Trump Again: आसान नहीं होगी 'ट्रंप' की राह, मध्यपूर्व और पूर्वी यूरोप से मिलेगीं सीधी चुनौतियां

US President Donald Trump: इस साल हुए अमेरिकी राष्ट्रपति चुनावों में ट्रंप के मिजाज और तेवरों में वो तल्खी नहीं देखी गयी, जिसके लिए अमूमन वो जाने जाते रहे है। अपनी छवि के विपरीत वो पूरे चुनावी अभियान के दौरान लगभग संयमित और मार्यादित ही दिखे।

donald trump

शानदार रहा ट्रंप का इमेज मेकओवर

US President Donald Trump: साल 2025 के आगाज के साथ ही अमेरिकी सत्ता सदन में डोनाल्ड ट्रंप दूसरी बार राष्ट्रपति पद की कुर्सी संभालेंगे, उनके पहली बार राष्ट्रपति बनने से पहले ही दुनिया के ज्यादातर लोग उनके मिजाज से वाकिफ हो चुके थे। उन्हें हॉलीवुड फिल्मों में कैमियों रोल करते हुए देखा गया, डब्ल्यूडब्ल्यूई की नूरा कुश्ती में वो अक्सर लोगों के ध्यान अपनी ओर खींचते दिखाई देते थे। उन्हें ज्यादातर पागल, सनकी, दिलफेंक, विदूषक और गुस्सैल कारोबारी वाली छवि में देखा गया। उनके पहले राष्ट्रपति कार्यकाल के समापन के अवसर हुई कैपिटल हिल हिंसा को शायद ही कोई भुला पाए। उन्हें करीब से जानने वाले लोग बताते है कि उनकी खामी ही उनकी ताकत है। उनमें नाफरमानी और मुखालफत सहने का जज्बा नहीं है।

शानदार रहा ट्रंप का इमेज मेकओवर

धीर-गंभीर दिखने के साथ ही उनके भाषणों में आक्रामकता की बजाए ठहराव दिखा, अपनी बात रखने की जगह वो अमेरिकी रियाया की बातें सुनने में ज्यादा दिलचस्पी दिखाते नज़र आये। कुल मिलाकर उनका इमेज मेकओवर ऐसा रहा कि जनता को लगे उन्हें जमीनी और सियासी मुद्दों के गहरी समझ है, इसका सीधा असर चुनावी नतीजों में साफ दिखा।

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आकांक्षाओं और अपेक्षाओं से भरा है अमेरिकी जनादेश

जिस तरह से उन्हें विस्कॉन्सिन, मिशिगन, जॉर्जिया, उत्तरी कैरोलिना, पेंसिल्वेनिया, एरिज़ोना और नेवादा में भारी जनादेश मिला, उससे साफ है कि अमेरिकी जनता उन्हें लेकर काफी आशावादी है। ट्रंप को मिला भारी जनसमर्थन बाहरी और घरेलू अपेक्षाओं से भरा हुआ है। अंदरखाने डेमोक्रेट ये जानते थे कि ट्रंप को चुनावी अभियान के दौरान हर मोर्चें पर बढ़त हासिल थी। कई राजनैतिक विरोधी तो नतीजे आने से पहले ही उनके सामने घुटने टेक चुके थे, इसी वजह से उनके खिलाफ सीमित रूप से ही डेमोक्रेट्स ने जुबानी हमले किए। विवादों को दरकिनार कर दिए जाए तो उनके पिछले राष्ट्रपति पद के कार्यकाल की यादें लोगों के जहन में आज भी ताजा है। वो बड़े बदलाव लाने की पहल और कुव्वत से लबरेज है। ट्रंप अब पूर्व अमेरिकी ग्रोवर क्लीवलैंड वाली फेहरिस्त में शुमार हो चुके है, जिन्हें दूसरी बार अमेरिका की बागडोर संभालने का मौका मिला। इस मौके का फायदा उठाकर ट्रंप लगभग उन सभी मामलों में दखल देगें, जिससे कि उनका नाम इतिहास की तारीखों में दर्ज हो जाए।

वैश्विक अस्थिरता वाले हर मामले में दखल देंगे ट्रंप

अमेरिकी आबादी का बड़ा तबका उन्हें लेकर काफी उत्साहित है। बड़े पैमाने पर मिला जनसमर्थन उन्हें घरेलू और बाहरी मोर्चों पर सख्त फैसले लेने में मदद करेगा। अंदरखाने डेमोक्रेट इस बात से अच्छी तरह वाकिफ थे कि उन्हें चुनावी बढ़त हासिल है, इसी के चलते उनके राजनीतिक विरोधियों ने उन पर नपे-तुले अंदाज में ही जुबानी हमले किए। चुनावी नतीजे आने से पहले डेमोक्रेट खेमा लगभग पूरी तरह से घुटने टेक चुका था। अमेरिकियों के जहन में उनके पिछले कार्यकाल की यादें अभी भी ताजा है, वो उनकी कमजोरियों और खूबियों से वाकिफ है। वो बदलाव की पहल करने की ताकत से लरबेज है। वो लगभग हर उस मामले में दखल देंगे जिससे कि उनका नाम अमेरिकी इतिहास में अमर हो जाए। अमेरिकी जनता के सामने उनकी छवि ऐसी गढ़ दी गयी है, जिससे कि लगता है कि वो सामरिक तनाव और युद्ध रोकने वाले मसीहा है। कईयों को ये भी लगता है कि धरती को तबाह होने से सिर्फ वहीं बचा सकते है, ये थोड़ा हास्यापद है इसे अतिश्योक्ति और अतिआशावाद की पराकाष्ठा माना जा सकता है। हालांकि अपनी चुनावी तकरीरों के दौरान ट्रंप ने वैश्विक सामरिक संघर्षों और तनावों को कम करने का वादा किया था।

क्राइसिस मैनेजमेंट में नाकाम रहे हैं कई अमेरिकी राष्ट्रपति

ट्रंप के सामने सत्ता संभालने से पहले ही कई चुनौतियां सुरसा की तरह मुंह बाए खड़ी है। किंमजोंग के तल्ख तेवर, कीव और क्रेमलिन की जंग, ताइवान और फिलीपींस में चीनी दखल, तेहरान की तीखे सुर, इराक और सीरिया में अमेरिकी सुरक्षा बलों की मौजूदगी अंत और लाल सागर की दहलीज पर बैठे चरमपंथी हूतियों की आंतकी गतिविधियां ये सभी डोनाल्ड ट्रंप के कार्यकाल के लिए दुश्वारियां पैदा करेगें। अपनी चुनावी घोषणा के दौरान ट्रंप अक्सर यूक्रेन-रूस जंग रोकने का दम भरते दिखे, उनके मुताबिक पुतिन से उनके तालुक्कात काफी बेहतरीन है इसी बुनियाद पर वो जंग को रूकवा देगें। बता दे कि कीव और मास्को दोनों ही आपसी जंग में बुरी तरह उलझे हुए है, दो साल बीत जाने के बाद भी क्रेमलिन कीव पर अपना परचम नहीं लहरा पाया है और ना ही यूक्रेनी सुरक्षा बल रूस को अपनी सरजमीं से खदेड़ पाए है। मौजूदा हालातों में शांति, समाधान और मध्यस्थता की संभावनाएं दूर की कौड़ी है। पश्चिम एशिया के हालातों को संभालने के मुकाबले रूस-यूक्रेन जंग का हल निकालना ट्रंप के लिए संभवत: आसान हो सकता है। तारीख गवाह है कि जिस दौर में मध्यपूर्व के हालात पहुंच चुके है, ठीक उसी तरह के हालातों को संभालने में पूर्ववर्ती अमेरिकी राष्ट्रपति रोनाल्ड विलसन रीगन, बिल क्लिंटन, जॉर्ज डब्ल्यू बुश और निवर्तमान राष्ट्रपति जो बाइडेन की कोशिशें नाकाम ही रही है।

ताजपोशी से पहले ही सक्रिए हुए ट्रंप

खबरें छनकर आ रही है कि तेल अवीव, गाजा और लेबनान के बीच चल रहे खूनी संघर्ष को रोकने के लिए ट्रंप ने अनौपचारिक और गैर अधिकारिक मध्यस्थता की कोशिशें शुरू कर दी है। माना जा रहा है कि उनकी ताजपोशी तक ये लड़ाई जारी रहेगी। व्हाइट हाउस के तख्त पर बैठते ही वो शांति समझौते का ऐलान कर सकते है। अगले दो महीनों तक प्रधानमंत्री नेतन्याहू को हमास, हूती और हिजबुल्लाह की कमर तोड़ने के लिए पूरा जोर लगाना होगा, वरना इसके बाद ट्रंप इस संघर्ष से जुड़े सभी पक्षकारों को बातचीत करने के लिए दबाव बनायेगें। इस सूरत में सभी पक्षकार अपनी मांगें मनवाने के लिए रियायतें मांगेगें, ऐसे में हो सकता है कि लेबनानी सेना देश के दक्षिणी इलाके से हिजबुल्लाह के हथियार छीनकर उसके बैकफुट पर धकेल दे, तेल अवीव को गाजा में संप्रभु फिलिस्तीन राष्ट्र और उसके नेतृत्व को स्वीकार करना पड़े साथ ही हमास बंधकों को छोड़ने के लिए मजबूर हो सकता है। ट्रंप इस्राइल की उस मांग की पैरोकारी करते है जिसमें हिजबुल्ला की सैन्य ताकत को नेस्तनाबूत करने की बात कही गयी है। माना ये जा रहा है कि ये इस्राइली मांग जमीनी धरातल पर उतर जायेगी, इस सूरत में हिजबुल्लाह की अगुवाई करने वाले वार्ताकारों के पास बेहद सीमित विकल्प रह जायेगें। अगर ये समझौता नहीं होता है तो लेबनान के दक्षिणी इलाके में IDF अपने ऑप्रेशंस का दायरा बढ़ा सकती है, इस्राइली सैन्य बलों की संभावित सक्रियता बढ़ने के चलते लेबनान को आखिर में उन इस्राइली मांगों को भी मानना पड़ सकता है, जिन्हें वो मौजूदा हालातों में खारिज करता आया है। दोनों ही परिस्थितियों में इस्राइल के पक्ष में माहौल बनेगा अगर कोई समझौता हो भी जाता है तो इसका स्वागत पश्चिम एशिया खुले दिल से करेगी, क्योंकि इसी बुनियाद पर इस्राइल में चल रहा अब तक का सबसे बड़ा संघर्ष खत्म हो जाएगा।

तेहरान दे सकता है टेंशन

तकनीकी और कूटनीतिक नजरिए से देखा जाए तो ट्रंप पूरी तरह से गाजा और लेबनान मुद्दा सुलझा ले जायेगें। मध्यपूर्व में उनके लिए सबसे चुनौती शिया चरमपंथ के गढ़ तेहरान की ओर से आती दिख रही है। पेंटागन और सीआईए ईरानी परमाणु कार्यक्रम की लगातार मॉनिटरिंग कर रहे है, इनके बीच वाशिंगटन किस तरह संभावित समझौते की बीज रोप पायेगा ये देखने वाली बात होगी।

इस आलेख के लेखक राम अजोर (वरिष्ठ पत्रकार एवं समसमायिक मामलों के विश्लेषक) हैं।

(डिस्क्लेमर : प्रस्तुत लेख में लेखक के निजी विचार हैं और टाइम्स नाउ नवभारत इसके लिए उत्तरदायी नहीं है।)

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रवि वैश्य author

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