चीन की अर्थव्यवस्था पर बहुत बड़ी चोट करेगा ट्रेड वार 2.0, ट्रंप के टैरिफ से 2 प्वाइंट तक नीचे आ सकती है ग्रोथ

US China Trade war 2.0 : ट्रंप से सहमे हुए देशों में सबसे बड़ा नाम पीपल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना यानी चीन का है। चीन का अमेरिका के साथ एक नहीं कई मोर्चों पर टकराव है। विदेश नीति, सुरक्षा, सैन्य, कारोबार, मानवाधिकार, स्पेस से लेकर हर एक क्षेत्र में दोनों के बीच नूरा-कुश्ती तो है ही। टकराव का दायरा साउथ चाइना सी, हिंद-प्रशांत से लेकर ताइवान तक फैला हुआ है

व्यापार के मोर्चे पर अमेरिका और चीन के बीच बढ़ सकती है तनातनी।

मुख्य बातें
  • 2001 में चीन विश्व व्यापार संगठन यानी डब्ल्यूटीओ का हिस्सा बना
  • इसके बाद अमेरिका और चीन के बीच कारोबार में तेजी आनी शुरू हुई
  • अमेरिका को केवल 100 अरब डॉलर का इलेक्ट्रानिक सामान बेचता है चीन

US China Trade war 2.0 : अमेरिका के राष्ट्रपति पद पर डोनाल्ड ट्रंप की वापसी से दुनिया पर क्या असर पड़ेगा, इस पर बहस और चर्चा हो रही है। इस वापसी का कारोबार, आपसी रिश्ते और हित बनेंगे या बिगड़ेंगे इसका आंकलन हर एक देश कर रहा है। दुनिया के सबसे पुराने लोकतांत्रिक और सबसे ताकतवर देश में बदलाव हुआ है तो जाहिर है कि इसका असर हर जगह दिखना शुरू होगा। दुनिया को चलाने की जो एक अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था है, उसमें अमेरिका का किरदार सबसे बड़ा है। आर्थिक और सैन्य मोर्चे पर वह आज भी सबसे समृद्ध और शक्तिशाली देश है, यानी ट्रंप आए हैं तो वह अपने हिसाब से चीजों को देखेंगे और चलाएंगे। विदेश नीति, कूटनीति, कारोबार, युद्ध और टकराव सभी में बदलाव होना तय है। यह बदलाव कुछ देशों के लिए फायदेमंद तो कुछ के लिए घाटे का सौदा हो सकता है जो देश ट्रंप के आगमन से खुश हैं और जिनकी उनके साथ बनती रही है, उनके लिए तो ठीक है लेकिन पिछले टर्म यानी 2016 से 2020 के कार्यकाल में जिनकी उनसे ठन गई थी या जिनका उनके साथ टकराव और 36 का आंकड़ा था। ऐसे देश डरे और सहमे हुए हैं, ट्रंप का अगला रुख क्या होगा इसे लेकर वे भयभीत हैं।

अमेरिका के साथ चीन का कई मोर्चों पर है टकराव

सहमे हुए देशों में सबसे बड़ा नाम पीपल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना यानी चीन का है। चीन का अमेरिका के साथ एक नहीं कई मोर्चों पर टकराव है। विदेश नीति, सुरक्षा, सैन्य, कारोबार, मानवाधिकार, स्पेस से लेकर हर एक क्षेत्र में दोनों के बीच नूरा-कुश्ती तो है ही। टकराव का दायरा साउथ चाइना सी, हिंद-प्रशांत से लेकर ताइवान तक फैला हुआ है, यानी अमेरिका को सबसे ज्यादा चुनौती अगर किसी देश से मिल रही है तो वह चीन है। चीन लगातार उसके सुपरपावर के दर्जे को चुनौती दे रहा है। चूंकि ट्रंप अपने पहले कार्यकाल के दौरान चीन पर नकेल कसने के लिए कई तरह कदम उठा चुके हैं और चीन के प्रति उनका जो रुख और रवैया है, वह दोनों देशों के बीच गतिरोध और टकराव को नए सिरे से बढ़ाएगा। खासकर, कारोबार ऐसी दुखती रग है जहां ट्रंप सबसे पहले चोट कर सकते हैं।

एक समय था जब चीन-अमेरिका में कारोबार नहीं होता था

एक समय ऐसा भी था जब चीन और अमेरिका के बीच कोई व्यापार नहीं होता था। 1949 में चीन के गठन के बाद से तीन दशकों यानी 30 सालों तक एक तरह से दोनों देशों के बीच व्यापारिक रिश्ते नहीं थे। करीब तीन दशक के बाद चीन में डेंग शिआपिंग ने आर्थिक सुधार करने शुरू किए, फिर 1979 में दोनों देशों ने अपने रिश्ते सामान्य किए। साल 1986 में चीन ने जनरल अग्रीमेंट ऑन टैरिफ एंड ट्रेड में शामिल हुआ। फिर इसके बाद दिसंबर 2001 में वह विश्व व्यापार संगठन जिसे डब्ल्यूटीओ कहा जाता है, उसका सदस्य देश बना। डब्ल्यूटीओ से पहले भी अमेरिका और चीन के बीच कारोबार बढ़ रहा था लेकिन इस संगठन में शामिल हो जाने के बाद दोनों देशों के बीच कारोबारी रिश्ते तेजी से सामान्य और आगे बढ़ने लगे। इसका नतीजा यह हुआ कि अमेरिका और पश्चिमी देशों की कंपनियां सस्ती मजदूरी और कम लागत की लालच में बड़ी संख्या में चीन में निवेश करना शुरू कर दिया। फिर धीरे-धीरे चीन मैन्यूफैक्चरिंग यानी उत्पादन का सबसे बड़ा हब बन गया।

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