ्य कारणों से रिहा किया गया।
भारत छोड़ो आंदोलन को इनसे नहीं मिला समर्थनभारत छोड़ो आंदोलन को कुछ पार्टियों ने समर्थन नहीं दिया। इसमें मोहम्मद अली जिन्ना की मुस्लिम लीग प्रमुख थी। इसके अलावा कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (CPI) और हिंदू महासभा ने भी आंदोलन का सपोर्ट नहीं किया। मुस्लिम लीग चाहती थि कि देश के बंटवारे के बिना अंग्रेज भारत छोड़कर न जाएं। यहां तक कि जिन्ना ने तो युद्ध में भाग लेने के लिए और ज्यादा मुसलमानों को सेना में भर्ती करने की भी मांग की थी। कम्युनिस्ट पार्टी युद्ध के समर्थन में थी, क्योंकि ब्रिटिश उस समय सोवियत यूनियन के सहयोगी थे। सुभाष चंद्र बोस इंडियन नेशनल आर्मी (INA) बना रहे थे और देश के बाहर से आजाद हिंद सरकार चला रहे थे। उधर सी राजगोपालाचारी ने कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया, क्योंकि वह अंग्रेजों से पूरी तरह से आजादी के समर्थन में नहीं थे। भारतीय नौकरशाहों ने भी भारत छोड़ो आंदोलन का समर्थन नहीं किया।
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